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Opinion: 17 जुलाई 1998 को 120 देश अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय के रोम संविधि नामक संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए एक साथ आए। तब से इसे अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय के रूप में जाने जाना लगा। रोम संविधि का जश्न मनाने के लिए, विश्व अंतरराष्ट्रीय न्याय दिवस तब से मनाया जाने लगा।

Opinion: दुनिया में मानवता के खिलाफ अपराध को रोकना मानवतावादियों के लिए चुनौती रही है। आज भी दुनिया में कहीं न कहीं नरसंहार, युद्ध अपराध और मानवता के खिलाफ संहार चलते रहते हैं। इन्हें रोकने की तमाम कवायदें चलती रहने के बावजूद इन्हें रोकना संभव नहीं हो पाया है। इन्हें रोकने के लिए अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय की स्थापना हुई।

अंतरराष्ट्रीय न्याय दिवस
17 जुलाई 1998 को 120 देश अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय के रोम संविधि नामक संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए एक साथ आए। तब से इसे अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय के रूप में जाने जाना लगा। रोम संविधि का जश्न मनाने के लिए, विश्व अंतरराष्ट्रीय न्याय दिवस तब से मनाया जाने लगा। पिछले 22 वर्षों में दुनिया में न्याय के क्षेत्र में तमाम बदलाव आए हैं। मानवता के खिलाफ दुनिया में चलाए जा रहे तमाम षड्यंत्रों को विफल करने में इस संस्था की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है।

इसकी स्थापना के पीछे नरसंहार, युद्ध अपराध और मानवता के खिलाफ अपराधों की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय के निर्णयों का समर्थन करना भी है। 2010 में राज्य दलों की सभा ने संविधि की समीक्षा सम्मेलन में इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मनाने का निश्चय किया। दुनिया के तमाम देश इसे मनाते हैं। पीड़ितों के अधिकारों को बढ़ावा देना इस दिवस के मनाने की खास वजह रही है। अंतरराष्ट्रीय आपराधिक कानून, न्यायपूर्ण और निष्पक्ष समाज की जरूरत आज विश्व समाज की सबसे बड़ी जरूरत है। एक सर्व सहमति से समझ बनाने की जरूरत है जो आतंक, नरसंहार और गैर इंसानी गतिविधियों के शिकार हो हलाकानी झेलने के लिए अभिशप्त हैं।

अन्याय के खिलाफ खड़ा होने को यार
विश्व समाज आज डर के माहौल में जीने के लिए मजबूर है। ऐसे में अंतरराष्ट्रीय स्तर की कोशिशों की भूमिका खास मायने रखती है। विश्व सामाजिक न्याय दिवस हमें हर साल अधिक न्यायपूर्ण, अधिक समतापूर्ण समाज बनाने की जरूरत को याद दिलाता है। समाज को समर्थ बनाने की दिशा में इस दिवस की महत्ता खास है, साथ ही समाज से असमानता, भेदभाव और अन्याय के खिलाफ खड़ा होने के लिए तैयार होना भी है। आज जरूरी है कि विश्व समाज में सामाजिक न्याय, आर्थिक न्याय, राजनीतिक न्याय और कानूनी न्याय बगैर भेदभाव सभी को न्याय मिले। यह आज की सबसे बड़ी चुनौती है।

विधि क्षेत्र में न्याय के जिन चार प्रकारों की बात की जाती है उनमें वितरणात्मक (यह निर्धारित करना कि किसे न्याय मिलता है) प्रक्रियात्मक न्याय (यह निर्धारिक तरना कि लोगं के साथ कितना निष्पक्ष व्यवहार किया जाता है) प्रतिशोधात्मक न्याय (गलत काम करने पर दंड के आधार पर) और पुनर्स्थापनात्मक (जो रिश्तों को सही बनाने की कोशिश करता है) इन चार तरह के न्यायों को समझना और दूसरों को इनके प्रति जागरूक करना भी इस दिवस का एक हिस्सा है।

न्यायालयों में मुकदमे लम्बित
विकासशील देशों में ही अन्याय के मामले ज्यादा नहीं हैं, बल्कि विकसित देशों में अन्याय से पीड़ित लाखों की तादाद में लोग हैं। भारत में करोड़ों की तादाद में न्यायालयों में मुकदमे लम्बित हैं। करोड़ों मुकदमों का फैसला तब आता है जब वादी या प्रतिवादी इस दुनिया से रुख्सत हो चुके होते हैं। बगैर भेदभाव के न्याय दिलवाने और समय से दिलवाने के लिए विश्व स्तर पर सामूहिक प्रयास तो होने ही चाहिए। संविधि में शामिल सभी देशों को एक मत से इस पर गौर करना चाहिए की सभी को बगैर समय पर न्याय मिले। इससे इस दिवस का महत्व और बढ़ भी जाएगा।
अखिलेश आर्येन्दु: (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)

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