डा. महेंद्र सिंह मलिक का लेख : जननायक चौधरी देवी लाल बनाम किसान आंदोलन

डा. महेंद्र सिंह मलिक ( पूर्व डीजीपी हरियाणा)
06 अप्रैल 2001, राष्ट्र के समस्त किसान–कामगार–काश्तकार के लिये एक अत्यधिक शोक दिवस के तौर से विख्यात रहेगा। इस दिन राष्ट्र के पूर्व उपप्रधान मंत्री जननायक ताऊ देवी लाल का पार्थिक शरीर उनके निवास स्थान 100 लोधी रोड़ नई दिल्ली में जनता जनार्धन के दर्शन हेतू जीवन की अंतिम यात्र की इंतजार में रखा गया था। ताऊ की जीवन गाथा ग्रंथ का प्रारूप भी प्रागंण में आम आदमी की टिप्पणी हेतु उपलब्ध था।
अत: एक लेखक ने ग्रंथ में बरवान किया कि "जन–जन की आवाज धरती पुत्र की आत्मा धरती में विलिन हो गई"। तत्पश्चात् भारतीय सेना का सैनिक दस्ता तिरंगे सहित वहां पहुंचा और पार्थिक शरीर को राष्ट्रीय ध्वज में सुशोभित कर सेना बैड ने शोक की सम्मानित ध्वनि बजानी शुरू की व सशस्त्र सैनिक टुकड़ी ने पार्थिक शरीर को सलामी देकर फूलों से सुशोभित सैनिक वाहन में रखा व धीरे–धीरे वाहन अतिंम यात्र स्थल की ओर रवाना हुआ। अंतिम यात्र का कारवां बढ़ता रहा और राष्ट्र के कोने–कोने से लाखों की भीड़ कारवां के साथ उमड़ पड़ी और जननायक को अंतिम सलामी देते हुए आकाशभेदी नारे – "जब तक सूरज चांद रहेगा, ताऊ देवी लाल तेरा नाम रहेगा" गुजने लगे। उनके श्रद्धाजंली समारोह में स्वद्ग प्रधान मंत्री अटल बिहारी बाजपेयी जी ने कहा था कि वे " जन नायक और सच्चे सिपाही थे जो जीवन प्रयंत दलित, काश्तकार व ग्रामीण वर्ग के लिये संघर्षरत रहे।"
आज किसान आंदोलन के प्रति सरकार की बेरूखी से व्यपित होकर ताऊ देवी लाल को याद कर लेखक अत्यन्त भावुक हैं क्योंकि ताऊ देवी लाल ने 1977 में हरियाणा प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने से पूर्व ही किसान–काश्तकार के लिये हुकांर भरी व कहा था कि "किसान–काश्तकार का बेटा देश का प्रधानमंत्री व दलित का बेटा राष्ट्रपति बनेगा" तो तभी देश आर्थिक व प्रजातात्रत्मक दृष्टि से सम्पन्न होगा और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का स्वालम्बी भारत का सपना साकार होगा। इसी प्रकार देश के विभिन्न राज्यों विशेषकर हरियाणा व केन्द्र में शासक दलो के प्रति जनता का असन्तोष बढ़ने लगा व कुछेक आत्याधिक स्वार्थी व भ्रष्ट राजनेताओं के विरूध नारे लगने लगे व रोष उभरने लगा "धोखेबाज व भ्रष्ट राजनेता गदी छोडो, किसान विरोधी शासक गदी छोड़ों"। तब 1977 से 1979, 1987–88 व 1989 में ताऊ देवी लाल उन्हीं मुदों को लेकर जनता की आवाज बन आगे बढ़े व प्रजातंत्र की मजबूती के लिये नया नारा बुलन्द किया कि "लोकराज लोक लाज से चलता है" और जनहित के लिए स्वार्थी व भ्रष्ट जनप्रतिनिधियों को वापस बुलाने का कानून बनाने की मांग की।
