Opinion: सवर्वोच्च अदलत ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को अंतरिम जमानत देकर 'आधी राहत दी है, क्योंकि सीबीआई के भ्रष्टाचार वाले केस में वे अभी तिहाड़ जेल से 'मुक्त' नहीं हुए हैं। विशेष अदालत ने केजरीवाल की न्यायिक हिरासत 25 जुलाई तक बढ़ा दी है। सर्वोच्च अदालत में यह केस अब तीन न्यायाधीशों धीशों की पीठ सुनेगी। यह कुछ और मुद्दों पर भी अदालत का अभिमत स्पष्ट करेगी। अब देर-सवेर केजरीवाल जेल से बाहर आ सकते हैं, क्योंकि 90 दिन की जेल के बाद, जीने और मुक्ति के अधिकार के तहत, सर्वोच्च अदालत ने केजरीवाल को अंतरिम जमानत दी है।
बुनियादी शर्त बेहद कठोर
जब तक बड़ी पीठ सुनवाई करेगी, यह अंतरिम जमानत जारी रहेगी। दुर्लभ और अपवाद के मामले होते हैं, जब यह अंतरिम जमानत निरस्त कर दी जाए। बहरहाल, नियमित जमानत अब भी दिल्ली उच्च न्यायालय के पास विचाराधीन है। दरअसल अंतरिम जमानत की बुनियादी शर्त बेहद कठोर और विरोधाभासी है। जेल से बाहर आने के बावजूद केजरीवाल मुख्यमंत्री दफ्तर और सचिवालय नहीं जा पाएंगे। मुख्यमंत्री होने के बावजूद यह मुख्यमंत्री के दायित्य नहीं निभा सकेंगे।
उपराज्यपाल की अनुमति या आग्रह के बिना किसी भी सरकारी फाइल पर हस्ताक्षर नहीं कर सकेंगे। क्या निर्वाचित मुख्यमंत्री के लिए ऐसी पाबंदियां और शर्तें व्यावहारिक और लोकतांत्रिक हैं? क्या केजरीवाल ने वैकल्पिक राजनीति में कदम रखते हुए ऐसी ही नियति की कल्पना की थी? कई ऐसी बंदिशें हैं, जो पेशेवर आरोपितों पर लगाई जाती हैं और केजरीवाल पर भी चस्या की गई हैं। अब केजरीवाल को खुद सोचना चाहिए कि क्या बराए नाम ही मुख्यमंत्री रहना राजनीतिक नैतिकता है? शीर्ष अदालत की न्यायिक पीठ ने तो उन्हें संकेत दे दिए हैं।
ईडी को सबक सिखाया
सर्वोच्च अदालत ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के धनशोधन वाले मामले में। अंतरिम जमानत दी है, लेकिन। ईडी को उसकी शक्तियों के बारे में सबक सिखाया है। पीठ ने कहा है कि पीएमएलए की धारा 19 के तहत गिरफ्तारी का आधार केवल जांच लिए नहीं एक हो समान सकता नीति है। ईडी बनाए। धनशोधन पीएमएलए मामलों में में गिरफ्तारी गिरफ्तारी के की अनिवार्यता अथवा इसकी जरूरत की व्याख्या के लिए यह मामला तीन न्यायाधीशों की पीठ को भेजा गया है। दूसरी ओर ईडी ने शराब घोटाले में ही विशेष अदालत में आरोप-पत्र दाखिल किया है।
आरोपी नंबर 38
केजरीवाल को घोटाले का 'साजिशकार' बताते हुए आरोपित बनाया गया है, लेकिन आम आदमी पार्टी (आप) देश की पहली राजनीतिक राष्ट्रीय पार्टी बन गई है, जिसे आरोप-पत्र में 'आरोपी नंबर 38' बनाया गया है। केजरीवाल 'आरोपी नंबर 37 हैं। केजरीवाल को इस विरोधाभास से भी निपटना पड़ेगा। अब 'आप' के खिलाफ भी अदालत में मुकदमा चलेगा। यदि 'आप' अपराध में दंडित की जाती है, तो चुनाव आयोग उसकी मान्यता भी रद कर सकता है। पराकाष्ठा की। यह स्थिति करीब 12 साल में ही आ गई, क्योंकि 'आप' की स्थापना नवम्बर, 2012 में की गई थी।
'आप' के राष्ट्रीय संयोजक अर्थात पार्टी प्रमुख एवं मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल फिलहाल जेल में हैं। उनकी कैबिनेट में उपमुख्यमंत्री रहे मनीष सिसोदिया और स्वास्थ्य मंत्री रहे सत्येन्द्र जैन लंबे वक्त से तिहाड़ जेल में ही हैं। उनके खिलाफ भी धनशोधन के मामले हैं। संदर्भ दिल्ली में नई शराब नीति की आड़ में 100 करोड़ रुपये की घूस और घोटाले का है। अब ट्रायल विशेष अदालत में ही चलेगा। अलबत्ता केजरीवाल जमानत के खोल में ही रहेंगे।
