Opinion: दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल को बीते शुक्रवार को शीर्ष अदालत ने आबकारी नीति से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में बड़ी राहत दी है, लेकिन अंतरिम जमानत के बाद भी सीएम केजरीवाल को सीबीआई से राहत नहीं हैं और उन्हें जेल में ही रहना होगा, चूंकि इस मामले में सीबीआई में भी केस अलग से चल रहा है। इसके अलावा दिल्ली सरकार के मुख्य सिपहसालारों में से एक पूर्व उप-मुख्यमंत्री मंत्री मनीष सिसोदिया भी लंबे समय से जेल में है।
संजय सिंह, पूर्व स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन भी जेल में रह चुके और जिस बजह से पार्टी में उनकी सक्रियता उतनी नहीं है जैसे पहले थी। सतेन्द्र जैन के विषय में बात करें तो वह भी लंबे समय जेल में रहे और बाहर आते ही मानो उन्होंने राजनीति से संन्यास ले लिया हो। इसके अलावा स्वातिमाल से अरविंद केजरीवाल के घर पर जो मारपीट वाला कांड हुआ था उससे पार्टी ने स्वाति को बिल्कुल बैकफुट पर लाकर खड़ा कर दिया। इन सारे मामलों के चलते आम आदमी पार्टी का अस्तित्व पूर्ण रूप से खतरे में आ गया जिसकी वजह से दिल्ली सरकार के अंतर्गत आने वाले विभाग ठीक ढंग से संचालित नहीं हो रहे।
स्थिति पहले जैसी नहीं
दिल्ली का शिक्षा विभाग जब सिसोदिया के पास था तो उन्होंने शिक्षा मॉडल को सुधारने की हुंकार भरी और इस तर्ज पर पार्टी ने विदेशी मीडिया में सुर्खी बटोरी थी, लेकिन अब शिक्षा समेत तमाम सारे विभागों की स्थिति पहले जैसी बेहतर नहीं रही। स्थिति यह है कि विभाग के सभी अधिकारी व कर्मचारी मनमानी पर उतर आए हैं और जो मॉनिटरिंग होती है व पार्टी के बड़े नेताओं के जेल व उनकी सक्रियता कम होने की वजह से शून्य हो गई।
फरवरी 2020 में केजरीवाल द्वारा विभाग छोड़ने के बाद सिसोदिया ही मुख्यमंत्री के पोर्टफोलियो वाले विभाग देख रहे थे। अब थोड़ा और गंभीरता से सोचें तो दिल्ली सरकार के मुख्य सिपहसालार मनीष सिसोदिया एक समय पर पूरी सरकार को संचालित कर रहे थे और जैसा भी सही सरकार को चला रहे थे, लेकिन जब केजरीवाल भी जेल गए तो पार्टी के सामने कई तरह की चुनौतियां आ रही हैं। क्या नए मंत्री उतनी जल्दी चीजों को टेकओवर कर लेंगे जितने बेहतर तरीके से संचालित हो रही थी, स्पष्ट है कि किसी भी नए मंत्री को काम समझने में समय लगेगा।
टाले जा रहे काम
सिसोदिया व केजरीवाल को लंबे समय से काम करते हुए अनुभव हो चुका था। दिल्ली सरकार के जिन सभी विभागों की वह संचालित कर रहे थे उन सब में उनको महारत हासिल हो चुकी थी। कार के जैसा कि सिसोदिया के पास दिल्ली सरकार अहम विभाग थे जिनमें सक्रियता हमेशा अधिक बनी रहती थी, लेकिन अब हालात यह है कि जलभराव, शिक्षा के संबंधित के अलावा किसी विभाग में यदि कोई शिकायत यह किसी भी प्रकार का काम कराने हेतु कोई चिठ्ठी दी जाए तो उस पर कोई भी प्रतिक्रिया नहीं हो रही। यदि विभाग में जाकर बात भी की जाए तो अधिकारी केजरीवाल के जेल जाने का हवाला देकर कहते हैं कि मुख्यमंत्री के बाहर आने के बाद ही काम होगा। अभी निवारण की प्रतीक्षा करनी होगी।
कार्यशैली पर बट्टा