लेकिन यह अत्यन्त दुख का विषय है कि आज साढ़े तीन मास से औषि विरोधी तीन कानूनों को रद्द करने व किसानों की समसयाओं का हल करने के लिये सर्घषरत किसानों की समस्याओं के समाधान के प्रति केन्द्रीय सरकार बिल्कुल गंभीर नहीं है। इस जन–आंदोलन मेंं लगभग 300 किसान जान गवा चुके है और सरकार किसान–काश्तकार को दोफाड़ करने में लगी है। इसी प्रकार के किसान–काश्तकार व औषि विरोधी आंदोलन सन् 1917, 1918 व 1928 में भी हो चुके है जिसमें सरकार को जन साधारण के भारी रोष का सामना करना पड़ा था और ये तीनों आंदोलन सफल रहे थे। वर्ष 1917 का जन आंदोलन शहीद भगत सिंह के चाचा सरदार अजीत सिंह की अगुवाई में "पगंड़ी सम्भाल जटा" के जोशीले नारे में चलाया गया था। आज फिर किसान की पगड़ी उछाल दी गई है जिसकी लाज के लिये एकछत्र दंबग व निश्पक्ष किसान नेता की आवश्यकता है, अत: आज जनता चौद्ग देवीलाल जैसे किसान व जनप्रिय नेता की राह देख रही है जो जनता–जनार्धन की आवाज को उठाने के लिये जनता के बीच पहुंच कर रेल व सड़क यातायात तक अवरूध कर देते थे।
चौधरी देवीलाल ने भातीय राजनीति का हर पद ग्रहण किया लेकिन अपनी जमीनी सोच और कार्यशैली में कभी बदलाव नहीं लाए। वे हर गांव के दूर कोने में बसने वाले को नाम से जानते थे, उनकी काटड़ी–बछड़ी की बात करते थे। पद की गारिमा–प्रतिष्ठ को बरकरार रखते हुए वे दरिद्र नारायण के घर द्वार तक पहुंचे और उनके जीवन में विकास की किरण भी पहुंचाई। सत्ता के बिना भी उन्होने लोगों के दिलों पर राज किया। वे शरीर जरूर छोड़ गए लेकिन उनकी आत्मा आज भी जीवित है। यह ताऊ का करिश्माई व्यक्तित्व ही था कि विधान सभा की की 90 में से 85 सीटें जीते तथा 1999 में चौटाला जी के गठबंधन में भाजपा ने लोकसभा की सभी 10 सीटों पर विजय पताका फहराई।
उन्होने 14–15 वर्ष की आयु में ही संघर्ष का दामन थाम लिया था और वही उनकी जीवन शैली बन गया तभी उन्होने अपना नाम भारतीय इतिहास में सुनहरे अक्षरों में अंकित कर दिया। कांग्रेंस मुक्त भारत की वास्तविक नींव चौधरी देवी लाल ने ही रखी थी। संपूर्ण राष्ट्र को उन्होने एक सूत्र में पिरो दिया और पहली बार केंद्र में कांग्रेंस को सत्ता के गलियारों से दूर कर दिया। वे विपक्षी एकता के कर्णधार बने। वे किंग मेकर की भूमिका में ही रहे कभी किंग बनने का सपना ना देखा। प्रधानमंत्री ताज सर्वसम्मति से उन्हे दिया गया लेकिन तप–त्याग की मूर्ति चौधरी देवीलाल ने बहुत गारिमामय ढंग से वीपी सिंह के सिर पर धर दिया। जब वे उनके मानकों पर खरे नहीं उतरे तो चंद्रशेखर को गद्दी पर बिठा दिया और खुद संघर्ष की शैली पर चल निकले। ऐसा भी नहीं है कि केवल उनकी सोच खेत खलिहान तक ही सीमित रही हो, शिक्षा के क्षेत्र में भी उनका उल्लेखनीय योगदान रहा। घुमंतू परिवारों के बच्चों को स्कूल लाने हेतू प्रलोभन एक रूपया प्रति