शुचिता के दावों पर संशय
विडंबना है कि जिस पार्टी की स्थापना भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन से हुई थी और जो आज तक 'कट्टर ईमानदारी' और शुचिता के दावे करती है, उस पार्टी का अस्तित्व भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के कारण संकट में पड़ गया है। मैंने 2012 के उस दौर मेंअण्णा हजारे के आंदेलन और अनशन को लगातार देखा है। उस आंदोलन में केजरीवाल के अलावा कई और प्रमुख चेहरे भी होते थे, जो आज 'आप' में नहीं है और केजरीवाल की राजनीति के भी विरोधी है। अण्णा को भनक तक नहीं थी कि केजरीवाल के भीतर राजनीतिक पार्टी बनाने और राजनीति में कूदने की महत्वाकांक्षा उच्चन पर है।
तब भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन, लोकपाल और भ्रष्ट नेताओं को जेल में डालने के फतवों ने आम नौजवान को इनका समर्थक बनाया। अण्णा अनशन समाप्त कर महाराष्ट्र लौट चुके थे और केजरीवाल ने भ्रष्ट नेताओं की एक सूची को लेकर प्रलाप शुरू किया। अंततः 26 नवम्बर, 2012 को 'आप' की स्थापना की गई। और फरवरी, 2013 के दिल्ली के चुनाव में इतनी सीटें जीत ली गई कि केजरी के ही शब्दों में कथित 'भ्रष्ट कांग्रेस' के समर्थन से ही आप ने पहली सरकार बनाई। सरकार 49 दिन चली और केजरीवाल ने इस्तीफा दे दिया। 2015 और 2020 में भरपूर और एकतरफा जनादेश 'आप' के पक्ष में रहे, नतीजतन दिल्ली में एक वर्ग 'आप' का वोट बैंक बन गया। उसे बिजली मुफ्त मिल रही थी। पानी भी लगभग मुफ्त था। कई और योजनाएं शुरू की गई, जिनके आधार पर 'आप' एक मजबूत पार्टी बनी। 2022 में पंजाब में भी एकतरफा जनादेश मिला। आप को अपनी बिजली, पानी, स्कूल और अस्पताल की सियासत पर भरोसा होने लगा।
प्रलाप स्वीकार नहीं
बहरहाल अब 'आप' पर खतरा मंडरा रहा है और 'आप' के बड़े नेता जेल में हैं, तो साफ है कि आरोप के शक्ल में ही सही, पर कुछ तो गड़बड़ और काले कारनामे जरूर किए गए हैं, जो नेता कटघरे में हैं। इसे प्रधानमंत्री मोदी की सरकार की साजिश और भाज्या का सियासी खुन्नस करार देते रहना बेमानी है। जांच एजेंसियां प्रधानमंत्री के तहत ही काम करती हैं, यह देश के संविधान और कानून में स्पष्ट है, लेकिन प्रधानमंत्री ही किसी मुख्यमंत्री को जेल में डलवा दे, इस प्रलाप को स्वीकार नहीं किया जा सकता। दिल्ली को छोड़कर देश भर में 'आप' भाजपा के लिए चुनौती नहीं है। फिर केजरीवाल से डरने के जुमले के मायने क्या है? 'आप' के प्रवक्ता और नेता चुनावी बॉन्ड का प्रलाप करते हुए आरोप-पत्र को खारिज नहीं कर सकते।
अब अदालती ट्रायल ही अंतिम निष्कर्ष देगा। बुनियादी आरोप 45 करोड़ रुपये की पूस का है, जो राशि हयाला के जरिये, गोया चुनाव के दौरान, भेजी गई ई थी। हवाला कारोबारियों का जुदाय 'आप' और केजरीवाल से बताया जा रहा है। जिन चुनावी प्रत्याशियों को नकद पैसा दिया गया, उनके नाम, बयान और ब्योरे भी ईडी ने दर्ज किए हैं।
केस कैसे चलेगा
