क्या है Places of Worship Act 1991: इसे खत्म करने की मांग BJP सांसद हरनाथ यादव ने उठाई, क्या है काशी-मथुरा से कनेक्शन? जानें सबकुछ

What is Places Of Worship Act?: अयोध्या के बाद अब काशी में ज्ञानवापी और मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद गमार्या है। इस बीच सोमवार को भाजपा के राज्यसभा सांसद हरनाथ सिंह यादव ने उच्च सदन में पूजा स्थल अधिनियम, 1991 (Places of Worship Act 1991) मुद्दा उठाया। उन्होंने इस कानून पर सवाल उठाते हुए इसे निरस्त करने की मांग रख दी। उन्होंने दावा किया कि यह कानून संविधान में निहित समानता और धर्मनिरपेक्षता के अधिकारों का उल्लंघन है।
हिंदू, सिख और बौद्धों के अधिकारों के खिलाफ कानून
राज्यसभा में बोलते हुए हरनाथ सिंह यादव ने कहा कि कानून में प्रावधान है कि राम जन्मभूमि मामले को छोड़कर, धार्मिक स्थलों से संबंधित सभी मामले समाप्त माने जाएंगे और कानून का उल्लंघन करने वालों को 3 साल तक की सजा हो सकती है। उन्होंने कहा कि पूजा स्थल अधिनियम कानूनी जांच पर रोक लगाता है जो संविधान की विशेषता है। उन्होंने कहा कि कानून के प्रावधान हिंदू, सिख और बौद्धों के अधिकारों के खिलाफ हैं।
राम मंदिर में भी कानून का दुरुपयोग हुआ
सांसद हरनाथ सिंह ने कांग्रेस पर तंज कसते हुए कहा कि पीवी नरसिम्हा राव सरकार ने 1991 में पूजा स्थलों की स्थिति को 15 अगस्त, 1947 को स्थिर करने के लिए कानून बनाया था। यह हिंदू वादियों को काशी, मथुरा के मुद्दों को अदालतों में ले जाने से रोकने में विफल रहा। इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य मथुरा और काशी सहित धार्मिक स्थलों के स्वामित्व को लेकर हिंदुओं और मुसलमानों के बीच कानूनी विवादों को रोकना था। अयोध्या में राम मंदिर की प्रगति को रोकने के लिए कानून का दुरुपयोग भी किया गया।
राम और कृष्ण में भेद करता है कानून
उन्होंने कहा कि आजादी के बाद जो लंबे समय तक सरकार में रहे, वह हमारे धार्मिक स्थलों की मान्यता को नहीं समझ सके। उन्होंने राजनीतिक फायदे के लिए अपनी ही संस्कृति पर शर्मिंदगी महसूस होने की प्रवृत्ति स्थापित की। वर्शिप एक्ट का स्पष्ट अर्थ है कि विदेशी आक्रांताओं ने जो तलवारों की नोक पर ज्ञानवापी और मथुरा समेत अन्य पूजा स्थलों पर जबरन कब्जा कर लिया, उसे सरकारों ने सही ठहरा दिया है। यह कानून भगवान श्रीराम और भगवान श्रीकृष्ण के बीच भेदभाव पैदा करता है। जबकि दोनों अवतार भगवान विष्णु के हैं। समाज के लिए दो कानून नहीं हो सकते हैं। यह कानून पूरी तरह से असंवैधानिक, अतार्किक है। मैं देशहित में चाहता हूं कि इस कानून को खत्म कर दिया जाए।
आज राज्य सभा में शून्यकाल में मेरे द्वारा #पूजा_स्थल_कानून_1991 निरस्त करने का मुद्दा उठाया गया।
— हरनाथ सिंह यादव (Harnath Singh Yadav) (@harnathsinghmp) February 5, 2024
"यह कानून भगवान राम और भगवान श्रीकृष्ण के बीच भेद करता है जबकि दोनों भगवान विष्णु के अवतार हैं।"
"यह कानून हिंदू, जैन, सिक्ख, बौद्धों के धार्मिक अधिकारों का हनन करता है।"
-- सुने… pic.twitter.com/dEKwrdYMu4
क्या है वर्शिप एक्ट?
पूजा स्थल अधिनियम यानी वर्शिप एक्ट के तहत 15 अगस्त, 1947 से पहले बने किसी भी धार्मिक स्थल को दूसरे धार्मिक स्थल में नहीं बदला जा सकता है। कानून कहता है कि पूजा स्थल के चरित्र में परिवर्तन से संबंधित सभी चल रही कानूनी कार्यवाही, जो 15 अगस्त, 1947 को किसी भी अदालत या प्राधिकरण के समक्ष लंबित थी, कानून प्रभावी होने पर बंद हो जाएगी। और कोई नई कानूनी कार्रवाई शुरू नहीं भी की जा सकती है। उल्लंघन पर तीन साल की कैद और जुर्माना लग सकता है।
फिर अयोध्या विवाद अपवाद क्यों?
वर्शिप एक्ट से अयोध्या के राम जन्मभूमि विवाद को अलग रखा गया था। विवाद अदालत में चल रहा था।
ज्ञानवापी पर सुनवाई क्यों शुरू हुई?
ज्ञानवापी विवाद में भी मुस्लिम पक्ष ने इसी कानून का उल्लेख करते हुए विरोध किया। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्टे लगा दिया। लेकिन 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि किसी भी मामले में 6 महीने के लिए स्टे ऑर्डर रहेगा। इसके बाद वाराणसी अदालत में फिर ज्ञानवापी प्रकरण में सुनवाई शुरू हो गई। अगले दो सालों के भीतर मामला व्यासजी तहखाने में पूजा पाठ तक पहुंच गया। मथुरा में भी सुप्रीम कोर्ट का आदेश काम आया। हिंदू पक्ष ने आधार बनाकर वाद दायर किया।
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