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Opinion: बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार ने जमीयत ए इस्लामी पर प्रतिबंध लगा दिया था, तभी यह दल उम्र है और देश में हिंसक प्रदर्शन कर रहा है। सेना की सलाह पर उन्होंने इस्तीफा दे दिया। उनके सरकारी आवास पर छात्रों ने कब्जा कर लिया है।

Opinion: बांग्लादेश में सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों की मांग पूरी हो गई है, क्योंकि प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। वह अपने परिवार के साथ किसी सुरक्षित स्थान पर चली गई हैं। खबरें आ रही हैं कि सेना की सलाह पर उन्होंने इस्तीफा दे दिया। उनके सरकारी आवास पर छात्रों ने कब्जा कर लिया है। बांग्लादेश में छात्र आंदोलन जिस तरह से फैल रहा था, उसके बाद उनके ऊपर हमले की भी आशंका जताई जा रही थी। सेना का एक धड़ा उनसे नाराजगी जाहिर कर रहा था।

आरक्षण को लेकर हिंसक आंदोलन
जमीयत-ए-इस्लामी के छात्र विंग लंबे समय से आरक्षण को लेकर हिंसक आंदोलन कर रहे हैं। जमीयत-ए-इस्लामी पूर्व पीएम बेगम खालिदा जिया की पार्टी बीएनपी की सहयोगी राजनीतिक पार्टी है। बीएनपी ने पिछले आम चुनाव का बहिष्कार किया था। चुनाव के बाद भी बांग्लादेश में हिंसक प्रदर्शन हुआ था। शेख हसीना की सरकार ने जमीयत ए इस्लामी पर प्रतिबंध लगा दिया था, तभी यह दल उम्र है और देश में हिंसक प्रदर्शन कर रहा है। शेख हसीना को याद ही होगा कि उनके पिता और बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीब-उर-रहमान, मां और तीन भाइयों का 15 अगस्त, 1975 को सेना के एक तख्तपलट अभियान के चलते कत्ल कर दिया गया था।

ढाका के धनमंडी स्थित आवास में उस भयावह कत्लेआम के समय शेख हसीना अपने पति वाजिद मियां और दो बच्चों के साथ जर्मनी में थीं। इसलिए उन सबकी जान बच गई थीं। वाजिद मियां परमाणु वैज्ञानिक थे। वे जर्मनी में ही कार्यरत थे। जाहिर है, अपने पद को छोड़ने का फैसला उन्होंने तब ही लिया होगा जब उनके पासकोई विकल्प नहीं बचा होगा। बेशक, बीते रविवार को बांग्लादेश में जिस तरह की हिंसा हुई उसके बाद उनके पास इस्तीफा देने के अतिरिक्त कोई रास्ता नहीं था। फिलहाल बांग्लादेश के हालत बेहद खराब हैं और देश पूरी तरह से अराजकता की स्थिति में जा चुका है। वहां आगे क्या स्थिति होगी, कोई नहीं कह सकता। वहां पहले ही हिंसा को रोकने के लिए मोबाइल इंटरनेट सेवाएं पहले ही बंद कर दी गई हैं। बांग्लादेश के हालिया इतिहास में बीता रविवार सच में खुनी रहा।

जिला मुख्यालयों में अनिश्चितकाल के लिए कर्फ्यू
किसी भी प्रदर्शन में एक ही दिन में मरने वालों की संख्या सबसे अधिक थी। सेना ने घोषणा कर दी थी की है कि राजधानी ढाका और अन्य संभागीय और जिला मुख्यालयों में अनिश्चितकाल के लिए कर्फ्यू लागू होगा। पिछले महीने शुरू हुए प्रदर्शनों के बाद से प्रदर्शनकारी प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफे की मांग कर रहे थे। ये प्रदर्शन छात्रों द्वारा सरकारी नौकरियों में कोटा प्रणाली को समाप्त करने के आह्वान से शुरू हुए थे। हिंसा के बीच, शेख हसीना कह रही थीं कि जो प्रदर्शनकारी तोड़‌फोड़ में शामिल थे, वे अब छात्र नहीं बल्कि अपराधी हैं। बहरहाल, शेख हसीना के इस्तीफे की मांग को व्यापक स्तर पर मिला समर्थन बहुत कुछ कहता है।

पड़ोसी देश में पिछले महीने प्रदर्शन शुरू हुए थे जब छात्रों ने एक कोटा प्रणाली को समाप्त करने की मांग की थी, जिसके तहत सरकारी नौकरियों का एक बड़ा हिस्सा 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ बांग्लादेश की स्वतंत्रता की लड़ाई में लड़ने वालों के रिश्तेदारों के लिए आरक्षित था। कई दिनों की झड़पों के बाद, देश के सर्वोच्च न्यायालय ने कोटा को कम कर दिया था, लेकिन प्रदर्शनकारी सरकार द्वारा अत्यधिक बल प्रयोग के लिए जिम्मेदार होने का आरोप लगाते हुए हिंसा के लिए जवाबदेही की मांग करते रहे हैं। वे हसीना की इस्तीफा मांग रहे थे। बांग्लादेश में विकलांग, ट्रांसजेंडर और जन जातीय अल्पसंख्यकों के सदस्यों के लिए भी नौकरियां आरक्षित हैं, जिनका कोटा 26% से घटाकर 2% कर दिया गया था। बेशक, प्रदर्शन शेख हसीना के लिए एक बड़ी चुनौती बन गए थे, जो 15 साल से अधिक समय से देश पर शासन कर रही हैं।

