Opinion: वित्तीय समावेशन के 10 स्वर्णिम वर्ष, बदल दी तस्वीर

Opinion: एक समय था जब देश में बैंक में खाता खोलना जग जीतने जैसा काम था। पीएसयू बैंकों में खाता खोलने के लिए इतने कागजी दस्तावेजों को अनिवार्यता थी कि अपना ही पैसा जमा करने के लिए लोगों को पापड़ बेलने पड़ते थे। नब्बे के दशक में पीएसयू बैंकों के सरकारी बाबूइज्म को निजी क्षेत्र के बैंकों ने पहचान कर खूब फायदा उठाया और केवल खाता खोलने के लिए मिनिमम बैलेंस के नाम पर नौकरीपेशा मध्यवर्ग और छोटे व मध्यम कारोबारियों को जमकर चूना लगाया।
आबादी बैंकिंग सिस्टम से दूर थी
आईसीआईसीआई बैंक, एचडीएफसी बैंक, एक्सिस बैंक आदि जैसे निजी बैंकों का उदय पीएसयू बैंकों के बाबाज्म के स्वातकाल में ही हुआ। उसके बाद तो अनेक निजी बैंक आए, दवाब में सरकारी बैंक भी लचीले हुए, इसके बावजूद देश की करीब चालीस करोड़ से अधिक आबादी बैंकिंग सिस्टम से दूर थी। 21 वीं सदी में इतनी बड़ी आबादी का बैंकिंग सिस्टम से दूर रहना सरकार के वित्तीय समावेशन के लक्ष्य में बड़ी बाधा था। सरकार की डीबीटी (डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर) स्कीम की सफलता में भी बैंकों में खाता नहीं होने से दिक्कत आ रही थी। सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में व्याप्त भ्रष्टाचार को रोकने में मुश्किल आ रही थी। इस दौर में ही बांग्लादेश में वित्तीय समावेशन के क्षेत्र में एक बड़ा प्रयोग हो रहा था। ग्रामीण बैंक के संस्थापक मोहम्मद यूनुस बैंकिंग क्षेत्र में क्रांति ला रहे थे।
मोहम्मद यूनुस बिना दस्तावेज खाता खोलकर व बिना गारंटी छोटे लोन देकर बांग्लादेश की बड़ी आबादी को बैंकिंग सिस्टम में लेकर आए। उनके इस भागीरथ प्रयास के लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार भी मिला। भारत में भी ऐसे प्रयोग की जरूरत थी। भारतीय बैंकिंग व्यवस्था पूंजीगत तरलता की समस्या से जुड़ रहे थे। यूपीए सरकार ने आधार योजना से नागरिकों के बायो फिजिकल पहचान के क्षेत्र में व्यापक आधार तैयार कर दिया था। वर्ष 2014 में पीएम नरेंद्र मोदी की सरकार आई। पीएम मोदी इन सब स्थितियों पर अच्छे से गौर किया और उन्होंने देश की बड़ी आबादी को बैंकिंग सिस्टम में लाने के लिए जनधन खाता योजना लांच की, जिसमें जीरो बबैलेंस पर खाता खोलने का अभियान शुरू हुआ।
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वित्तीय समावेशन एक राष्ट्रीय मिशन
प्रधानमंत्री जनधन योजना (पीएमजेडीवाई) वित्तीय समावेशन के लिए एक राष्ट्रीय मिशन के रूप में 28 अगस्त 2014 को लॉन्च की गई। वर्ष 2024 के 28 अगस्त को जनधन योजना के दस साल पूरे हुए। इस योजना ने देश में बैंकिंग सिस्टम व वित्तीय समावेशन की तस्वीर बदल दी। पीएमजेडीवाई के बुधवार (28 अगस्त) को 10 साल पूरे होने पर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस योजना की महत्वपूर्ण उपलब्धि की सराहना करते हुए कहा कि यह वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने और करोड़ों लोगों को सम्मान देने में सर्वोपरि योजना रही है। विशेष रूप से महिलाएं, बुबा और हाशिए पर रहने वाले समुदाय। पीएमजेडीवाई के दस वर्ष के दरम्यान में 53.13 करोड़ जनधन खाते खोले गए हैं, जिनमें 29.56 करोड़ महिला लाभार्थी हैं, जो क्रमशः यूरोपीय संघ की जनसंख्या से अधिक और अमेरिका की जनसंख्या के लगभग बराबर हैं।
जनधन खाते धारकों को रूपे कार्ड दिया जाता है, तो वर्ष 2015 में 15.74 करोड़ रूपे कार्ड धारक थे, आज वर्ष 2024 के अगस्त माह तक 36,14 करोड़ हो गए है। दस वर्ष में जनधन खातों में जमा दो लाख करोड़ रुपए पार कर गए हैं। वर्ष 2015 अगस्त में जनधन खातों 22 हजार 900 करोड़ रुपए जमा हुए थे, साल दर साल बढ़ते गए। वर्ष 2016 में 42 हजार करोड़ रुपए, वर्ष 2017 में 65 हजार 799 करोड़ रुपए, र, वर्ष 2018 में। 82 हजार करोड़ रुपए जमा हुए थे। वर्ष 2019 में जनधन खातों में जमा एक लाख करोड़ रुपए पार कर गया।
