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Opinion : राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की नई सरकार गठित हो चुकी है और मंत्रालयों का बंटवारा भी हो चुका है। गठबंधन की इस नई सरकार के समक्ष कई चुनौतियां हैं। अन्य क्षेत्रों की तरह रक्षा क्षेत्र में भी अनेक चुनौतियां हैं, जिनसे रक्षा मंत्रालय एवं तीनों सेनाओं को मिलकर निपटना है। सरकार में राजनाथ सिंह को फिर से रक्षा मंत्री बनाया गया है। वे पिछली सरकार में भी रक्षा मंत्रालय का कामकाज देख रहे थे।

डॉ. एल.एस. यादव : राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की नई सरकार गठित हो चुकी है और मंत्रालयों का बंटवारा भी हो चुका है। गठबंधन की इस नई सरकार के समक्ष कई चुनौतियां हैं। अन्य क्षेत्रों की तरह रक्षा क्षेत्र में भी अनेक चुनौतियां हैं, जिनसे रक्षा मंत्रालय एवं तीनों सेनाओं को मिलकर निपटना है। सरकार में राजनाथ सिंह को फिर से रक्षा मंत्री बनाया गया है। वे पिछली सरकार में भी रक्षा मंत्रालय का कामकाज देख रहे थे। उन्होंने अपना कार्यभार संभाल लिया है। इससे पहले रक्षा राज्य मंत्री संजय सेठ ने 11 जून को अपना कार्यभार संभाल लिया था। रक्षा मंत्री के तौर पर दूसरे कार्यकाल में राजनाथ सिंह को अग्निपथ योजना को समीक्षा करके उसे आकर्षक बनाने का काम अत्यन्त सामयिक दिया गया है। इसके अलावा सैन्य सुधारों को लागू करना, इंटीग्रेटेड थिएटर कमांड का गठन, हथियारों के आयात में कमी करना, रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को बढ़ाना, पाकिस्तान व चीन सीमा पर बने तनाव से निपटने के रास्ते निकालने की जिम्मेदारी के साथ ही रक्षा बजट अधिक करवाना है। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि रक्षा मंत्री इन सभी से कैसे निपटेंगे?

युवाओं की यह नाराजगी दिखाई पड़ी थी
अग्निपथ योजना में भर्ती होने को लेकर युवाओं ने शुरुआत से ही अपनी नाराजगी जाहिर कर दी थी। इस योजना के विरोध में काफी दिनों तक आंदोलन चलाए गए। सोशल मीडिया से लेकर ग्राउंड तक युवाओं की यह नाराजगी दिखाई पड़ी थी। यह आत अलग है कि बाद में नवयुवक इस योजना में भर्ती होने लग गए थे। इस योजना का अनेक सेवानिवृत्त सैनिकों ने इसका विरोध करते हुए सवाल उठाए थे। इसके अलावा इस चुनाव में कुछ विपक्षी दलों ने अग्निपथ योजना के मुद्दे को जोर शोर से उठाया। वहीं कुछ लोगों ने इस योजना की समीक्षा की बात की।उल्लेखनीय है कि इस योजना में युवाओं को चार साल के लिए भर्ती किया जाता है। यह योजना सेनांगों के लिए थी। इस योजना के 25 प्रतिशत जवानों को ही स्थायी होने का अवसर मिलेगा। शेष जवानों को अन्य क्षेत्रों में रोजगार की तलाश करनी पड़ेगी। स्थायी सैनिकों की तुलना में इनको 30 दिन की छुट्टी मिलती है। अब इस योजना में सुधार को लेकर सेना के भीतर से ही कुछ सुझाव मिले हैं, इसलिए इसकी समीक्षा किए जाने की बात चल रही है और समीक्षा के लिए सचिवों को जिम्मेदारी सौंप दी गई है।

एकीकृत थिएटर कमांड का गठन करना है
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह पहले ही कह चुके हैं कि अग्निपथ योजना में यदि बदलाव की आवश्यकता हुई तो वे करने को तैयार हैं। सैनिक सुधार करना सरकार के एजेंडे में शामिल है। अपने संकल्प पत्र में भाजपा ने इसे प्रमुखता से शामिल किया। था। इन सैन्य सुधारों में सबसे प्रमुख सेना के तीनों अंगों थल सेना, वायु सेना एवं नौसेना को मिलाकर एकीकृत थिएटर कमांड का गठन करना है। इसमें नए सेनाध्यक्ष की भूमिका प्रमुख होगी। विदित हो कि मोदी सरकार के नेतृत्व में वर्ष 2019 में थिएटर कमांड बनाए जाने का निर्णय हुआ था और उसी समय जनरल विपिन रावत को चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ बनाया गया था। इस योजना का उद्देश्य छोटी या बड़ी लड़ाइयों के समय अपने निश्चित सामरिक लक्ष्यों के साथ विशिष्ट शत्रु आधारित थिएटरों में संयुक्त अभियानों के लिए थल सेना, वायु सेना एवं नौसेना को एकीकृत करना है। भारतीय सशख बल थिएटर कमांड के गठन की तैयारियों को पूरा करने में लगे हुए हैं। वर्ष 2019 से अब तक की इस अवधि में निचले स्तर पर सेवाओं को एकीकृत करने के कुछ प्रयास किए गए हैं। बीते पांच वर्षों में थिएटर कमांड के लिए उत्तम संभव मॉडल पर ध्यान केंद्रित करने के लिए अनेक मसौदे तैयार किए गए। अब सरकार गठन के बाद इस पर विचार किए जाने की उम्मीद है।