प्रस्ताव को मानने से इंकार
बीते जनवरी में हुए चुनाव में वह लगातार चौथे कार्यकाल के लिए सत्ता में लौटी थीं, जिसे उनके मुख्य विरोधियों ने बहिष्कार कर दिया था। तब किसी ने सोचा नहीं था कि फिर से सत्तासीन होने के इतनी जल्दी उनके खिलाफ देश में जन आक्रोश भड़क जाएगा। शेख हसीना के इस्तीफे की मांग करने वाले लाखों प्रदर्शनकारियों ने सरकार की तरफ से आने वाले समझौते के प्रस्ताव को मानने से इंकार कर दिया था। लगने लगा था वहां हालात जल्दी सुधरने वाले नहीं हैं। एक बात साफ है कि बांग्लादेश में आंदोलन नौकरी कोटा को लेकर नहीं रह गया था। लगभग 17 करोड़ की आबादी वाले वाले इस दक्षिण एशियाई देश में प्रदर्शन एक व्यापक सरकार विरोधी आंदोलन में बदल गए थे। इसने बांग्लादेश समाज के सभी वर्गों के लोगों को आकर्षित किया, जिसमें फिल्म सितारे, संगीतकार और गायक भी शामिल हैं।

अवाम के समर्थन का आह्वान करने वाले रैप गाने सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से फैले थे। शेख हसीना 2009 से बांग्लादेश पर शासन कर रही हैं। उनकी सरकार पर मानवाधिकार समूह सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत करने और विरोधियों को कुचलने के लिए राज्य संस्थानों का दुरुपयोग करने का आरोप लगाते रहे हैं, जिसमें विपक्षी कार्यकर्ताओं की न्यायिक हत्या भी शामिल हैं। सत्ता निरकुंश प्रतीत हो रही थी। कहना न होगा कि भारत सरकार की बांग्लादेश की स्थिति पर पैनी नजर होगी। भारत और बांग्लादेश के संबंध को मजबूत करने में शेख हसीना ने लगातार ठोस पहल की है। भारत सरकार ने पिछले साल जी-20 शिखर सम्मेलन में बांग्लादेश को मित्र देश के रूप में आमंत्रित किया था। हालांकि बांग्लादेश जी-20 का सदस्य देश तो नहीं है, पर भारत ने बांग्लादेश को मेजबान तथा जी-20 के अध्यक्ष के रूप में आमंत्रित करके साफ संकेत दे दिया था कि वह पड़ोसी मित्र देश को बहुत अहमियत देता है।  शेख हसीना ने हमेशा इस तथ्य को माना कि भारत ने उनके देश की आजादी में महत्वपूर्ण रोल निभाया था।

शेख हसीना के जीवन में दिल्ली का महत्व
शेख हसीना के लिए भारत की राजधानी नई दिल्ली तो अपने दूसरे घर की तरह की है। उन्होंने यहां सन 1975 से 1981 के दौरान निवार्सित जीवन गुजारा था। तब उनके साथ उनके पति और उनके दोनों बच्चे भी थे। शेख हसीना के परिवार के कत्लेआम ने उन्हें बुरी तरह से झंझोड़ कर रख दिया था। वे टूट चुकी थी। तब भारत ने उन्हें राजनीतिक शरण दी थी। बेशक, शेख हसीना के जीवन में दिल्ली का बहुत महत्व रहा है। यहां पर उनके पिता शेख मुजीब-उर-रहमान के नाम पर एक सड़क भी है। हालांकि अभी यह कहना कठिन है कि क्या वो फिर भारत में राजनीतिक शरण ले सकती हैं? उनके और उनके परिवार के लिए उनका देश अब कतई सुरक्षित नहीं है। पर कौन जाने कि वह एक बार भारत में शरण लें। खबर है यह भी है कि वह ब्रिटेन में शरण ले सकती हैं। यह तय है कि बांग्लादेश सत्ता संकट की ओर जाता दिखाई दे रहा है। सेना एक बार फिर से बांग्लादेश की कमान संभालती दिख रही है। सेना ने अंतरिम सरकार के गठन का संकेत दिया है। वहीं, नई सरकार के सामने छात्र आंदोलन को शांत करने की चुनौती होगी, साथ कट्टरवाद से लड़ने की भी।
गीता शुक्ला: (लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। ये उनके अपने विचार हैं।)

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