दिन से शिक्षा का प्रसार, स्त्री शिक्षा को बढ़ावा, गरीब बच्चों को वर्दी, कापी–किताब के साथ नि:शुल्क प्राथमिक शिक्षा, नि:शुल्क जन स्वास्थ्य हेतू 'जच्चा–बच्चा कल्याण योजना, प्रशासन आपके द्वार, भ्रष्ट्राचार बंद पानी का प्रबंध, किसान के खेत तक पक्के खालें, सरकारी भूमि पर लगे वृक्षों से किसान की फसल को होने वाली क्षतिपूर्ति हेतू हिस्सा, वृद्धा सम्मान पैंशन, कन्यादान, विकलांग पैंशन, इटरव्यू के लिये जाने वाले छात्रें का किराया माफी आदि उनकी इतनी गहरी सोच को कोई कैसे नजर अंदाज कर सकता है। अत: पूरे राष्ट्र में ताऊ आज समाज कल्याण योजनाओं के सुत्रधार माने जाते हैं।
खेल खिलाडियों और सुरक्षा सेनाओं के जवानों के विकास हेतू ताऊ ने विशेष रूप रेखा बनाई। कुश्ती के खेल के प्रति उनकी विशेष रूचि थी। हरियाणा प्रांत में वर्ष 1978 में प्रथम बार मुख्यमंत्री बनते ही उन्होने करनाल पुलिस लाईन में कुश्ती खेल नियमावली के अनुसार गद्दों पर राष्ट्रीय कुश्ती प्रतियोगिता करवाई। वार हीरोज मैमोरियल स्टेडियम अंबाला कैंट में प्रथम बार कुश्ती को राज्य खेल घोषित किया। इसी प्रकार वर्ष 1989 में हरियाणा पुलिस विभाग में सिपाही से लेकर इंस्पैक्टर तक के पदों में 3 प्रतिशत के आरक्षण का प्रावधान किया और प्रथम बार पूरे राष्ट्र में सुचारू तौर से खेल नीति बनाने की रूप रेखा तैयार की। इस नीति को आगे बढ़ाते हुए उनके सपुत्र पूर्व मुख्यमंत्री श्री औमप्रकाश चौटाला ने एक विधिगत खेल नीति अपनाई और सभी सरकारी विभागों में खिलाडियों के लिए 3 प्रतिशत कोटा आरक्षित किया। इसी कारण हरियाणा आज पूरे राष्ट्र में खेलों में प्रथम नंबर पर है। इसी प्रकार पुलिसकर्मियों की समय बद्घ पदौन्नति का प्रावधान किया। यही नहीं 15 से 18 वर्ष की सर्विस के बाद सिपाही को हवलदार पद पर पदौन्नति का नियम बनाया। इस प्रणाली को आगे बढ़ाकर श्री औमप्रकाश चौटाला ने अपने मुख्यमंत्री कार्यकाल वर्ष 2000–2005 में 30–35 वर्ष की सर्विस वाले कर्मचारियों को पुलिस उपनिरीक्षक तक समयबद्घ पदौन्नति करने का प्रावधान किया। अत: आज हरियाणा प्रांत में सिपाही समयबद्ध तरक्की के आधार पर उप निरीक्षक के पद तक सेवानिवृत होता है जो कि पूरे राष्ट्र में एक अनुठी पहल है।
दूसरों के गम में शरीक होना और यथासंंभव मदद उनकी फितरत थी। प्रदेश में बाढ़ आ गई तो रिंग बांध योजना बनी और आनन–फानन में कसी तसला लेकर खुद पहुंच गए तथा यह योजना आज तक कारआमद है। तदोपरांत बाढ़ ने कभी राज्य में नुकसान नहीं पहुंचाया। हरियाणा के हिस्से का पानी लेने हेतू फैसला भी करवाया। उस वक्त पंजाब से अकाली नेता उनके साथ रहे जो बाद में राजनैतिक कारणों से यह फलीभूत नहीं हो पाई लेकिन हरियाणा में इस कार्य की परिणिती में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। वे