Acharya Vidyasagar Maharaj ka Samadhi maran: आचार्य विद्यासागर महाराज अपनी असाधारण विद्वता, अनुशासित जीवन और एक गहन आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने महज 21 साल की उम्र में आध्यात्मिकता को अपना लिया था और 500 से अधिक दीक्षाएं दी। इसके लिए उन्हें गिनीज आफ वर्ल्ड रिकार्ड में ब्रह्मांड के देवता के रूप में सम्मानित किया गया।
आचार्य विद्यासागर ने राजस्थान के अजमेर में दीक्षा ली थी। उनका जन्म कर्नाटक के सदलगा गांव में 10 अक्टूबर 1946 को हुआ था। आचार्य विद्यासागर के दो भाई और दो बहनें हैं। एक भाई और दोनों बहन स्वर्णा और सुवर्णा ने भी ब्रह्मचर्य अपना लिया है। आचार्य विद्यासागर के पिता का नाम मलप्पा और माता का नाम श्रीमति था। दोनों ने आचार्य विद्यासागर से ही दीक्षा लेकर समाधि मरण को प्राप्त किया था।
कुंडलपुर में अक्षरधाम की तर्ज पर बनवाया भव्य मंदिर
आचार्य विद्यासागर मप्र से बेहद लगाव था। MP के स्थत कुंडलपुर (दमोह जिले में है) में अक्षरधाम की तर्ज पर भव्य मंदिर बनवाया था। साथ ही बड़ा बाबा आदिनाथ की मूर्ति स्थापित कराई थी। इसके लिए पूरे बुंदेलखंड में आचार्यश्री छोटे बाबा के नाम से ख्यात थे।
आचार्य विद्यासागर महाराज का प्रभाव आध्यात्मिकता के दायरे से कहीं आगे तक फैला हुआ था। विशेषकर बुन्देलखण्ड क्षेत्र में शिक्षा और सामाजिक कल्याण पहलों को बढ़ावा देने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनके प्रयास से स्कूल, अस्पताल और सामुदायिक केंद्रों की स्थापना हुई, जिससे अनगिनत लोगों के जीवन में बदलाव आया।
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