Supreme Court on Jay Shri Ram Slogan: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार(16 दिसंबर) को मस्जिद में ‘जय श्रीराम’ का नारा लगाने के मामले की सुनवाई की। कोर्ट ने कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए FIR रद्द कर दी। जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस संजीव मेहता की बेंच ने कहा कि ‘जय श्रीराम’ का नारा लगाना सीधे-सीधे अपराध नहीं हो सकता। कोर्ट ने कहा कि अगर यह किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाता है, तो भी इसे सीधे तौर पर अपराध नहीं माना जा सकता है।  

क्या है मस्जिद में नारे लगाने का पूरा मामला?
यह मामला कर्नाटक के दक्षिण जिले के कडाबा पुलिस स्टेशन का है। शिकायतकर्ता हैदर अली ने आरोप लगाया था कि 25 सितंबर 2023 को कीर्थन कुमार और सचिन कुमार नाम के दो लोग बदुरिया जुम्मा मस्जिद में घुसकर ‘जय श्रीराम’ के नारे लगाने लगे। इसके बाद पुलिस ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 295A (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना), धारा 447 (ट्रेसपास) और अन्य धाराओं के तहत मामला दर्ज किया। 

हाईकोर्ट खारिज कर दी FIR
कर्नाटक हाईकोर्ट ने 13 सितंबर 2023 को इस मामले में FIR को खारिज कर दिया। हाईकोर्ट ने कहा कि इन आरोपों को साबित करने के लिए कोई ठोस सबूत मौजूद नहीं है। अदालत ने यह भी पाया कि IPC की जिन धाराओं के तहत मामला दर्ज हुआ था, वे इस स्थिति पर लागू नहीं होतीं। कोर्ट ने कहा कि ‘जय श्रीराम’ नारा लगाना अपराध नहीं माना जा सकता। साथ ही कोर्ट ने इस संबंध में दर्ज की गई एफआईआर रद्द करने का आदेश सुना दिया।

सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में क्या हुआ?  
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान शिकायतकर्ता के वकील देवदत्त कामत से कई सवाल किए गए। कोर्ट ने पूछा कि मस्जिद के अंदर घुसने वाले लोगों की पहचान कैसे हुई? क्या सभी आरोपियों की पहचान CCTV फुटेज से हुई? इस पर वकील ने तर्क दिया कि मामले की जांच अधूरी थी, लेकिन हाईकोर्ट ने इसे रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से भी इस मामले पर अपनी राय देने को कहा है।

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धार्मिक नारेबाजी पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ किया कि धार्मिक नारे लगाना अपराध नहीं माना जा सकता। जस्टिस मित्तल और जस्टिस मेहता की बेंच ने कहा कि यह मामला कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग साबित हो सकता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी नारे को अपराध मानने से पहले यह देखना होगा कि उसका मकसद क्या था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी की भावनाएं आहत होने पर इसे अपराध नहीं माना जा सकता। 

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मामले में अगली सुनवाई जनवरी में होगी
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई जनवरी 2025 में तय की है। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि याचिका की एक कॉपी सरकार को दी जाए। कोर्ट ने हाईकोर्ट के इस फैसले का समर्थन किया कि आरोपियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई का आधार नहीं बनता। साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस तरह के मामलों में कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग रोका जाना चाहिए।