वर्ष 2020 में 1.30 लाख करोड़ रुपए, वर्ष 2021 में 1.45 लाख करोड़ रुपए, वर्ष 2022 में 1.72 लाख करोड़ रुपए, वर्ष 2023 में 202 लाख करोड़ रुपए और वर्ष 2024 में अगस्त तक 2.34 लाख करोड़ रुपए जनधन खातों में जमा है। ये वो पैसे हैं, जो हाशिये पर जीवन जी रहे लोगों के पास खाते नहीं होने से नकदी के रूप में गुल्लक में रहते थे। गरीबों के इन पैसों ने पब्लिक सेक्टर के बैंकों की तरलता की समस्या को कम किया। हालांकि जनधन की सफलता को देखते हुए पीएसयू बैंकों को अपनी उस रणनीति पर विचार करना चाहिए जिसमें विजय माल्या, नीरव मोदी, मेहुल चौकसी जैसे लोग व कॉरपोरेट बैंकों को सिस्टम का फायदा उठाकर चूना लगाते हैं। माइक्रो लोन व बैंकिंग से बैंक अधिक फायदा उठा सकते हैं बनिस्पत मैक्रो लोन व बैंकिंग से।
जनधन योजना की खासियतें
जब यह योजना शुरू की गई थी, तब बैंकों ने देश भर में 77,892 शिविर आयोजित किए और लगभग 1.8 करोड़ खाते खोले। गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स ने इस उपलब्धि को मान्यता दी। वित्तीय समावेशन अभियान के हिस्से के रूप में 1 सप्ताह में खोले गए सबसे अधिक बैंक खातें 18,096,130 हैं और यह उपलब्धि भारत सरकार के वित्तीय सेवा विभाग द्वारा 23 से 29 अगस्त 2014 तक हासिल की गई थी। पिछली सरकारों ने भी वित्तीय समावेशन के लिए पहल की थी, उदाहरण के लिए, पिछली यूपीए सरकार ने उन लोगों के लिए नो-फ्रिल्स बैंक खातों को योजना शुरू की थो जिनके पास खाता नहीं था, लेकिन वे लोकप्रियता हासिल करने में विफल रही थीं।
पीएमजेडीवाई का सबसे प्रमुख उद्देश्य बैंक रहित आक्तियों के लिए एक बुनियादी बचत बैंक खाता खोलना था। पीएमजेडीवाई खातों में कोई न्यूनतम शेष राशि बनाए रखने की आवश्यकता नहीं थी, और इन खातों में नियमित खातों की तरह जमा पर ब्याज मिलता था। पीएमजेडीवाई खाताधारकों को रुपे डेचिट कार्ड दिए गए। पोएमजेडीवाई खाताधारकों को जारी किए गए रुपे कार्ड पर 1 लाख रुपए का दुर्घटना बीमा कवर उपलब्ध था। 28 अगस्त, 2018 के बाद खोले गए नए पीएमजेडीवाई खातों के लिए कवर को बढ़ाकर 2 लाख रुपए कर दिया गया। पात्र पीएमजेडीवाई खाताधारक 10,000 रुपए तक की ओवरड्राफ्ट (ओडी) सुविधा का लाभ उठा सकते हैं।
योजना की प्रगति: पीएमजेडीवाई खातों का सबसे बड़ा हिस्सा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (14) अगस्त तक 41.42 करोड़ खाते) के साथ है, इसके बाद क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (9.89 करोड़ खाते), निजी क्षेत्र के बैंकों (1.64 करोड़) और ग्रामीण सहकारी बैंकों (0.19करोड़) का स्थान है। पीएमजेडीवाई खातों के राज्यवार विश्लेषण से पता चलता है कि सबसे अधिक खाते उत्तर प्रदेश में खोले गए हैं, सबसे अधिक आबादी वाला राज्य (9.45 करोड़), और सबसे कमलक्षद्वीप में (केवल 9,256 खाते)। यूपी के अलावा 15 राज्य हैं जहां 1 करोड़ से अधिक पीएमजेडीवाई बैंक खाते हैं। बिहार, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, असम, ओडिशा, कर्नाटक, झारखंड, गुजरात, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु, आंध प्रदेश, तेलंगाना और हरियाणा। जनधन योजना ने अर्थव्यवस्था के वित्तीय और बैंकिंग क्षेत्रों पर परिवर्तनकारी प्रभाव डाला है।
शंभू भद्र: (लेखक वरिष्ठ अर्थिक पत्रकार हैं, यह उनके अपने विचार हैं।)
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