Opinion: सत्संग स्थल को किसने श्मशान घाट में तब्दील किया? ये सत्संग स्थल का सवाल घटना घट जाने के बाद हादसा स्थल के चारों ओर गूंज रहा है। जवाब कौन देगा और कौन है हादसे का जिम्मेदार? ये सवाल भी वहां मुंह बाये खड़ा हुआ है। भगदड़ में मरने वालों की फैली लाशें, कराहते घायल श्रद्धालुओं की चौखें देखकर परिजनों की हिम्मत जवाब देती दिखी। राहत- बचाव में जुटे कर्मियों के कलेजे भी कपकपा रहे थे। हाथरस में भोले बाबा के सत्संग में संभावित या आपातकाल की घटनाओं को रोकने के लिए प्रशासनिक इंतजाम अगर थोड़े से भी होते तो इतनी दर्दनाक घटना नहीं घटती। हैरानी की बात ये है कि पांच हजार सत्संगियों की रक्षा में मात्र 73 पुलिसकर्मी तैनात थे, जिनमें दो दर्जन तो होमगार्ड ही थे। घटना का शोर जब तेजी से मचने लगा तो सबसे पहले सुरक्षाकर्मी ही भाग खड़े हुए।
मात्र पांच हजार लोगों की बैठने की व्यवस्था थी
प्रशासन और आयोजक दोनों गहरी नींद में सोए हुए थे। सत्संग स्थल पर एक भी एंबुलेंस की व्यवस्था नहीं थी। न ही कोई फायर ब्रिगेड की गाड़ी वहां तैनात थी और न ही कोई विशेष अन्य व्यवस्थाएं की गई थीं, हाथरस भगदड़ हादसा स्थानीय प्रशासन की घोर लापवाही का नतीजा इसलिए कहा जाएगा, क्योंकि जिस सत्संग स्थल पर बाबा भोले नाथ प्रवचन का आयोजन था, उसमें मात्र पांच हजार लोगों की बैठने की व्यवस्था थी। लापरवाही देखिए 50 हजार से अधिक सत्संग प्रवचन सुन पहुंचे हुए थे, इसलिए सत्संग स्थल कैसे बना श्मशान घाट ? उसकी असल सच्चाई सबके सामने है। सत्संग स्थलों पर यह न पहला हादसा है और न ही अंतिम ? इससे पूर्व भी कई दर्दनाक हादसे हुए। लेकिन घटना हो जाने पर शासन से लेकर प्रशासन तक खलबली मच जाती है, पर जैसे ही मामले की तपिश कुछ शांत होती है, प्रशासन दूसरे हादसे का इंतजार करने लगता है। हाथरस का लोकल प्रशासन अगर वास्तव में थोड़ा भी अलर्ट होता।
प्रवचन सुनाने वाला बाबा फरार
इतने श्रद्धालुओं को सत्संग में पहुंचने की इजाजत नहीं देता, तो सैकड़ों लोग बेमौत मरने से बच सकते थे। हादसा होते ही प्रवचन सुनाने वाला बाबा फरार हो गया। बाबा की हकीकत जाने तो वह कोई जन्मजात साधु या प्रवचनकर्ता नहीं है और न ही लंबे समय से इस क्षेत्र में है। आधी उम्र बीतने के बाद उसे प्रवचन सुनाने का शौक चढ़ा। करीब 26 वर्ष तक उन्होंने इंटेलिजेंट ब्यूरों में सामान्य कर्मचारी के तौर पर नौकरी की, नौकरी छोड़ने के बाद उसके अपना नाम बदला और 'विश्व हरि भोले' रख लिया। फिर कूद पड़ा आध्यात्मिक क्षेत्र में, बीते कुछ वर्षों में उन्होंने हिंदी पट्टी के राज्यों में लाखों की संख्या में अपने अनुयायी बनाए। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, हरियाणा व बिहार में उनके भक्तों की संख्या बहुतायत है। ग्रामीण स्तर की महिलाएं इनकी भक्त ज्यादा हैं। जाहिर सी बात महिलाएं जब कहीं जाती हैं तो अपने साथ छोटे बच्चों को जरूर ले जाती हैं। मंगलवार को भी कमोबेश कुछ ऐसा ही हुआ।
प्रधानमंत्री और पक्ष-विपक्ष के नेता भी दुख प्रकट कर रहे
सवाल उठता है सरकार-प्रशासन इस हादसे से कुछ सबक लेगा या फिर मुआवजा और सहानुभूति देकर मात्र मामला शांत करेगा। मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री और पक्ष-विपक्ष के नेता भी दुख प्रकट कर रहे हैं, करना भी चाहिए, घटना ही ऐसी, जो सुन रहा है उसके रौंगटे खड़े हो रहे हैं। घटना का दोषी समूचा स्थानीय प्रशासन है, उसकी लापरवाही से ही ये घटना घटी। घटना कैसे घटी ये जानना जरूरी है। । प्रवचन प्र सुनाने वाले बाबा की जब इंट्री हुई तो उसे करीब से देखने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उनके काफिले पर टूट पड़ी। अगर वहां दो-चार दर्जन सुरक्षाकर्मी तैनात होते तो ऐसी घटना शायद न घटती। वो भीड़ को नियंत्रित कर सकते थे, पर यहां सवाल एक ये भी उठता है कि आयोजकों ने पुख्ता इंतजाम क्यों नहीं किए? भीड़ अगर ज्यादा थी तो प्रशासन से अपील करनी चाहिए थी।
श्रद्धालु विभिन्न अस्पतालों में गंभीर हालत में भर्ती
सैकड़ों श्रद्धालुओं के हताहत होने की खबर घटना के कुछ घंटों बाद ही सामने आ चुकी है। हताहतों की संख्या का बढ़ना भी अभी निश्चित है, क्योंकि सैकड़ों घायल श्रद्धालु विभिन्न अस्पतालों में गंभीर हालत में भर्ती हैं, लेकिन सत्संग स्थल कैसे समाधि स्थल बना इसकी जिम्मेदारी तय होनी चाहिए। प्रदेश सरकार ने मृतकों के परिजनों को 2-2 लाख तथा घायलों को 50-50 हजार की आर्थिक सहायता देने का ऐलान कर दिया है। वहीं, केंद्र सरकार ने भी आर्थिक सहायता राशि देने की घोषणा की है, लेकिन ये मुआवजा वह जख्म कभी नहीं भर सकता है, जो इस हादसे ने दिया है। दोषियों पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए, दोषी चाहे फिर आयोजक हों या प्रशासनिक अधिकारी।
डॉ. रमेश ठाकुर: (लेखक वरिष्ठ पत्रकार है. ये उनके अपने विचार है)