Temple evidence in Gyanvapi: वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI ) की रिपोर्ट के कुछ अहम हिस्से हरिभूमि को मिले हैं। रिपोर्ट में कई ऐसे अहम सबूत हैं जिनसे साफ पता चलता है कि मौजूदा ढांचे के नीचे पहले भव्य मंदिर था। रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसा लगता है कि यहां पर 17वीं शताब्दी में पहले से मौजूद ढांचे यानी कि मंदिर को नष्ट किया गया और उसे मॉडिफाई कर मस्जिद तैयार किया गया। यहां पेश है एएसआई  रिपोर्ट में सामने आए मंदिर हाेने के चार अहम सबूत

भगवान विष्णु की प्रतिमा मिली
ASI को ज्ञानवापी के विवादित ढांचे के सर्वेक्षण के दौरान भगवान विष्णु की एक खंडित मूर्ति भी मिली है। यह मूर्ति सैंडस्टोन से निर्मित है। इसमें भगवान विष्णु अर्धपारायणक्षण मुद्रा में बैठे हैं। सिर पर मुकुट है और चार हाथ हैं। ऊपर वाले हाथ में गदा है और नीचे वाला दाहिना हाथ टूटा हुआ है। ऊपर वाली बाएं हाथ में चक्र सुशोभित नजर है। प्रतिमा के ऊपर उड़ते विद्याधर दंपति को उकेरा गया है। 

ज्ञानवापी के विवादित ढांचे में मिली भगवान विष्णु की खंडित प्रतिमा।

पश्चिमी कक्ष से मिला शिवलिंग
मस्जिद के पश्चिमी कक्ष से एक शिवलिंग भी मिला है। इस शिवलिंग की लंबाई 2.5 सेंटीमीटर, चौड़ाई 3.5 सेंटीमीटर और व्यास 2 सेंटीमीटर है। शिवलिंग के नीचे का हिस्सा क्षतिग्रस्त है। वहीं शिवलिंग का ऊपरी हिस्सा 

पश्चिमी कक्ष से मिला टूटा हुआ शिवलिंग।

शिलालेख संख्या 2 में लिखा है शब्द 'आर्यावर्त'
शिलालेख संख्या 02  में संस्कृत भाषा और नागरी लिपि में लिखे शब्द मिले हैं। रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि इस शिलालेख में 1 से 4 तक पंक्तियां ठीक से नजर नहीं आ रही है। पांचवीं पंक्ति में  मो..., छठी पंक्ति में  ञ लिखा है। इसी शिलालेख में 11 वीं पंक्ति में आर्यवतीनामु, 12 वीं पंक्ति में उनवी जय, 13 वीं पंक्ति में दामो तेषां, 14वीं पंक्ति में आजीस लिखा गया गया था। इसमें एक शब्द आर्यावर्त बेहद स्पष्ट है। 

ज्ञानवापी में मिले कुछ शिलालेख बिल्कुल स्पष्ट हैं जिन पर संस्कृत के शब्द लिखे हुए हैं।

शिलालेख संख्या 4 में क्या मिला
एएसआई की रिपोर्ट में शिलालेख संख्या 4 में भी संस्कृत भाषा और नागरी लिपि में लिखे शब्द मिले हैं। 17वीं शताब्दी के इस शिलालेख में भी सारे शब्द तो स्पष्ट नहीं हैं लेकिन महामुक्तिमंडपा और त्रोमै यानी नौमि लिखा हुआ मिला है। इस शिलालेख का आकार 152x16 सेंटीमीटर है। 

ज्ञानवापी मेंं मिले शिलालेख जिनमें संस्कृत के शब्द लिखे हैं।

शिलालेख संख्या 13 में लिखे हैं संस्कृत के कई शब्द
शिलालेख संख्या 13 में लिखे शब्द एकदम साफ-साफ नजर आ रहे हैं। इसमें श्रीमच्छा, पा भृगुवास, वद्विजातिश्च,ज्ञाय अर्जानी, णरायै: परोप और जातिभि: धर्मज्ञ: जैसे शब्द लिखे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक यह शिलालेख 13वीं शताब्दी का है। 

मंदिर होने के 34 सबूत मिले हैं
एएसआई की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि सर्वेक्षण और वैज्ञानिक अध्ययन के दौरान विवादित ढांचे से 34 ऐसे सबूत मिले हैं जिनसे यह पता चलता है कि पहले यहां मंदिर मौजूद था। एएसआई ने रिपोर्ट में बताया है कि विवादित ज्ञानवापी मस्जिद के वास्तुशिल्प, यहां मौजूद कलाकृतियों, शिलालेखों और मूर्तियों का अध्ययन किया गया। इसके आधार पर कहा जा सकता है कि 17वीं शताब्दी से पहले यहां एक मंदिर था। 

अरबी-फारसी शिलालेख भी मिले
एएसआई की रिपोर्ट के मुताबिक, विवादित ढांचे के एक कमरे में अरबी-फारसी शिलालेख मिले हैं। मस्जिद औरंगजेब के 20 वें शासन काल में 1676-77 CE के बीच तैयार किया गया। हालांकि, जो भी मुगलकालीन शिलालेख मिले हैं, वह 17वीं शताब्दी से पहले के नहीं हैं। वहीं, कई ऐसे दूसरे शिलालेख भी है जो मुगलकाल से भी पुराने हैं और उनपर संस्कृत और नागरी अक्षर उकेरे गए हैं। 

मस्जिद के कई हिस्सों का वैज्ञानिक अध्ययन
एएसआई ने रिपोर्ट तैयार करने के लिए मस्जिद के सेंट्रल चेम्बर का अध्ययन किया। इसके साथ ही यह भी पता चला है कि मस्जिद के मुख्य प्रवेश द्वार को यहां पहले से मौजूद मंदिर के ढांचे का इस्तेमाल करके बनाया गया है। मंदिर के पश्चिमी कक्ष और दीवार भी मंदिर के अवशेषों से तैयार किए गए हैं। मस्जिद के खंभे भी ऐसे हैं जैसे किसी मंदिर में होते हैं। मस्जिद के तहखाने में मूर्तियों के अवशेष मिले हैं।