वास्तव में जन नायक थे। गांव में चौपाल की स्थापना और वहां हुक्का की व्यवस्था करना तथा गांव के विकास हेतू मैचिंग ग्रांट आदि अनेकों योजनाओं के वे जनक रहे। आज सरकार की नीतियां सर्वथा किसान विरोधी है। आरामदायक श्रेणी में मानी गई कार पर बैंक लोन का ब्याज 7.65 प्रतिशत है जबकि किसान के लिये जरूरी औषि यंत्र–टै्रक्टर को वर्तमान के्द्रिरय द्वारा वाणिज्य वाहन घोषित कर सभी प्रकार के पंजीकरण कर, रोड़ टैक्स, नवीकरण खर्च आदि लगा दिये गये जबकि पूर्व उपप्रधान मंत्री चौद्ग देवी लाल ने ट्रैक्टर को किसान का गड्डा(वाहन) मानकर सभी करो से मुक्त किया था।
छोटे काश्तकारों को उनका अधिकार दिलाने हेतू पंजाब विधानसभा में भू–पट्टेदारी अधिनियम 1953 बनवाकर मुजारों की बेदखली को रोका गया। इस अधिनियम के द्वारा 6 साल से भूमि काश्त कर रहे मुजारों को अदालत के माध्यम से आसान किश्तों पर जमीन खरीदने का अधिकारी दिलाकर मालिकाना हक दिलवाया। इसके इलावा उन्होने अपनी खुद की अधिकतर पुस्तैनी जमीन मुजारों व छोटे काश्तकारों को काश्त करने के लिए स्थाई तौर पर आंबटित कर दी थी। वे जन साधारण के कल्याण व उत्थान के लिए आवश्यक मूलभूत कल्याणकारी नीतियों के सुत्रधार रहे हैं। सारे राष्ट्र में उन्होने गरीब, किसान व शोषित वर्ग के लिए विभिन्न प्रकार की समाज कल्याणकारी योजनाएं शुरू की थी जिसका बाद में केंद्रीय सरकार तथा अन्य राज्य सरकारों ने अनुसरण किया है।
उन्होने हरियाणा बनने से पूर्व आम आदमी को न्याय दिलाने के लिए संघर्ष किए। वे अपनी दूरदर्शी व पारदर्शी सोच के द्वारा हर प्रकार की समस्या का समाधान निकाल लेते थे। राष्ट्रहित में किसी भी राजनैतिक व सामाजिक मुद्दे पर वे अपने विरोधियों तक से भी सलाह मश्वरा करने में संकोच नहीं करते थे। अपनी निष्कपट, निस्वार्थ व त्यागी छवि के कारण वे समस्त राष्ट्र में 'ताऊ' के नाम से प्रसिद्ध हुए। उनका मानना था कि गांवों के विकास के बिना राष्ट्र तरक्की नहीं कर सकता क्योंकि शहरों की समृद्धि का मार्ग गांवों से होकर गुजरता है। इसलिए अपने शासनकाल में ग्रामीण मजदूर व काश्तकारों के साथ अन्याय नहीं होने दिया। किसान कामगार व ग्रामीण मजदूर के हितों के प्रति उनके प्रयासों को देखते हुए स्वर्गीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने स्वर्गीय ताऊ देवीलाल के प्रति इस प्रकार से विचार व्यक्त किए – ''चौधरी देवीलाल एक व्यक्ति नहीं, बल्कि एक ऐसी शक्ति है जो कि दूसरों को आगे बढने के लिए सदैव गतिशील व मार्गदर्शक हैं, उनके व्यक्तित्व में एक खास –ढ़ता है और संघर्ष ही उनका जीवन है लेकिन उनके हृदय में दूसरों के प्रति पे्रम व सहानुभूति का गतिशील आवास है। हरियाणा प्रांत के हितों के प्रति सदैव सचेत चौधरी देवीलाल को संपूर्ण राष्ट्र के भविष्य की भी चिंता सताई रहती है।''
