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Opinion: प्रधानमंत्री मोदी के देश के नाम संबोधन में विगत की उपलब्धियों का जिक्र भी था। लेकिन सबसे ज्यादा ध्यान खींचा इस भाषण के तीन मुद्दों विकसित भारत, सेक्युलर सिविल कोड और न्यायिक सुधार ने। मोदी की ऐसी ही छवि उनके विरोधियों ने सफलतापूर्वक गढ़ी है।

Opinion: स्वाधीनता दिवस के दिन लाल किले के ऐतिहासिक प्राचीर से प्रधानमंत्री मोदी के देश के नाम संबोधन की चर्चा स्वाभाविक है। स्वाधीनता दिवस के इस भाषण में हर प्रधानमंत्री अपने तई अपनी सरकार की भावी योजनाओं का खाका पेश करता है और बीते साल की अपनी उपलब्धियों को गिनाता है।

इस लिहाज से देखें तो इस बार भी भावी कदमों के संकेत पीएम मोदी के इस भाषण में रहे, वहीं विगत की उपलब्धियों का जिक्र भी था। लेकिन सबसे ज्यादा ध्यान खींचा इस भाषण के तीन मुद्दों ने। विकसित भारत, सेक्युलर सिविल कोड और न्यायिक सुधार। प्रधानमंत्री बनने के बाद से मोदी 'सबका साथ, सबका विकास' का नारा जोर- शोर से लगाते रहे हैं और इस विचार से प्रभावित नीतियां भी चनाते और उन्हें लागू कराते रहे हैं। बाद के दिनों में इसमें 'सबका विश्वास' भी जुड़ गया। प्रधानमंत्री मोदी जिस भारतीय जनता पार्टी के नुमाइंदे हैं, उसे हिंदू और हिंदुत्ववादी पार्टी का विशेषण उसके राजनीतिक विरोधियों द्वारा मिला हुआ है। उसके एजेंडे के कुछ विषय भी ऐसी सोच विकसित करने के लिए उसके विरोधियों को हथियार के तौर पर मिलते रहे हैं।

पारंपरिक छवि तोड़ने की कोशिश
जब तक नरेंद्र मोदी केंद्रीय राजनीति के शीर्ष पर नहीं पहुंचे थे, बीजेपी की वैचारिकी के लिहाज से माना जाता रहा कि अगर वे सत्ता में आएंगे तो उनको विकास योजनाओं में मुस्लिम समुदाय के लिए खास नहीं होगा। गुजरात के मुख्यमंत्री रहते नरेंद्र मोदी की ऐसी ही छवि उनके विरोधियों ने सफलतापूर्वक गढ़ी। उन्हें मुस्लिम विरोधी के रूप में ऐसा स्थापित किया गया कि आज भी आम मुस्लिम मतदाता तमाम तरह की सुरक्षा और सरकारी चोजनाओं का फायदा उठाने के बावजूद सबसे बड़ा मोदी और बीजेपी विरोधी है। मोदी ने अपनी मुस्लिम विरोधी इस छवि को प्रधानमंत्री बनने के बाद तोड़ने की कोशिश की। अल्पसंख्यक मंत्रलय के जरिए भारी-भरकम रकम की योजनाएं शुरू की।

'सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास' मोदी की पारंपरिक छवि तोड़ने की कोशिश ही थी। अल्पसंख्यक समुदाय ने इसका फायदा उठाया भी, लेकिन चाहे राज्य विधानसभा के चुनाव हों या फिर आम चुनाव, कभी भी मुस्लिम समुदान का ठोस समर्थन बीजेपी को नहीं मिला। उत्तर प्रदेश के रामपुर जिले के एक गांव को लेकर खबरें भी आई। मुख्यतः मुस्लिम जनसंख्या बहुल इस गांव में सैकड़ों मुस्लिम परिवारों को पीएम आवास योजना का फायदा मिला, लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव में इस गांव में बीजेपी को चार पांच वोट ही मिले। ऐसे अनुभवों के बाद बीजेपी के अंदर ही सवाल उठने लगे कि 'सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास' का क्या फायदा। शायद यह दबाव ही है कि लाल किले से प्रधानमंत्री ने इस नारे का उल्लेख नहीं किया। इसे लेकर कथित सेकुलर राजनीति का परेशान होना स्वाभाविक है। उसे पता है कि वह जितना परेशान नजर आएगी, उतना ही उसका अल्पसंख्यक वोट बैंक मजबूत होगा।

