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Citizenship Act: सुप्रीम कोर्ट ने 4-1 के बहुमत से नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 6A को वैध ठहराया है, 5 जजों की बेंच में सिर्फ जस्टिस जेबी पारदीवाला ने असहमति जताई।

Citizenship Act: सुप्रीम कोर्ट ने 4-1 के बहुमत से नागरिकता अधिनियम की वैधता से जुड़ा बड़ा फैसला सुनाया है। शीर्ष अदालत ने गुरुवार (17 अक्टूबर) को नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 6A की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा, जो कि असम समझौते को आगे बढ़ाने के लिए मान्यता देती है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 5 जजों की संविधान पीठ ने 4-1 के बहुमत से यह फैसला सुनाया, जिसमें जस्टिस जेबी पारदीवाला ने असहमति व्यक्त की।

असम समझौता अवैध प्रवासन की समस्या का हल: SC 
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने कहा कि असम समझौता अवैध प्रवासन की समस्या का एक राजनीतिक समाधान है। सु्प्रीम कोर्ट की बेंच में शामिल अन्य जजों में जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस मनोज मिश्रा फैसले को लेकर एकमत रहे। जिन्होंने कहा कि संसद के पास प्रावधान लागू करने की विधायी शक्ति है। 

अवैध प्रवासियों को नागरिकता का लाभ देती है धारा 6A
नागरिकता कानून का यह प्रावधान उन अवैध प्रवासियों को भारतीय नागरिकता का लाभ देता है, जो कि 1 जनवरी 1966 से 25 मार्च 1971 के बीच असम में दाखिल हुए थे, जिनमें ज्यादातर बांग्लादेश से आए प्रवासी शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि किसी राज्य में अलग-अलग जातीय समूहों की मौजूदगी का मतलब अनुच्छेद 29(1) का उल्लंघन नहीं है।

नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 6A क्या है?

  • नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 6A, बांग्लादेश से असम में अवैध घुसपैठ का हल निकालने के लिए असम समझौते के हिस्से के तौर पर 1985 में पेश की गई थी। यह 1 जनवरी, 1966 से पहले असम में प्रवेश करने वाले लोगों को भारतीय नागरिकता देती है। 
  • साथ ही 1 जनवरी 1966 और 24 मार्च 1971 के बीच आने वाले लोगों को 10 साल की प्रतीक्षा अवधि के बाद नागरिक के रूप में रजिस्ट्रेशन की अनुमति देती है, इन 10 सालों में उन्हें मतदान का अधिकार नहीं होता है।
  • सवाल है कि 24 मार्च 1971 के बाद आने वालों का क्या होगा? तो भारतीय नागरिकता कानून के मुताबिक, घुसपैठियों की जानकारी जुटाई जाएगी और उन्हें निर्वासित किया जाएगा। धारा 6A विवादास्पद रही है, इसकी संवैधानिकता को जनसांख्यिकीय चिंताओं के कारण सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई।
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