ईडी के मुताबिक, 'आप' भी ऐसी आपराधिक आय से लाभान्वित हुई थी। अब सवाल है कि धनशोधन वाले कानून के दायरे में क्या राजनीतिक पार्टी भी आती है? उस पर केस कैसे चलेगा? क्या पार्टी के प्रमुख प्रभारियों पर ही केस चलेगा? आरोप-पत्र के मुताबिक, पीएमएलए की धारा-70 के तहत 'आप' 45 करोड़ रुपये की आपराधिक आय की लाभार्थी है। केजरीवाल को भी इस आपराधिक आप की जानकारी थी। धारा-3 में 'आप' को भी धनशोधन के अपराध की दोषी माना गया है। धारा-70 में यह स्पष्ट उल्लेख है कि जो कंपनी (या पार्टी) का इंचार्ज होगा, उसे ही 'अपराधी' माना जाएगा। कानून में कंपनी को जो परिभाषा है, यह 'आप' पर भी लागू होती है। मुख्यमंत्री एवं 'आप' के राष्ट्रीय संयोजक केजरीवाल ही 'जिम्मेदार प्रभारी' हैं अथवा वित्तीय मामलों का प्रभार किसी और नेता को दिया हुआ था? यह कोर्ट में साबित करना होगा।
केजरी व आप की राजनीति दांव पर
बहरहाल केजरीवाल एवं समूह की राजनीति दांव पर है। फरवरी, 2025 से पहले दिल्ली में विधानसभा चुनाव हैं। दिल्ली में 'आप' और केजरीवाल के प्रति गुस्सा और मोहभंग के भाव महसूस किए जा सकते हैं। इस बार लोकसभा में भाजपा ने सभी सात सीटें जीती हैं, कांग्रेस व आप का गठबंधन भी काम नहीं आया। केजरीवाल अपनी कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं और दिल्ली बेसहारा छोड़ दी गई है। चिलचिलाती गर्मियों में जिस तरह पानी का संकट आम आदमी ने झेला है। बिजली के बिलों में गड़बड़ी सामने आई है। दिल्ली में सड़कों और नालियों के काम ठप हैं, यह बरसात के मौसम ने साबित कर दिया।
मुहल्ला क्लीनिक भ्रष्टाचार और लापरवाही के अड्डे बन गए हैं और सरकारी अस्पताल भेड़-बकरियों की तरह भरे पड़े हैं, दवाएं उपलब्ध नहीं हैं, डॉक्टर परवाह नहीं करते, सरकार दावा करती है कि चिकित्सा मुफ्त है। राजनीतिक तौर पर देखें, तो 'आप' और कांग्रेस का गठबंधन टूट चुका है और भाजपा ने सातों लोकसभा सीट जीती हैं। केजरीवाल ने भी प्रचार किया था। सर्वोच्च अदालत ने उन्हें विशेष जमानत पर रिहा किया था, लेकिन वह भी 'आप' का एक भी उम्मीदवार जितवा नहीं पाए।। संदेश साफ है, दिल्ली की जनता से केजरीवाल सहानुभूति भी नहीं हासिल कर पाए। उपराज्यपाल बनाम राज्य सरकार के मामले में सर्वोच्च अदालत भी कोई निर्णायक फैसला नहीं सुना सकी।
प्रत्येक स्तर पर अराजकता
सरकार में प्रत्येक स्तर पर अराजकता है। अधिकारी मंत्रियों की बात तक नहीं सुनते। मुख्य सचिव सरकार के खिलाफ ही रपटें उपराज्यपाल को देते हैं, जिनके आधार पर जांच बिठाई जाती है। दिल्ली में कई विभाग ऐसे हैं, जिनके कर्मचारी अपनी नौकरी की बहाली अथवा वेतन के लिए सड़कों पर संघर्ष कर रहे हैं। यदि केजरीवाल मुख्यमंत्री के तौर पर ही नहीं कर सकेंगे, तो वह कैबिनेट की बैठक कभी नहीं बुला सकते। यदि कैबिनेट की बैठक नहीं होगी, तो फैसले कैसे लिए जाएंगे? अगले चुनाव के मद्देनजर किस फ्रीबिज का ऐलान कर सकेंगे केजरीवाल?
आप' बिखराव की स्थिति में आ गई है। उसकी सरकार में मंत्री रहे, विधायक रहे और कार्यकर्ताओं की फौज पार्टी छोड़ कर भाजपा में गए हैं। केजरीवाल के सामने 'मुक्त' होने और आरोपों से निजात पाने की ही चिन्ता नहीं है, बल्कि उन्हें नये सिरे से पार्टी को भी एकजुट करना पड़ेगा। अगला विधानसभा चुनाव केजरीवाल फिलहाल व आम आदमी पार्टी की राजनीति का भविष्य निर्धारण करेगा। केजरीवाल व उनके नेता जेल से तो बाहर आएं।
सुशील राजेश: (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, यह उनके अपने विचार हैं। )