Electoral Bonds: सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर एक नई याचिका दाखिल की गई है। याचिका में इलेक्टोरल बॉन्ड्स के माध्यम से कॉरपोरेट्स और राजनीतिक दलों के बीच सांठगांठ के कथित उदाहरणों की जांच के लिए एसआईटी गठित करने की मांग की गई है। सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को करीब दो महीने रद्द कर दिया था। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली संविधान पीठ ने इसे असंवैधानिक करार दिया था।
यह याचिका दो गैर सरकारी संगठनों- सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (CPIL) और कॉमन कॉज द्वारा दायर की गई है। याचिका में दावा किया गया कि इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम में करोड़ों रुपये का घोटाला शामिल है। याचिका में यह भी मांग की गई है कि प्रस्तावित एसआईटी जांच की निगरानी शीर्ष अदालत को ही करनी चाहिए।
रिश्वत के रूप में भुगतान
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है कि चुनाव आयोग द्वारा प्रकाशित आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले छह वर्षों में चुनावी बांड के माध्यम से बड़े कॉरपोरेट्स और राजनीतिक दलों के बीच संभावित रूप से किस तरह की व्यवस्था की गई है। डेटा से पता चलता है कि निजी कंपनियों ने या तो केंद्र सरकार की एजेंसियों के खिलाफ संरक्षण राशि के रूप में या अनुचित लाभ के बदले में रिश्वत के रूप में करोड़ों का भुगतान किया है।
गैर सरकारी संगठनों की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने यह याचिका दायर की है। इसमें कहा गया कि भारतीय स्टेट बैंक (SBI) ने इलेक्टोरल बॉन्ड का जो डेटा चुनाव आयोग के साथ साझा किया है, उसमें ऐसे उदाहरण भी हैं जिसमें सत्तारूढ़ दलों ने स्पष्ट रूप से नीतियों/कानूनों में संशोधन किया है। इसजिए जरिए कॉरपोरेट्स को लाभ दिया गया।
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि बांड डेटा से यह भी पता चलता है कि घाटे में चल रही कंपनियों और शेल फर्मों ने भी बड़ी रकम दान की है।
जनवरी 2018 में सरकार लाई थी स्कीम
इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को जनवरी 2018 में नरेंद्र मोदी सरकार ने लॉन्च की थी। इस साल 15 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने इस स्कीम को रद्द कर दिया था। विपक्ष ने भाजपा सरकार पर इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए घोटाला करने का आरोप लगाया। हालांकि पीएम मोदी समेत अन्य नेताओं ने आरोपों को खारिज किया है।