विकसित भारत का लक्ष्य
प्रधानमंत्री के संबोधन में एक और महत्वपूर्ण बात रही, 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य को पूरा करना और इसके लिए हफ्ते के सातों दिन चौबीसों घंटे काम करना। प्रधानमंत्री के इस मंत्र का मकसद साफ है कि आजादी के सौवें साल में देश विकासशील की बजाय विकसित देशों की पांत में आ जाए। अपना देश दुनिया की पांचवीं बड़ी आर्थिक महाशक्ति चन गया है। अंतरिक्ष तकनीक में भी देश का दुनिया में महत्वपूर्ण स्थान है। रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता की ओर देश बढ़ रहा है। कृषि उत्पादन में भी देश ने प्रगति की है। हर गांव तक बिजली पहुंच चुकी है। फिर भी प्रधानमंत्री को लगता है कि अब भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। इसलिए उनके इस संदेश को भी गहराई से देखा जाना चाहिए।

न्यायिक सुधार की भी बात
प्रधानमंत्री ने न्यायिक सुधार की भी बात की। जिस तरह प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में जताया, उससे साफ है कि अपने तीसरे कार्यकाल में ये न्यायिक सुधार की दिशा में आगे बढ़ेंगे। उच्च न्यायपालिका में नियुक्तियों के लिए जो कॉलेजियम व्यवस्था है, उस पर खूब सवाल उठ रहे हैं। प्रधानमंत्री ने संकेत दे दिया है कि तीसरे कार्यकाल में उसकी जगह वे नई और कहीं ज्यादा तार्किक व न्यायोचित व्यवस्था लाएंगे। प्रधानमंत्री ने भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेंस पर जोर दिया, यहां तक कहा कि वे चाहते हैं कि भारत के भ्रष्टाचारियों में भय का माहौल हो, ताकि जनता को लूटने की उनकी परिपाटी पर पूरी तरह लगाम लग सके। भारतीय जनसंघ के जमाने से हो भारतीय जनता पार्टी के तीन प्रमुख एजेंडे रहे। हैं, जम्मू- कश्मीर से अनुच्छेद 370 का खात्मा, अयोध्या में भव्य राममंदिर का निर्माण और समान नागरिक कानून। इनमें से पहले दो तो अपने दो कार्यकाल में मोदी सरकार ने हासिल कर लिए हैं।

प्रधानमंत्री ने तीसरे यानी समान नागरिक संहिता की जरूरत पर जोर दिया। इसे उन्होंने धर्मनिरपेक्ष कानून कहा है। यानी ऐसा कानून, जो धनों से प्रभावित न होता हो। मोदी सरकार के कदमों का विरोध करने के लिए विपक्षी और विरोधी शक्तियां उसे सबसे पहले कम्युनल यानी सांप्रदायिक बताती हैं। फिर विरोध करती हैं। समान नागरिक संहिता को धर्मनिरपेक्ष संहिता बताकर एक तरह से प्रधानमंत्री ने इस भावी कानून को लेकर उठने वाले सवालों को धार कुंद करने की कोशिश की है। लगता है कि तोसरे कार्यकाल में प्रधानमंत्री इस कानून को लेकर आगे बढ़ेंगे। उनके विरोधियों ने इसे अपने लिए अवसर के रूप में देखा और बार- बार कहते रहे कि अब मोदी को बदलना पड़ेगा। लेकिन लाल किले के भाषण में कोई लाचारगी नहीं नजर आती। इसका संदेश साफ है कि मोदी पहले ही की तरह पूरी ठसक के साथ आगे बढ़ेंगे और बहुमत की कमी के असर में नहीं आने वाले। उन्होंने दुनिया के हर डाइनिंग टेबल पर भारतीय मोटे अनाजों की उपस्थिति बढ़ाने के अपने लक्ष्य को भी दोहराया। प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में जल संरक्षण पर भी जोर दिया।

महिलाओं को लेकर संजीदगी
महिलाओं को लेकर भी अपनी संजीदगी दिखाई। प्रधानमंत्री ने महिलाओं पर अत्याचार करने वालों को राक्षस कहा और उन्हें भयंकर सजा देने की वकालत की। प्रधानमंत्री ने शिक्षा में सुधार, भारत में विश्व स्तरीय विश्वविद्यालयों की स्थापना और मातृभाषा में शिक्षा पर भी जोर दिया। कुल मिलाकर प्रधानमंत्री का 11वां भाषण उनकी वैचारिक प्रतिबद्धता को दोहराता है तो भारतीयकरण को अवधारणा पर ही आगे बढ़ने का संदेश देता है। यह भाषण नवाचार के साथ कदम बढ़ाते हुए नई विश्व व्यवस्था में भारत को आणी पंक्ति में बैठाने की दिशा में भी काम करते हुए दिख रहा है। उम्मीद की जानी चाहिए कि मोदी सरकार अपने तीसरे कार्यकाल में इस दिशा में लगातार आगे बढ़ते रहेगी।
उमेश चतुर्वेदी: (लेखक वरिष्ठ राजनीतिक टिप्पणीकार हैं, यह उनके अपने विचार हैं।)

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