Opinion: डिजिटलाइजेशन विकसित भारत की राह, समावेशी विकास को सुनिश्चित करना

Opinion: केंद्र सरकार ने अंतरिम बजट पेश करने से ठीक पहले जारी किए 'द इंडियन इकोनॉमी: ए रिव्यू रिपोर्ट में भारतीय अर्थव्यवस्था के 2027 तक 5 ट्रिलियन डॉलर और 2030 तक 7 ट्रिलियन डॉलर और 2047 तक भारत के विकसित देश बनने की बात कही है। यहां सवाल उठाना लाजिमी है कि क्या सचमुच ऐसा मुमकिन है, क्योंकि अभी भी भारत एक विकासशील देश है और कई चुनौतियों का सामना कर रहा है। इनमें देश में समावेशी विकास को सुनिश्चित करना, गरीबी का खात्मा, आधारभूत संरचना को और मजबूत बनाना, शिक्षा के स्तर में इजाफा, प्रति व्यक्ति आय में बढ़ोतरी, सभी लोगों को आत्मनिर्भर बनाना आदि शामिल हैं।
रिव्यू और एसएंडपी ग्लोबल की रिपोर्ट
रिपोर्ट में मोदी सरकार के पिछले 10 सालों के सफ़र को आर्थिक सुधारों के संदर्भ में बहुत ही अहम बताया गया है। सरकार द्वारा किए जा रहे आर्थिक सुधारों की वजह से ही आज भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकी है। वित्त वर्ष 2025 में नॉमिनल जीडीपी के 7 प्रतिशत रहने की संभावना जताई गई है, जबकि वित्त वर्ष वित्त वर्ष 2023- 24 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर 8.2 प्रतिशत रही है। इस रिपोर्ट में यह भी संभावना जताई गई है कि भारत की जीडीपी 2030 तक 7 प्रतिशत की दर से आगे बढ़ सकती है। एसएंडपी ग्लोबल ने अपनी ग्लोबल क्रेडिट आउटलुक 2024 की रिपोर्ट 'न्यू रिस्क, न्यू प्लेबुक' में कहा कि भारत की नॉमिनल जीडीपी 2022 में 3.5 ट्रिलियन डॉलर से बढ़कर 2030 तक 7.3 ट्रिलियन डॉलर की हो जाएगी। द इंडियन इकनॉमीः ए रिव्यू और एसएंडपी ग्लोबल की रिपोर्ट के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था 2030 तक 7 प्रतिशत से अधिक की दर से आगे बढ़ सकती है। अगर ऐसा होता है तो 2030 में भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार 7 ट्रिलियन डॉलर से भी अधिक का हो जाएगा।
रिपोर्ट के अनुसार वित्त वर्ष 2024-25 में लगातार चौथे साल भारत की जीडीपी वृद्धि दर 7 प्रतिशत से अधिक रह सकती है, जबकि वित्त वर्ष 2023-24 में जीडीपी वृद्धि दर 8.2 प्रतिशत रही है। उल्लेखनीय है कि अभी दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं का विकास दर लगभग 3 प्रतिशत के आसपास है। हमारे देश ने आजादी के सौवें वर्ष यानी 2047 में विकसित देश बनने का सपना देखा है और इसके लिए देश में सूचना प्रौद्योगिकी, औद्योगीकरण, कृषि के यंत्रीकरण, यातायात व सुचारु संचार-व्यवस्था, अनुसंधान, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि सुविधाओं को बेहतर बनाने की कोशिश की जा रही है। आज आर्थिक विकास के साथ-साथ मानव विकास संबंधी सरोकारों को भी उच्च प्राथमिकता देना जरूरी है, क्योंकि विकसित देश बनने के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल की आपूर्ति, आत्मनिर्भरता आदि मानकों पर भी हमें खरा उतरना आवश्यक है।
अकेला चमकदार पहलू
बीते महीने दुनिया की निगाह फिर से भारत की ओर उठी थी, जब जर्मनी के डिजिटल एवं परिवहन मंत्री वोल्कर विस्सिंग ने भारत में एक सब्जी विक्रेता को यूपीआई से भुगतान किया था। आज भारत डिजिटल भुगतान की दिशा में दुनिया को रास्ता दिखा रहा है। दुनिया के दूसरे देशों में यूपीआई जैसी कोई भुगतान व्यवस्था नहीं है। अमेरिका में फेडनाऊ नाम से भुगतान सुविधा है, लेकिन इसकी प्रणाली अलग है। भारत सरकार ने नेशनल पेमेंट्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (एनपीसीआई) द्वारा 2016 में विकसित यूपीआई की तकनीक को कई देशों यथा फ्रांस, आस्ट्रेलिया, सिंगापुर, यूएई, सऊदी अरब, आदि को उपलब्ध कराया है, जिससे वे लाभान्वित हो रहे हैं। वैसे तमाम तरह की चुनौतियों के बीच यह कोई अकेला चमकदार पहलू नहीं है।
