Supreme Court On Minerals Royalty: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गुरुवार 25 जुलाई को खनिजों पर लगने वाले टैक्स को लेकर एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। कोर्ट ने इससे जुड़ा अपने पहले के आदेश को रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को खनिज और खनन गतिविधियों पर रॉयल्टी (Mineral Royalty) लगाने का अधिकार दिया है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली नौ-जजों की पीठ ने 8:1 के बहुमत से यह निर्णय सुनाया। इस फैसले के अनुसार, 'रॉयल्टी' को 'टैक्स' नहीं माना जाएगा। इससे राज्यों को खनिज-धारित भूमि पर टैक्स लगाने का अधिकार मिल गया है।
सीजेआई चंद्रचूड़ बोले रॉयल्टी' टैक्स नहीं है
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ (CJI Chandrachud) ने अपने और सात दूसरे जजों की ओर से फैसला सुनाते हुए कहा कि संसद के पास खनिज अधिकारों पर टैक्स लगाने की शक्ति नहीं है। यह अधिकार केवल राज्यों के पास है। चंद्रचूड़ ने कहा कि संसद को खनिज अधिकारों पर टैक्स लगाने का अधिकार नहीं है और 'रॉयल्टी' (Royalty) को 'टैक्स' (Tax) नहीं माना जाएगा।
जस्टिस बी वी नागरत्ना ने जताई असहमति
इस फैसले में न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना (Justice BV Nagarathna) ने असहमति जताई। उन्होंने कहा कि केंद्र के पास खनिज अधिकारों पर टैक्स लगाने का विशेषाधिकार है और राज्यों को अतिरिक्त लेवी लगाने की अनुमति देना एक असामान्य स्थिति पैदा कर सकता है। नागरत्ना ने कहा कि इससे राज्यों की विधायी क्षमता पर असंतुलन पैदा हो सकता है।
खनिजों पर राज्यों का अधिकार: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से यह साफ हो गया है कि खनिजों पर टैक्स लगाने का अधिकार राज्यों के पास है। यह फैसला यह भी स्पष्ट करता है कि रॉयल्टी को टैक्स नहीं माना जाएगा, जिससे राज्यों को खनिज-धारित भूमि पर टैक्स लगाने का अधिकार मिलता है। इस फैसले से राज्यों और केंद्र सरकार के बीच खनिज अधिकारों पर शक्तियों का विभाजन स्पष्ट हो गया है।
भविष्य में नियम लागू करने पर 31 जुलाई को सुनवाई
पीठ 31 जुलाई को इस पहलू पर सुनवाई करेगी कि यह निर्णय भविष्य या अतीत में लागू किया जाना चाहिए या नहीं। अगर इसे अतीत में लागू किया गया तो पश्चिम बंगाल, ओडिशा और झारखंड जैसे राज्य सरकारों को लाभ होगा जिनके पास खनिजों पर अतिरिक्त लेवी लगाने के स्थानीय कानून हैं। बता दें कि कई राज्य लंबे समय से खनिजों पर लगने वाले टैक्स की वसूली करने का अधिकार मांग रहे हैं। इनमें पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु कई बार यह मांग उठा चुका है।