लेखक को उनके दलित प्रेम का नीजि ज्ञान है क्योंकि सन् 1986–87 में स्वंय उन्होने दलित वर्ग से संबंधित एक आईद्गएद्गएसद्ग (सेवा निवृत) अधिकारी श्री —पा राम पूनिया को राजनीति में प्रवेश करने के लिए प्रेरित किया और प्रथम बार उनको विधायक बनाकर हरियाणा में सबसे प्रभावशाली कैबीनैंट मंत्री बनावाया और बातचीत में कहते थे कि एक दिन श्री पुनिया को देश का राष्ट्रपति बनाकर अपना संकल्प पूरा करेगें। अपनी इसी सोच के आधार पर उन्होने अनुसूचित जातियों व दलित वर्ग से अनेकों भाईयों को राजनीति में प्रवेश करवाया–जैसे कि नारनौल से श्री मनोहरलाल सैनी व भिवानी से श्री जय नारायण प्रजापति को सांसद बनवाया। इसी प्रकार कलायत विधानसभा क्षेत्र से श्री बनारसी दास बाल्मिकी, घरोंडा से श्री पीरू राम जोगी, टोहाना से श्री आत्माराम गिल आदि को विधायक बनाकर विधानसभा में प्रवेश करवाया। उन्होने हमेशा मजदूर व किसान वर्ग की आवाज को बुलंद किया और उनकी यह अवधाराणा थी कि राजनैतिक ताकत हासिल करके ही किसान–मजदूर का जीवन सुधारा जा सकता है। हरियाणा राज्य को प्रथम प्रांत का दर्जा दिलवाने में चौद्ग देवीलाल का विशेष योगदान रहा है। उन्होने आल इंडिया हरियाणा एक्षन कमेटी गठित करके पंजाब सरकार व केंद्रीय सरकार के समक्ष भाषा तथा अन्य राजनैतिक आधार पर अलग प्रदेश के पक्ष में दलीलें पेश की और कड़े संघर्ष के बाद हरियाणा प्रांत को अस्तित्व दिलाने में सफलता प्राप्त की।
आज आवश्यकता है कि ताऊ देवीलाल की नीतियों व सिद्धांतों का अनुशरण किया जाए। इससे सरकारी नीति व कार्यशैली निर्धारण में मदद मिलेगी। चौधरी साहब की जन कल्याणकारी योजनाओं व निश्छल राजनीति से प्ररेणा लेकर प्रशासनिक व राजनैतिक तंत्र की विचारधारा को बदलने की नितांत आवश्यकता है ताकि ग्रामीण गरीब–मजदूर व किसान वर्ग के कल्याण व उत्थान के साथ–साथ स्वच्छ प्रशासन के लिए मार्ग प्रशस्त हो सके। वास्तव में ताऊ देवीलाल गरीब व असहाय समाज की आवाज को बुलंद करने वाले एक सशक्त प्रवक्ता थे इसलिए आज जन साधारण विशेषकर ग्रामीण गरीब–मजदूर, कामगार व छोटे काश्तकारों को अपने अधिकारों व हितों के प्रति जागरूक करने की आवश्कता है ताकि दलगत राजनीतिज्ञ व संबंधित प्रशासन इनके हितों की अनदेखी न कर सकें तभी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का एक स्वावलंबी व स्वस्थ ग्रामीण समाज का सपना पूरा किया जा सकता है। अत: एक उदार हृदय एवं महान आत्मा – ताऊ देवीलाल को लेखक सदैव नत मस्तक होकर प्रणाम करता रहेगा।
ये लेखक के अपने निजी विचार हैं।
लेखक 1977 से 1979, 1987 से 1989 तथा अगस्त–सिंतबर 1999 से 2001 तक गुप्तचार विभाग के अधिकारी तथा पुलिस प्रमुख रहे हैं।
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