देश में जनधन खातों की कुल संख्या 52 करोड़ के आंकड़े को पार कर गई है, जिनमें से 56 प्रतिशत खाते महिलाओं के हैं और 35.15 करोड़ या लगभग 67 प्रतिशत खाते ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में खोले गए हैं। यह आंकड़ा दर्शाता है कि वित्तीय समावेशन की राह पर हम तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। जनधन खातों में 2.3 लाख करोड़ रुपए से अधिक है। इनमें अब तक 35 करोड़ रुपे कार्ड मुफ्त जारी किए गए हैं। ग्रामीण और कस्बाई इलाकों में बचत करने की प्रवृति बढ़ रही है, लेकिन साथ में वे थोड़ा खर्च भी करने लगे हैं, क्योंकि अब अमेजन, फ्लिपकार्ट, आदि गांव में भी लोगों के घरों में डिलीवरी कर रहे हैं। सरकार ने 2014 में वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के लिए जनधन बैंक खाते खोलने के लिए राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू किया था, जिसका उद्देश्य प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डोबीटी) सहित कई वित्तीय सेवाओं को गरीबों के लिए सुलभ बनाना था और इसमें बहुत हद तक हमें कामयाबी भी मिली।
खुदरा महंगाई घटकर 3.54 प्रतिशत
वर्ष 2026 तक देश के जीडीपी में डिजिटल अर्थव्यवस्था का योगदान 20 प्रतिशत से अधिक होने का अनुमान है। भारत एक ऐसा देश है, जिसने तकनीक को बहुत तेजी से अपनाया है और अब इसने दुनिया के समक्ष तकनीकी समाधान पेश करना शुरू कर दिया है। डिजिटल अर्थव्यवस्था का जीडीपी में योगदान 2014 में 4.00 से 4.5 प्रतिशत था, जो आज बढ़कर 11 प्रतिशत हो गया है। भारत ने तकनीक को न केवल नवाचार के लिए, बल्कि विविध क्षेत्रों में समाधान प्रस्तुत करने के लिए भी अपनाया है, जिससे पिछले कुछ सालों में लोगों के जीवन, परिचालन व्यवस्था, प्रशासन, शिक्षा, स्वास्थ्य, लोकतंत्र के तकनीकी स्वरूप आदि में बदलाव आया है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के अनुसार जुलाई महीने में खुदरा महंगाई घटकर 3.54 प्रतिशत के स्तर पर आ गई, जो 59 महीनों का निचला स्तर है, जबकि जून महीने में खुदरा महंगाई मई महीने के मुकाबले 0.33 प्रतिशत बढ़कर 5.08 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गई थी। वहीं, मई महीने में यह 4.75 प्रतिशत रही थी, जो 12 महीने का निचला स्तर था। वित्त वर्ष 2024-25 में इसके 4 प्रतिशत के आसपास आने की संभावना है।
देश में समावेशी विकास को बल मिल रहा
जाहिर है, महंगाई के कम होने पर विकास की रफ्तार में भी इजाफा होगा। भारत में उद्योगीकरण, शिक्षा, आधारभूत संरचना, यंत्रीकरण, डिजिटलाइजेशन, स्वास्थ्य आदि के क्षेत्र को मजबूत कर ने की दिशा में मुसलसल कार्य किया जा रहा है। यहां लोगों की जीवन प्रत्याशा, शिक्षा में सुधार, पेयजल की आपूर्ति आदि के संदर्भ में तेजी से कार्य किया जा रहा है। प्रधानमंत्री मुद्रा योजना, पीएम स्वनिधि, सेल्फ हेल्प ग्रुप आदि की मदद से देश में समावेशी विकास को बल मिल रहा है। बड़ी संख्या में लोग आत्मनिर्भर हुए हैं। डिजिटलाइजेशन ने भी अर्थव्यवस्था और कल्याणकारी योजनाओं को मजबूत करने का काम किया है। आर्थिक, सामाजिक, मानवीय और डिजिटलाइजेशन के मोर्चे पर भारत के उम्दा प्रदर्शन को देखते हुए कहा जा सकता है कि 2027 में 5 ट्रिलियन डॉलर, 2030 में 7 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था भारत की बन सकती है, साथ ही विकसित देश के लिए जरूरी मानकों पर खरा उतरकर भारत 2047 में एक विकसित देश भी बन सकता है।
सतीश सिंह: (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. यह उनके अपने विचार हैं।)
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