Opinion: पुराने कानूनों में गुलामी की बू आती थी। इन कानूनों को बनाने के पीछे बहुत लंबी प्रक्रिया रही है। इन कानूनों को आज के समय के अनुरूप बनाने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अगस्त, 2019 में सर्वोच्च न्यायालय के सभी न्यायाधीशों, देश के सभी उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों और देश के सभी कानून विश्वविद्यालयों को पत्र लिखे थे। वर्ष 2020 में सभी, राज्यपालों, मुख्यमंत्रियों और सांसदों एवं संघ शासित प्रदेशों के प्रशासकों को पत्र लिखे गए।
इसके बाद व्यापक परामर्श के बाद ये प्रक्रिया कानून बनने जा रही है। इसके लिए 18 राज्यों, 6 संघशासित प्रदेशों, सुप्रीम कोर्ट, 16 हाई कोर्ट, 5 न्यायिक अकादमी, 22 विधि विश्वविद्यालय, 142 सांसद, लगभग 270 विधायकों और जनता ने इन नए कानूनों पर अपने सुझाव दिए हैं। यह प्रक्रिया सरल नहीं थी, काफी मेहनत की गई बीते 4 सालों में। खूब विचार विमर्श किया गया है।
संपत्तियों को जब्त करने का अधिकार
इस संदर्भ में हुई 158 बैठकों में केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह उपस्थित रहे हैं। इन कानूनों में क्या बदलाव हुआ है, इस पर केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने बताया कि आज तक आतंकवाद से परिचित सभी थे लेकिन आतंकवाद की परिभाषा, व्याख्या नहीं थी। अब ऐसा नहीं रहेगा। अब अलगाव, सशख विद्रोह, विध्वंसक गतिविधियां, अलगाववाद, भारत की एकता, संप्रभुता और अखंडता को चुनौती देने जैसे अपराधों की पहली बार इस कानून में व्याख्या की गई है। इससे जुड़ी संपत्तियों को जब्त करने का अधिकार भी दिया गया है। जांचकर्ता पुलिस अधिकारी के संज्ञान पर कोर्ट इसका आदेश देगा। गौरतलब है कि अनुपस्थिति में ट्रायल के बारे में केंद्र सरकार ने एक ऐतिहासिक फैसला किया है।
मेल और मैसेजेस को कानूनी वैधता
इन कानूनों में अत्याधुनिकतम तकनीकों को समाहित किया गया है। दस्तावेजों की परिभाषा का विस्तार कर इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल रिकॉर्ड्स, ई-मेल, सर्वर लॉग्स, कम्प्यूटर, स्मार्ट फोन, लैपटॉप्स, एसएमएस, वेबसाइट, लोकेशनल साक्ष्य, डिवाइस पर उपलब्ध मेल और मैसेजेस को कानूनी वैधता दी गई है, जिनसे अदालतों में लगने वाले कागजों के अंबार से मुक्ति मिलेगी। इस कानून को डिजिटलाइज किया गया है, यानी एफआईआर से केस डायरी, केस डायरी से चार्जशीट और चार्जशीट से जजमेंट तक की सारी प्रक्रिया को डिजिटलाइज करने का प्रावधान इस कानून में किया गया है।
अभी सिर्फ आरोपी की पेशी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से हो सकती है, लेकिन अब पूरा ट्रायल, क्रॉस क्वेश्चनिंग सहित, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से संभव होगी। शिकायतकर्ता और गवाहों का परीक्षण, जांच पड़ताल और मुकदमे में साक्ष्यों की रिकॉर्डिंग और उच्च न्यायालय के मुकदमे और पूरी अपीलीय कार्यवाही भी अब डिजिटली संभव होगी। सर्च और जब्ती के समय वीडियोग्राफी को अनिवार्य कर दिया है, जो केस का हिस्सा होगी और इससे निदर्दोष नागरिकों को फंसाया नहीं जा सकेगा। पुलिस द्वारा ऐसी रिकॉर्डिंग के बिना कोई भी चार्जशीट वैध नहीं होगी।
प्रमाण को 90 प्रतिशत से ऊपर लेकर जाना है
