VVPAT Case: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार 24 अप्रैल को इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) और वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) से जुड़ी याचिका पर सुनवाई की। याचिका में ईवीएम से डाले गए वोट की VVPAT पर्चियों के साथ क्रॉस वेरिफिकेशन की मांग की गई थी। स सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल इस मामले में अपना आदेश सुरक्षित रख लिया है। जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दिपांकर दत्ता ने कहा कि कोर्ट सिर्फ संदेह के आधार पर कार्रवाई नहीं कर सकती है।
'हम आपके थॉट प्रोसेस को बदलने के लिए नहीं बैठे'
इससे जुड़ी याचिका चुनाव सुधार के लिए काम करने वाली गैर सरकारी संगठन, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने दायर की थी। एडीआर की ओर से कोर्ट में जाने माने वकील प्रशांत भूषण पेश हुए। सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण से कहा कि अगर आप किसी थॉट प्रोसेस (विचार प्रक्रिया) को लेकर पहले से मन बना बैठे हैं, तो हम आपकी मदद नहीं कर सकते। हम यहां पर आपके साेचने के तरीकों को बदलने के लिए नहीं बैठे हैं। बता दें कि विपक्षी पार्टियां लंबे समय से ईवीएम सिस्टम को लेकर कई तरह की आशंकाएं जाहिर कर रही हैं।
यूरोपियन देशों के सिस्टम की दी गई थी दलील
एडीआर ने अपनी याचिका में कोर्ट से मांग की थी कि ईवीएम मशीन से डाले जाने वाले हर वोट का मिलान VVPAT पर्ची के साथ किया जाए। मौजूदा समय में हर विधानसभा क्षेत्र से पांच रैंडम ईवीएम मशीनों से डाले गए वोट का VVPAT पर्ची से क्रॉस चेकिंग की जाती है। इससे पहले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने ईवीएम से डाले गए वोटों पर जनता का भरोसा नहीं होने का मुद्दा उठाया था। साथ ही यूरिपयन देशों में वोटिंग सिस्टम के लिए अब भी बैलट सिस्टम का इस्तेमाल किए जाने की दलील दी थी। इस पर कोर्ट ने कहा था कि ऐसी तुलना नहीं की जा सकती क्योंकि भारत में चुनाव कराने में विदेशों के तुलना में अलग तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
क्या होता है VVPAT स्लिप?
बता दें कि ईवीएम मशीन में एक कंट्रोल यूनिट और एक बैलेट यूनिट होता है। यह दोनों एक केबल से जुड़ी होती हैं। इसके साथ ही ईवीएम एक वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) मशीन से भी जुड़ी होती है। इस मशीन से एक पर्ची निकलती है। इस पर्ची के आधार पर ही वोटर तय कर सकता है कि उसकी वोटिंग सही ढंग से हुई है या नहीं। यानी कि वोटर VVPAT स्लिप की मदद से यह जान सकता है कि उसका वोट उसी कैंडिडेट को गया है कि नहीं जिसका वह समर्थन करता है।
अदालतन ने कार्यवाही करते हुए सिस्टम में माइक्रोकंट्रोलर के बारे में चुनाव निकाय से कुछ स्पष्टीकरण मांगे। जिसमें चुनाव आयोग ने जवाब दिया कि तीनों इकाइयों के पास अपने-अपने माइक्रोकंट्रोलर हैं और इन्हें केवल एक बार ही प्रोग्राम किया जा सकता है। इस पर एडवोकेट भूषण ने तर्क देते हुए कहा कि इन माइक्रोकंट्रोलर्स में एक फ्लैश मेमोरी होती है जिसे दोबारा प्रोग्राम किया जा सकता है। उन्होंने कहा, "यह कहना गलत है कि यह दोबारा प्रोग्राम करने योग्य नहीं है।
चुनाव निकाय की तकनीकी रिपोर्ट पर भरोसा करना होगा- सुप्रीम कोर्ट
इस दौरान अदालत में न्यायमूर्ति खन्ना ने वकील भूषण से कहा कि चुनाव निकाय की तकनीकी रिपोर्ट पर भरोसा करना होगा। फ्लैश मेमोरी की मात्रा बहुत कम है। उसमें 1024 चिंहो को एक साथ संग्रहित किया जा सकता है, लेकिन सॉफ्टवेयर को नहीं। जहां तक सीयू (नियंत्रण इकाई) में माइक्रोकंट्रोलर का सवाल है, यह अज्ञेयवादी है। अदालत ने यह भी कहा कि क्या हम संदेह के आधार पर परमादेश जारी कर सकते हैं? हम किसी अन्य संवैधानिक प्राधिकरण के नियंत्रक प्राधिकारी नहीं हैं, हम चुनाव को नियंत्रित नहीं कर सकते।