दुनियाभर से 9.8 फीसदी हथियार आयात
मार्च 2024 में स्वीडन स्थित स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (एसआईपीआरआई) यानी कि सिपरी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि भारत संसार के शीर्ष हथियार आयातक देशों में शामिल है। यह संस्था दुनियाभर में हथियारों की खरीद-फरोख्त पर नजर रखती हैं और प्रतिवर्ष अपनी रिपोर्ट जारी करती है। सिपरी द्वारा जारी रिपोर्ट में बताया गया कि भारत ने वर्ष 2019 से 2023 तक पांच वर्षों में दुनियाभर से 9.8 फीसदी हथियार आयात किए हैं। भारत के लिए इस चुनौती से निपटना जरूरी हो गया है, इसलिए यह आवश्यक है कि हथियारों के मामले में दूसरे देशों पर भारत की निर्भरता को कम किया जाए। यह कार्य कैसे किया जाए इससे रक्षा मंत्री को निपटना होगा। बीते दशक से मोदी सरकार ने मेक इन इंडिया। पर लगातार जोर दिया है। इसी अभियान के तहत रक्षा क्षेत्र में भी आत्मनिर्भरता को काफी बढ़ावा दिया गया है। इसका परिणाम यह हुआ कि भारत के रक्षा उद्योग में सैन्य साजो-सामान का उत्पादन काफी बढ़ गया है। स्वदेशी तकनीक से बनी मिसाइलें, हल्का लड़ाकू विमान तेजस, ध्रुव हेलीकॉप्टर, स्कॉर्पियन श्रेणी की पनडुब्बियों ने देश के रक्षा क्षेत्र को काफी आगे बढ़ा दिया है। इस कारण भारत के रक्षा निर्यात में काफी बढ़ोत्तरी हो गई है। पिछले वित्तीय वर्ष में भारत का सैन्य निर्यात 21083 करोड़ रुपए तक पहुंच गया। फिलीपींस, पोलैंड तथा अफ्रीकी देशों ने भारत में मिसाइलों, विमानों और हेलीकॉप्टरों की खरीद में रुचि दिखाई है। अब जरूरत इस बात की है कि भारत रक्षा मैन्युफैक्चरिंग इतना आगे बढ़े कि रक्षा आयात को कम किया जा सके।

चीन के साथ भी तनाव बना हुआ है
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के लिए पाकिस्तान और चीन की सीमा पर मिलने वाली चुनौतियों से निपटने की सैन्य तैयारियां भी बढ़ानी हैं। जहां पाकिस्तान भारतीय सीमा के नजदीक किसी भी यौद्धिक स्थिति से निपटने के लिए चीन की मदद से बनकर तैयार करने के साथ-साथ अत्याधुनिक हथियार ले रहा है तो दूसरी तरफ चीन के साथ भी तनाव बना हुआ है। वर्ष 2020 में पैदा हुए तनाव के बाद के बाद से अभी तक 21 दौर की वार्ता के बाद भी स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है और अप्रैल 2020 से पहले की स्थिति बहाल नहीं हुई है, इसलिए चीन और पाकिस्तान की सीमा पर जवान डटे हुए हैं। रक्षा मंत्री के लिए एलएसी तथा एलओसी पर शांति व स्थिरता बनाए रखने की चुनौती होगी।


रक्षा चुनौतियों से निपटने लिए धन की अधिक आवश्यकता होती है
देश की रक्षा चुनौतियों से निपटने लिए धन की अधिक आवश्यकता होती है। रक्षा मंत्री के लिए वित्त मंत्री से अधिक रक्षा बजट की मांग पूरी करवाना भी विशेष कार्य रहेगा। भारत का रक्षा बजट रक्षा चुनौतियों के हिसाब से हमेशा कम रहा है। भारत का रक्षा बजट 74 अरब डॉलर के लगभग है जबकि अमेरिका का 832 अरब डॉलर, चीन का 227 अरब डॉलर व रूस का 109 अरब डॉलर है। दुनिया के प्रमुख देशों के रक्षा बजट के हिसाब से भारत चौथे नम्बर पर है। चीन का रक्षा बजट भारत से तीन गुना से ज्यादा है। अधिक रक्षा बजट होने पर ही भारत अत्याधुनिक हथियारों के निर्माण के बाद ही अन्य देशों के बराबर पहुंच सकेगा।
(लेखक सैन्य विज्ञान के प्राध्यापक रहे हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)

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