आजादी के 75 सालों के बाद भी दोष सिद्धि का प्रमाण बहुत कम है। यही कारण है कि मोदी सरकार ने फॉरेंसिक साइंस को बढ़ावा देने का काम किया है। तीन साल के बाद हर साल 33 हजार फॉरेंसिक साइंस एक्सपर्ट्स और साइंटिस्ट्स देश को मिलेंगे। साथ ही अमित शाह ने लक्ष्य रखा है कि दोष सिद्धि के प्रमाण को 90 प्रतिशत से ऊपर लेकर जाना है। इसके लिए एक महत्वपूर्ण प्रावधान किया गया है कि 7 वर्ष या इससे अधिक सजा वाले अपराधों के क्राइम सीन पर फॉरेंसिक टीम की विजिट को अनिवार्य किया जा रहा है।
पुलिस के पास एक वैज्ञानिक साध्य होगा जिसके बाद कोर्ट में दोषियों के बरी होने की संभावना बहुत कम हो जाएगी। इसके अंतगर्त यौन हिंसा के मामले में पीड़ित का बयान अनिवार्य कर दिया गया है और यौन उत्पीड़न के मामले में बयान की वीडियो रिकॉर्डिंग भी अब अनिवार्य कर दी गई है। पुलिस को 90 दिनों में शिकायत का स्टेटस और उसके बाद हर 15 दिनों में फरियादी को स्टेटस देना अनिवार्य होगा। पीड़ित को सुने बिना कोई भी सरकार 7 वर्ष या उससे अधिक के कारावास का केस वापस नहीं ले सकेगी, इससे नागरिकों के अधिकारों की रक्षा होगी।
40 प्रतिशत से अधिक केस समाप्त हो जाएंगे
ऐसा पहली बार हुआ है कि कम्युनिटी सर्विस को सजा के रूप में इस कानून के तहत लाया जा रहा है। छोटे मामलों में समरी ट्रायल का दायरा भी बढ़ा दिया गया है। अब 3 साल तक की सजा वाले अपराध समरी ट्रायल में शामिल हो जाएंगे। इस अकेले प्रावधान से ही सेशंस कोर्ट्स में 40 प्रतिशत से अधिक केस समाप्त हो जाएंगे। आरोप पत्र दाखिल करने के लिए 90 दिनों की समय सीमा तय कर दी गई है और परिस्थिति देखकर अदालत आगे 90 दिनों की परमिशन और दे सकेंगी।
इस प्रकार 180 दिनों के अंदर जांच समाप्त कर ट्रायल के लिए भेज देना होगा। कोर्ट अब आरोपित व्यक्ति को आरोप तय करने का नोटिस 60 दिनों में देने के लिए बाध्य होंगे। बहस पूरी होने के 30 दिनों के अंदर न्यायाधीश को फैसला देना होगा, इससे सालों तक निर्णय लंबित नहीं रहेगा और फैसला 7 दिनों के अंदर ऑनलाइन उपलब्ध कराना होगा। पुराने आपराधिक कानूनों को निरस्त करना और नए कानूनों को अपनाना देश की वर्तमान वास्तविकताओं को दर्शाता है।
आतंकवाद पर सख्त रुख
भारतीय लोकाचार और संस्कृति को प्रतिबिंबित करने के लिए इन कानूनों का नाम बदला गया। जैसे कि भारतीय न्याय संहिता 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 पुरातन ब्रिटिश औपनिवेशिक युग से प्रस्थान का प्रतीक है, जिसमें सजा पर न्याय पर जोर दिया जाता है। पिछले दशक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने धार्मिक कट्टरवाद और आतंकवाद पर सख्त रुख अपनाया है।
आतंकवाद और उग्रवाद को लेकर सरकार की शून्य-सहिष्णुता नीतियों और कार्यों के कारण ये ताकतें अब रक्षात्मक मुद्रा में हैं। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए सरकार ने यूएपीए समेत संबंधित अधिनियमों में आवश्यक संशोधन किए हैं। राष्ट्रीय जांच एजेंसी को विदेशों में भारतीयों और भारतीय हितों से संबंधित आतंकी अपराधों की जांच करने का अधिकार दिया गया है। नए आपराधिक कानूनों ने अनुपस्थिति में मुकदमे की अनुमति देकर इस बदलाव को और मजबूत किया है।
डॉ. मोहन यादव: (लेखक मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री है)