Nameplate Controversy: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने शुक्रवार को कांवड़ यात्रा  (Kanwar Yatra) मार्ग पर दुकानों और भोजनालयों पर नेम प्लेट लगाने के विवाद की सुनवाई की। उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा कि शिव भक्त कांवड़ियों के खाद्य विकल्पों का सम्मान किया जाना चाहिए। जस्टिस हृषिकेश रॉय और एसवीएन भट्टी की बेंच ने इस मामले पर सुनवाई की।

मर्जी से नाम लिखवाने में कोई हर्ज नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने  साफ तौर पर कहा कि कि अगर कोई अपनी दुकान के बाहर मर्जी से नाम लिखवाना चाहता है, तो हमने इसे नहीं रोका है। हमारा आदेश था कि किसी को  दुकान के बाहर अपना नाम लिखने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। बता दें कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार के आदेश पर अंतरिम रोक लगाई थी।कोर्ट ने शुक्रवार को भी यूपी सरकार के आदेश पर लगी रोक को बरकरार रखा। अब इस मामले की अगली सुनवाई सोमवार (29 जुलाई) को होगी। 

उत्तराखंड ने जवाब देने के लिए मांगा समय
सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कोर्ट से कहा कि उन्हें यूपी सरकार से पिछली रात 10:30 बजे जवाब मिला था। उत्तराखंड (Uttarakhand) ने उत्तर दाखिल करने के लिए दो सप्ताह का समय मांगा है। उत्तराखंड के वकील ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि दुकानदारों के लिए नेम प्लेट प्रदर्शित करना अनिवार्य है और यह कानून वर्षों से लागू है।  

यूपी सरकार ने कोर्ट में पेश किए तीन सबूत
उत्तर प्रदेश (UP Govt) सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि कांवड़ यात्रा को शांतिपूर्ण और सुव्यवस्थित तरीके से पूरा करने के लिए नेमप्लेट से जुड़ा  यह आदेश दिया गया था। दुकानों के नामों के कारण उत्पन्न होने वाली भ्रम को दूर करने के लिए यह निर्देश जारी किया गया था। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अगुवाई वाली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में तीन महत्वपूर्ण सबूत पेश किए, जिनके आधार पर नेम प्लेट लगाने का फैसला लिया गया।

यूपी सरकार ने तीन होटलों के नाम का किया जिक्र
यूपी सरकार ने कहा कि उदाहरण के लिए, 'राजा राम भोज फैमिली टूरिस्ट ढाबा' चलाने वाले दुकानदार का नाम वसीम है। इसी तरह 'राजस्थानी खालसा ढाबा' के मालिक फुरकान हैं और 'पंडित जी वैष्णव ढाबा' के मालिक सावर हैं। इससे भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है।  यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि वह चाहती है कि कांवड़ियों की धार्मिक भावनाओं को ठेस न पहुंचे। इसलिए, दुकानों के बाहर नाम लिखने के निर्देश दिए गए थे। कांवड़ यात्रा मार्ग पर भोजन और पेय के संबंध में गलतफहमी के कारण पिछले दिनों झगड़े और तनाव हुए हैं। 

उत्तराखंड ने कानून व्यवस्था से जुड़ी दिक्कतें होने की बात कही
उत्तराखंड ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश कानून व्यवस्था बनाए (Law and Order) रखने में समस्या पैदा करेगा। उन्होंने उदाहरण दिया कि अगर कोई आम के ठेले पर नशीले पदार्थ लाता है, तो उसकी पहचान नहीं हो पाएगी। वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि अगर कानून नाम प्रदर्शित करने की अनुमति देता है, तो सुप्रीम कोर्ट का आदेश राज्य कानून (State Law) के ठीक उलटा होगा। 

सुप्रीम कोर्ट ने कांवड़ यात्रियों की दलीलें भी सुनी
बेंच ने उन कांवड़ यात्रियों की दलीलें भी सुनीं जिन्होंने सरकार के निर्देशों का समर्थन किया है। तीर्थयात्रियों ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि कि कांवड़ यात्री केवल बिना लहसुन और प्याज के बना शाकाहारी भोजन करते हैं। कुछ दुकानों के भ्रमित करने वाले नाम होते हैं। इन नामों से यह पता नहीं चल पाता कि यह शाकाहारी दुकान है या मांसाहारी। दुकानों के ऐसे नेमप्लेट से तीर्थयात्रियों को परेशानी होती है।