इसके अलावा पार्टी के अन्य नेताओं व समर्थकों का मन भी कमजोर होता जा रहा है, चूंकि बीते लोकसभा चुनाव में कांग्रेस से गठबंधन के बावजूद आम आदमी पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई, जबकि विधानसभा व निगम के चुनावों में पार्टी का बोलबाला है, लेकिन लोकसभा चुनाय में जैसी कल्पना की थी यह उसके विपरीत निकली। आम आदमी पार्टी लगभग दशकभर के सफर में विकल्प की राजनीति से स्वयं विकल्प बनकर रह गए। नेता व कार्यकर्ता जुड़ने की बजाय टूटने लगे। लगे। संकट के समय में बोते चार महीने में चार ऐसे नेता पार्टी छोड़ चुके जो पार्टी से विधानसभा चुनाव जीत चुके।
इनमें विधायक, पूर्व विधायक व मंत्री भी शामिल हैं। ज्ञात हो कि मंत्री पद पर रहते हुए राजकुमार आनंद ने पार्टी पर भ्रष्टाचार लगाते हुए इस्तीफा दे दिया था और जब से अब लगातार इस्तीफों का सिलसिला जारी है। बीते एक महीने में पार्टी के एक विधायक व पूर्व विधायक ने भाजपा भी ज्वाइन की जिससे पार्टी की कार्यशैली पर बट्टा लगा। आप जितनी तेजी से हल्ले व शोरगुल के साथ राजनीति में आई थी उतनी ही जल्दी उसका अस्तित्व खतरे में आता दिख रहा है। जब से सरकार बनी तब से अपने हक को लेकर एलजी से लड़ाई लड़ने की बात करते हुए अपने काम को आज तक पूरा नहीं कर पा रही थी कि इतने नेताओं के जेल जाने से संचालन प्रक्रिया बिल्कुल बाधित हो चुकी है।
सबसे अहम सवाल
दिल्ली में बारिश की वजह से जलभराव के कारण लोगों की मौतें तक भी हुई, जिस पर सब ने प्रतिक्रिया दी लेकिन इस बार काम किसी ने नहीं किया। बीती 29 अप्रैल में दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को शहर के नागरिक निकाय द्वारा संचालित स्कूलों में शिक्षा की स्थिति को लेकर एक याचिका पर सुनवाई की थी जिसमें कोर्ट ने कहा कि सीएम अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद दिल्ली सरकार तहर गई है। दिल्ली जैसी व्यस्त राष्ट्रीय राजधानी में मुख्यमंत्री का पद कोई औपचारिक नहीं है, उन्हें चौबीस घंटे उपलब्ध रहना होता है। उनकी अनुपस्थिति बच्चों को उनकी मुफ्त पाठ्य पुस्तकों, लेखन सामग्री और ड्रेस से वंचित नहीं कर सकती।
झारखंड की विधायी प्रक्रिया बाधित नहीं
दिल्ली हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की पीठ ने कहा था कि राष्ट्रीय हित और सार्वजनिक हित की मांग है कि इस पद पर रहने वाला कोई भी व्यक्ति लंबे समय तक या अनिश्चित अवधि के लिए संवादहीन या अनुपस्थित न रहे, लेकिन बावजूद इसके न तो दिल्ली के मुख्यमंत्री ने अभी तक इस्तीफा दिया और न ही किसी अन्य विकल्प को लेकर काम करने की योजना बनाई। इस मामले में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने मिसाल कायम की। आरोप लगे तो इस्तीफा दिया, कानून का सामना किया, फिर जब अदालत से राहत मिली तो वापस सीएम बन गए। उनके इस कदम से कम से कम झारखंड की विधायी प्रक्रिया नहीं बाधित हुई हुई।
हेमंत सोरेन भी जमीन से भ्रष्टाचार के आरोप का सामना कर रहे हैं। उन पर लगाए ईडी के आरोपों में अदालत को दम नहीं लगा, और इसलिए राहत मिल गई। दरअसल, देश में पहली बार र ऐसा हो रहा है कि सीट पर रहते कोई मुख्यमंत्री जेल गया हो। और जेल जाने के बाद भी इस्तीफा न दिया हो। एक मुख्यमंत्री का सत्ताजीवी होना ठीक नहीं है। इसके अलावा यह भी पहली बार हो रहा है कि मनी लॉडिंग मामले में किसी मौजूदा सरकार के मंत्री गए हो। लेकिन अब सवाल यह है कि आखिर देश की राजधानी कैसे चलेगी और इसके लिए किस तरह के नियम जुड़े कानून चाहिए होंगे जिससे रफ्तार आगे बढ़े।
योगेश कुमार सोनी: (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, यह उनके अपने विचार हैं।)