Opinion: नारियल का हिंदू धर्म में बेहद महत्वपूर्ण स्थान है, जिसका उपयोग पूजा-पाठ, विशेष अनुष्ठान, शादी-विवाह, तीज-त्योहार, नए कार्य का शुभारंभ इत्यादि सभी शुभ कार्यों में किया जाता है। नारियल को 'श्रीफल' के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु जब पृथ्वी पर अवतरित हुए थे, तब वे मां लक्ष्मी और कामधेनु गाय के साथ नारियल भी लेकर आए थे, इसीलिए नारियल के वृक्ष को 'कल्पवृक्ष' भी कहा जाता है। मान्यता है कि नारियल में त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) का वास होता है। धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण होने के साथ-साथ नारियल आर्थिक और स्वास्थ्य की दृष्टि से भी बड़ा महत्वपूर्ण है।
एशिया महाद्वीप का योगदान
पूरी दुनिया में नारियल उत्पादन में केवल एशिया महाद्वीप का योगदान ही 90 प्रतिशत है, जिसमें भारत विश्व के सबसे बड़े नारियल निर्यातकों में शामिल है। भारत के अलावा इंडोनेशिया और फिलीपींस दुनिया के सबसे बड़े नारियल निर्यातकों में शामिल हैं। दुनियाभर में लोगों को नारियल के फायदे समझाने, नारियल के पोषण मूल्य और आर्थिक महत्व के बारे में बताने, नारियल की खेती, प्रोसेसिंग और इसके कई उपयोगों के बारे में लोगों को शिक्षित करने, वैश्विक स्वास्थ्य और कृषि में नारियल की अहमियत समझने, नारियल से जुड़े नए तकनीकी तरीकों को अपनाने, नारियल से जुड़े उद्योगों में मौजूदा चुनौतियों को दूर करने इत्यादि अनेक उद्देश्यों के साथ 'एशियाई प्रशांत नारियल समुदाय' (एपीसीसी) के गठन के उपलक्ष्य में प्रतिवर्ष 2 सितम्बर को एक विशेष थीम के साथ 'विश्व नारियल दिवस' मनाया जाता है।
इस वर्ष यह दिवस 'एक परिपत्र अर्थव्यवस्था के लिए नारियलः अधिकतम मूल्य के लिए साझेदारी का निर्माण' विषय के साथ मनाया जा रहा है। यह नारियल का उपयोग इस तरह से करने के महत्व पर जोर देता है, जो बबर्बादी को कम करते हुए नारियल के हर हिस्से का अधिकतम उपयोग करना सुनिश्चित करता है। यह विषय नारियल के मूल्य को अधिकतम करने के लिए किसानों, उत्पादकों और उद्योगों के बीच मजबूत साझेदारी की आवश्यकता पर भी प्रकाश डालता है। एक साथ काम करके ये साझेदारियां एक अधिक टिकाऊ और कुशल नारियल उद्योग बनाने में मदद कर सकती हैं, जिससे पर्यावरण के साथ उन लोगों को भी लाभ होगा, जो अपनी आजीविका के लिए नारियल पर निर्भर हैं। विश्व नारियल दिवस पहली बार 2009 में मनाया गया था, जिसका उद्देश्य दुनियाभर में नारियल की खेती के बारे में लोगों को जागरूक करना हो था।
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खेती को बढ़ावा देने के उद्देश्य
एपीसीसी ने अपनी 40वीं वर्षगांठ पर इस दिन की शुरुआत की थी, जिसकी स्थापना ही एशिया-प्रशांत क्षेत्रों में नारियल की खेती को बढ़ावा देने के उद्देश्य से की गई थी। इस वर्ष एपीसीसी की स्थापना की 55वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है। एपीसीसी में भारत सहित सभी नारियल उत्पादक देश शामिल हैं। 'नारियल' पुर्तगाली शब्द 'कोको' और 'अखरोट' के मेल से बना है। नारियल को 'जीवन का वृक्ष' भी कहा जाता है क्योंकि यह अनेक आवश्यक संसाधन प्रदान करता है। दरअसल नारियल के पेड़ का प्रत्येक हिस्सा उपयोगी है। यह फल भोजन और पेव प्रदान करता है, पत्तियों का उपयोग बुनाई और छत बनाने के लिए किया जाता है, भूसी और खोल का उपयोग शिल्प तथा ईंधन के लिए किया जाता है और रस का उपयोग
सिरका तथा चीनी बनाने के लिए किया जा सकता है।
नारियल सेहत के अनेक निराले गुणों से भरपूर फल है, जो पाचन क्रिया को बढ़ाने और मोटापा कम करने में असरदार माना जाता है। नारियल का पानी इलेक्ट्रोलाइट्स का सबसे अच्छा स्रोत है, जो शरीर को तुरंत ऊर्जा देता है। शरीर में पानी की कमी को पूरी करने के लिए नारियल पानी बहुत फायदेमंद है, जिससे शरीर हाइड्रेट रहता है। नारियल पानी एस्कॉर्बिक एसिड, विटामिन बी और प्रोटीन से भरपूर होता है, जिसमें कैलोरी, कार्बोहाइड्रेट और शर्करा कम होती है और यह लगभग पूरी तरह से वसा रहित होता है। इसके पोषक तत्व चेहरे की चमक को बढ़ाने के साथ शरीर को तंदुरुस्त रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
सौंदर्य प्रसाधनों से लेकर साज-सज्जा तक
नारियल का इस्तेमाल खाने-पीने और सौंदर्य प्रसाधनों से लेकर साज-सज्जा तक हर चीज में किया जाता है। अनेक फायदों से भरपूर नारियल का उपयोग कई प्रकार के व्यंजनों में भी किया जाता है। इसके फल से दूध और तेल भी निकाला जाता है। खाना पकाने के साथ-साथ बालों और चेहरे को पोषण देने के लिए उपयोग किया जाने वाला नारियल तेल अन्य खाना पकाने के तेलों का एक स्वस्थ विकल्प माना गया है। नारियल का दूध कई प्रकार के मीठे व्यंजनों में इस्तेमाल होता है। नारियल पानी एक स्वास्थ्यवर्धक पेय है और नारियल की जटाओं का उपयोग रस्सियां, गलीचे, डोरमैट इत्यादि बनाने में किया जाता है।
श्वेता गोयल: (लेखक शिक्षिका हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)
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