Lok Sabha Election: कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में अपनी दो प्रतिष्ठित सीटों- अमेठी और रायबरेली के लिए उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। इसके साथ पार्टी की वरिष्ठ नेता प्रियंका गांधी वाड्रा के चुनावी पदार्पण की अटकलों पर भी प्रभावी रूप से विराम लग गया है। ऐसे में बड़ा सवाल है कि आखिरकार प्रियंका गांधी वाड्रा ने चुनाव से अपने कदम पीछे क्यों हटा लिए? केएल शर्मा को अमेठी के लिए क्यों चुना गया? इसका जवाब तलाशेंगे...पढ़िए रिपोर्ट।
प्रियंका गांधी के चुनाव लड़ने की 2 बड़ी वजह
पहली वजह: भाई से कोई सियासी टकराव न हो
पार्टी के सूत्रों का कहना है कि सोनिया गांधी के राजस्थान से राज्यसभा सदस्य चुने जाने के बाद से रायबरेली में कांग्रेस प्रत्याशी की तलाश शुरू हो गई थी। पार्टी प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रियंका गांधी से अमेठी या रायबरेली से चुनाव लड़ने का अनुरोध किया था, लेकिन तब उन्होंने इनकार कर दिया।
बाद में प्रियंका गांधी की टीम ने उन्हें रायबरेली, प्रयागराज, फूलपुर और वाराणसी का सर्वे कराया और इसकी रिपोर्ट उन्हें सौंपी गई। तब प्रियंका गांधी ने रायबरेली से चुनाव लड़ने में रुचि दिखा रही थीं। वह रायबरेली से चुनाव लड़ना चाहती थीं। लेकिन इसी बीच राहुल गांधी भारत जोड़ो न्याय यात्रा शुरू हो गई। पार्टी के नेताओं ने प्रियंका के बजाय राहुल गांधी का नाम रायबरेली के लिए आगे बढ़ा दिया। इस पर प्रियंका ने चुप्पी साध ली। उनकी अीम भी धीरे-धीरे यूपी चुनाव से दूर होती चली गई।
इसकी वजह साफ थी। प्रियंका गांधी नहीं चाहती थीं उनके और भाई राहुल गांधी के बीच कोई सियासी टकराव हो। ऐसे में उन्होंने अपनी टीम से कहा कि चुनाव तो कभी भी लड़ लेंगे।
दूसरी वजह: वंशवाद के आरोपों से बचना चाहती हैं प्रियंका
सूत्रों का कहना है कि प्रियंका गांधी के चुनाव न लड़ने की दूसरी बड़ी वजह वंशवाद के आरोप हैं, जो अक्सर पीएम मोदी और भाजपा लगाती रहती है। प्रियंका का मानना था कि उनकी और उनके भाई राहुल गांधी की जीत से गांधी परिवार के तीन सदस्य संसद में पहुंच जाएंगे। मां सोनिया गांधी अब राज्यसभा में हैं। उन्होंने तर्क दिया कि इससे भाजपा के वंशवादी राजनीति के आरोप को बल मिलेगा।
हालांकि, कुछ नेताओं को डर है कि उनके फैसले से मतदाताओं के बीच नकारात्मक धारणा पैदा हो सकती है। प्रियंका गांधी वाड्रा बड़े पैमाने पर प्रचार कर रही हैं और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के ग्रैंड ओल्ड पार्टी पर 'मंगलसूत्र' आरोप के बाद कांग्रेस के जवाबी हमले का चेहरा रही हैं। कई लोगों का मानना है कि अगर वह चुनाव लड़तीं तो कांग्रेस को उनकी स्टार पावर से फायदा हो सकता था।
केएल शर्मा को क्यों अमेठी से मिला टिकट?
राहुल गांधी अमेठी सीट से तीन बार सांसद रहे हैं। इसके बजाय उन्हें रायबरेली से मैदान में उतारा गया। अमेठी सीट के लिए कांग्रेस ने किशोरी लाल शर्मा को चुना। केएल शर्मा लंबे समय से गांधी परिवार के वफादार हैं। वह पहले रायबरेली में सोनिया गांधी के प्रतिनिधि के रूप में काम कर चुके हैं। उनका यह पहला चुनाव होगा।
पंजाब के लुधियाना के रहने वाले केएल शर्मा 1983 में पूर्व पीएम राजीव गांधी के साथ अमेठी पहली बार गए थे। तब से वह वहीं के होकर रह गए। सोनिया गांधी के राज्यसभा चुने जाने के बाद केएल शर्मा को रायबरेली से दावेदार माना जा रहा था। लेकिन पार्टी ने उन्हें अमेठी से उम्मीदवार बनाया है। प्रियंका गांधी ने केएल शर्मा को बधाई दी है।
केएल शर्मा बोले- मैंने 40 साल सेवा की
उम्मीदवार बनाए जाने के बाद केएल शर्मा ने कहा कि मुझे मौका देने के लिए मैं कांग्रेस पार्टी, मल्लिकार्जुन खड़गे, सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को धन्यवाद देना चाहता हूं। मैं यहां 40 से काम कर रहा हूं। बहुत खुश हूं कि मुझे यह जिम्मेदारी दी गई।
दोनों नेता आज दाखिल करेंगे नामांकन
राहुल गांधी 2024 का लोकसभा चुनाव 2 सीट से लड़ रहे हैं। केरल के वायनाड में 26 अप्रैल को वोटिंग हो चुकी है। रायबरेली के लिए वह आज नामांकन करेंगे। अमेठी से केएल शर्मा पर्चा भरेंगे। लोकसभा चुनाव के पांचवें चरण में 20 मई को अमेठी और रायबरेली में मतदान होगा।
राहुल गांधी का मुकाबला रायबरेली में भाजपा के दिनेश प्रताप सिंह से होगा और केएल शर्मा का मुकाबला अमेठी में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी से होगा। ईरानी ने 2019 के चुनावों में राहुल गांधी के खिलाफ एक चौंकाने वाली जीत हासिल की थी। कांग्रेस नेताओं को भरोसा है कि राहुल गांधी रायबरेली में प्रचंड जीत दर्ज करेंगे। अमेठी के लिए उनका कहना है कि केएल शर्मा जमीनी स्तर के नेता हैं जो अच्छा प्रदर्शन करेंगे।
भाजपा ने राहुल को बताया भगोड़ा
भाजपा ने राहुल गांधी को अमेठी से रायबरेली भेजने के कांग्रेस के कदम पर उन पर कटाक्ष किया है। पार्टी प्रवक्ता जयवीर शेरगिल ने कहा कि कांग्रेस अब दिवास्वप्न देखने की आदी हो गई है। अमेठी में चुनाव नहीं लड़ने के राहुल गांधी के फैसले से पता चलता है कि कांग्रेस के अभियानों में आत्मविश्वास की कमी है। एक जिम्मेदार जनरल की तरह लड़ाई का नेतृत्व करने के बजाय, वह एक भगोड़े सैनिक की तरह व्यवहार कर रहे हैं।