Child Marriage: सुप्रीम कोर्ट ने कहा- बाल विवाह कानून को किसी पर्सनल लॉ या परंपरा से नहीं रोका जा सकता

Child Marriage: देश के सर्वोच्च अदालत ने कहा कि बाल विवाह निषेध अधिनियम (Prohibition of Child Marriage Act - PCMA) को किसी भी व्यक्तिगत कानून ( Personal Law) या परंपरा के आधार पर बाधित नहीं किया जा सकता है। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि बाल विवाह बच्चों के जीवनसाथी चुनने की स्वतंत्र इच्छा का उल्लंघन करता है। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने बाल विवाह रोकने के लिए कई दिशा-निर्देश जारी किए।
PCMA को पर्सनल लॉ से ऊपर रखा जाए: केंद्र की अपील
अदालत ने कहा कि यह सवाल कि क्या PCMA व्यक्तिगत कानूनों पर प्राथमिकता रखेगा, अभी संसद में विचाराधीन है। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की है कि PCMA को व्यक्तिगत कानूनों यानी पर्सनल लॉ से ऊपर रखा जाए। सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, "बाल विवाह निषेध अधिनियम के तहत बाल विवाह रोकने का प्रयास किया जाता है, लेकिन यह इस सामाजिक समस्या को हल नहीं कर पाता, जिसमें परिवार द्वारा बच्चों की शादी नाबालिग उम्र में तय कर दी जाती है। इससे उनके जीवन साथी चुनने के अधिकार का उल्लंघन होता है, क्योंकि इतनी कम उम्र में उन्हें समझ और अधिकारों का बोध नहीं होता है।"
ये रहे बाल विवाह को बढ़ावा देने वाले कारक
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बाल विवाह को रोकने के लिए व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें हाशिए पर रहने वाले समुदायों से आने वाली लड़कियों के लिए विशेष संवेदनशीलता का ध्यान रखा जाए। सीजेआई ने कहा, "इस मुद्दे पर विचार करते समय हमें लिंग, जाति, सामाजिक-आर्थिक स्थिति और भौगोलिक स्थिति जैसे कारकों का ध्यान रखें, जो बाल विवाह के जोखिम को बढ़ाते हैं।" अदालत ने जोर दिया कि बाल विवाह को रोकने की रणनीतियां विभिन्न समुदायों की विशेष आवश्यकताओं को ध्यान में रखनी चाहिए और गरीबी, लिंग असमानता, शिक्षा की कमी जैसे मूलभूत कारणों पर फोकस करना चाहिए।
बाल विवाह कानून को लेकर जागरूकता बढ़ाई जाए
- शीर्ष कोर्ट ने कहा कि इस कानून की सफलता तब तक संभव नहीं है जब तक कि सभी हितधारक एक समग्र सामाजिक ढांचे में समन्वयित प्रयास न करें, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों का सहयोग हो। अदालत ने कहा कि बाल विवाह रोकने के लिए रिपोर्टिंग तंत्र को मजबूत करना, जन जागरूकता अभियानों को बढ़ावा देना और कानून प्रवर्तन के प्रशिक्षण में निवेश करना आवश्यक है।
- सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा, "इन दिशा-निर्देशों का मुख्य उद्देश्य रोकथाम है, इसके बाद सुरक्षा और फिर दंडात्मक कार्रवाई की जाती है। हम इस बात से भी अवगत हैं कि आपराधिक कार्रवाई का परिवारों और समुदायों पर क्या प्रभाव पड़ता है। इसलिए यह जरूरी है कि बाल विवाह के कानूनी परिणामों के बारे में व्यापक जागरूकता और शिक्षा दी जाए।"
एक संगठन की पीआईएल पर हुई थी सुनवाई
अदालत ने स्पष्ट किया कि इसका मतलब यह नहीं है कि अवैध कार्यों के लिए अभियोजन से बचा जाना चाहिए। कानून प्रवर्तन एजेंसियों को प्राथमिक रूप से बाल विवाह रोकने और निषेध करने के प्रयास करने चाहिए, न कि केवल अभियोजन पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। यह फैसला सोसाइटी फॉर एनलाइटनमेंट एंड वॉलंटरी एक्शन द्वारा दायर जनहित याचिका पर आया, जिसमें बाल विवाह रोकने के लिए कानून के प्रभावी क्रियान्वयन की मांग की गई थी।
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