Opinion: शिशु के स्वास्थ्य और जीवन रक्षा के लिए स्तनपान सबसे आवश्यक और प्रभावी तरीकों में से एक है। हर वर्ष स्तनपान सप्ताह के दौरान वैश्विक स्तर पर स्तनपान को लेकर जागररूकता लाने और इसका महत्व समझाने के प्रयास किए जाते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूनिसेफ और कई स्वास्थ्य मंत्रालयों तथा नागरिक समाज सहयोगियों की इस साझी कोशिश के तहत हर वर्ष अगस्त के पहले सप्ताह में लोगों को सजग करने के लिए कई आयोजन किए जाते हैं।
जागरूकता का उत्सव 120 से ज्यादा देशों में
मातृत्व और शिशु के पोषण के जुड़ा यह जागरूकता का उत्सव 120 से ज्यादा देशों में मनाया जाता है। पहली बार 1992 में मनाया गया यह सप्ताह हर वर्ष एक विशेष विषय को संदर्भित करते हुए स्तनपान के फ़ायदों को लेकर जागरूकता लाने के साथ ही समर्थन और प्रोत्साहन देते हुए हर जगह माताओं और शिशुओं के स्वास्थ्य की बेहतरी सुनिश्चित करने से जुड़ा है। ध्यातव्य है कि वर्ष 2024 का विषय है अंतर को कम करना- सभी के लिए स्तनपान सहायता' रखा गया है। दरअसल, स्तनपान मां और बच्चे दोनों के स्वास्थ्य को लाभ पहुंचाता है। बच्चे के शरीर को पोषण देने वाली ब्रेस्ट फीडिंग मां के शरीर को भी कई व्याधियों से बचाती है। इतना ही नहीं, मनोवैज्ञानिक रूप से भी मां और बच्चे दोनों को इसका लाभ मिलता है।
स्तनपान से बौद्धिक क्षमता बढ़ती है
स्तनपान से मां-बच्चे के बीच संबंध मजबूत होता है। स्तनपान से शिशु की बौद्धिक क्षमता भी बढ़ती है। मानसिक और शारीरिक सेहत से जुड़े इन्हीं फायदों के बारे में जन-जागरुकता बढ़ाने के लिए सप्ताह भर कुछ विशेष आयोजन किए जाते हैं। असल में मां के दूध में कैलोरी, विटामिन, खनिज जैसे कई महत्वपूर्ण पोषक तत्व होते हैं, जो जीवन के शुरुआती पड़ाव पर ही बच्चों के समग्र विकास की नींव मजबूत करते हैं। वर्ष 2024 के विषय के अनुसार अभियान के तहत स्तनपान कराने वाली माताओं की स्तनपान यात्रा और विविधता का जश्न मनाया जाएगा। स्तनपान को लेकर माताओं के अनुभवों और अनुभूतियों की चर्चा जाएगी। साथ ही इस पहलू पर भी जागरूकता लाने के प्रयास किए जाएंगे कि किस तरह से परिवार, समाज, समुदाय और स्वास्थ्य कार्यकर्ता हर स्तनपान कराने वाली मां के लिए सहयोगी बन सकते हैं। किस तरह पूरा परिवेश ब्रेस्ट फीडिंग की यात्रा को सहज बनाने में मददगार बन सकता है।
विचारणीय है कि परंपरागत रूप से भारतीय परिवारों में स्तनपान को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। स्तनपान कराने वाली माताओं के प्रति अनकहा-सा सहयोगी व्यवहार सदा ही रहा है। आज वैज्ञानिक अध्ययनों से पुख्ता होती यह समझ हमेशा रही है कि स्तनपान शिशुओं के संरक्षण और संवर्धन का काम तो करता ही है, बच्चे और मां दोनों की रोग प्रतिरोधात्मक क्षमता भी बढ़ाता है। माताओं में सेहत की बेहतरी से जुड़े बहुत से हार्मोन्स में सकारात्मक बदलाव लाता है। तकलीफदेह है कि आधुनिकता के फेर में बहुत महिलाएं ब्रेस्ट फीडिंग से दूसरी बना रही हैं। बहुत सी कामकाजी महिलाएं भी बच्चों को स्तनपान नहीं करवा पातीं। ऐसी स्थितियां बच्चों ही नहीं माताओं का स्वास्थ्य भी बिगाड़ रही हैं। 2 साल की उम्र तक स्तनपान कराने से बच्चे कुपोषण और बहुत सी आम बीमारियों से सुरक्षित रहते हैं।
आहार और स्वास्थ्य विस्तृत अध्ययन
डेनमार्क में कोपनहेगन विश्वविद्यालय स्थित जीवन विज्ञान संकाय के अनुसंधानकर्ताओं द्वारा 9, 18 और 36 माह के 330 बच्चों के आहार और स्वास्थ्य विस्तृत अध्ययन में सामने आया कि स्तनपान भविष्य में शिशु को मोटापे और मधुमेह माताएं भी कई तरह की आम और गंभीर व्याधियों से बची रहती हैं। ना केवल प्रसवोत्तर स्वास्थ्य लाभ में तेजी आती है बल्कि स्तन और ओवेरियन कैंसर का जोखिम भी कम होता है। इसके साथ ही मोटापा, टाइप 2 मधुमेह और हृदय रोग से भी बचाव होता है।
बच्चे से जुड़ाव की अनुभूति पोस्टपार्टम डिप्रेशन यानी प्रसवोत्तर अवसाद से दूर रखती है। समझना जरूरी है कि ब्रेस्ट फीडिंग बच्चे के आहार से ही नहीं मां-बच्चे के भावनात्मक पक्ष से जुड़ी क्रिया भी है। यही वजह है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा भी सभी शिशुओं को कम से कम 2 साल तक स्तनपान कराने की सलाह दी गई है। ऐसे में स्वास्थ्य सहेजने और स्नेहमयी जुड़ाव को पोसने हेतु स्तनपान के प्रति माताओं की सजगता और समग्र परिवेश का सहयोगी बनना आवश्यक है।
मोनिका शर्मा: (लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार स्तंभकार हैं. ये उनके अपने विचार हैं।)