Opinion: भाई-बहन के बीच अटूट बंधन, स्नेह और विश्वास का प्रतीक रक्षाबंधन पर्व सदियों से ही भारतीय जनमानस का अभिन्न अंग है। प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाए जाने वाले इस पर्व की भारतीय समाज और संस्कृति में बड़ी महत्ता है। रक्षाबंधन पर्व इस वर्ष 19 अगस्त को मनाया जा रहा है। भाईयों की कलाई पर राखियां बांधने के लिए बहनें इस दिन का वर्षभर इंतजार करती हैं।
जीवन के लिए मंगलकामना
यह पर्व रक्षा के तात्पर्य से बांधने वाला एक ऐसा सूत्र है, जिसमें बहनें अपने भाईयों के माथे पर तिलक लगाकर जीवन के हर संघर्ष तथा मोर्चे पर उनके सफल होने तथा निरन्तर प्रगति पथ पर अग्रसर रहने की ईश्वर से प्रार्थना करती हैं तथा उनके सुखद जीवन के लिए मंगलकामना करती हैं। भाई भी अपनी बहनों को हर प्रकार की विपत्ति से रक्षा करने का वचन देते हैं। मान्यता है कि सावन माह की पूर्णिमा के दिन शुभ मुहूर्त में बांधे गए रक्षासूत्र का प्रभाव बहुत शक्तिशाली होता है। वैसे तो हिन्दू समाज में रक्षाबंधन बहनों द्वारा भाईयों को रक्षा-सूत्र बांधने के पर्व के रूप में प्रचलित है लेकिन पूर्व में यह पर्व भाई-बहन तक ही सीमित नहीं था बल्कि विपत्ति आने पर अपनी रक्षा के लिए अथवा किसी की आयु और आरोग्य की वृद्धि के लिए किसी को भी रक्षा-सूत्र बांधा या भेजा जाता था।
किसी भी धार्मिक और सांस्कृतिक अनुष्ठान के बाद आज भी रक्षा-सूत्र के माध्यम से ही सभी उपस्थितजनों को रक्षा का संकल्प कराया जाता है। भारतीय परम्परा में विश्वास का बंधन ही मूल है और इसी विश्वास का बंधन है रक्षाबंधन। बहन द्वारा भाई को रक्षा-सूत्र बांधने का चलन कब शुरू हुआ, इसकी कोई सटीक प्रामाणिक जानकारी नहीं मिलती लेकिन रक्षाबंधन मनाए जाने के संबंध में अनेक पौराणिक एवं ऐतिहासिक प्रसंगों का उल्लेख अवश्य मिलता है। बहनों द्वारा भाईयों की कलाई पर बांधी गई राखी के प्रभाव से शाखों में अनेक जगहों पर रक्षाबंधन के महत्व का उल्लेख मिलता है। विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख है कि देवता भी यह पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाते थे। पद्म पुराण, स्कन्ध पुराण और श्रीमद्भागवत में वामनावतार नामक कथा में रक्षाबंधन का प्रसंग मिलता है।
तपोबल से एक रक्षासूत्र तैयार
एक अन्य प्रसंग में जब देवराज इन्द्र बार-बार राक्षसों से परास्त होते रहे और हर बार राक्षसों के हाथों देवताओं की हार से निराश हो गए तो इन्द्राणी ने कठिन तपस्या कर अपने तपोबल से एक रक्षासूत्र तैयार किया। यह रक्षासूत्र इन्द्राणी ने देवराज इन्द्र की कलाई पर बांधा और इस रक्षासूत्र के प्रभाव से देवराज इन्द्र राक्षसों को परास्त करने में सफल हुए। कहते हैं कि तभी से रक्षाबंधन पर्व की शुरुआत हुई। एक उल्लेख यह भी मिलता है कि जब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया था, तब उन्होंने एक ब्राह्मण का वेश धारण कर अपनी दानशील प्रवृत्ति के लिए तीनों लोकों में प्रसिद्ध राजा बलि से तीन पग भूमि दान में मांगी और बलि द्वारा उनकी मांग स्वीकार कर लिए जाने पर भगवान वामन ने अपने पग से सम्पूर्ण पृथ्वी को नापते हुए बलि को पाताल लोक भेज दिया। कहा जाता है कि उसी की याद में रक्षाबंधन पर्व मनाया गया।
महाभारत काल के एक प्रसंग के अनुसार एक बार भगवान श्रीकृष्ण की उंगली से रक्त बह रहा था। जैसे ही द्रोपदी की नजर गई, उसने तुरंत अपनी साड़ी का किनारा फाड़कर उनकी उंगली पर बांध दिया, जिसके बाद श्रीकृष्ण ने उसकी रक्षा करने का संकल्प लिया, जिसे वे आजीवन निभाते रहे। ऐतिहासिक दृष्टि से इस पर्व की शुरुआत मध्यकालीन युग से मानी जाती है। भारतीय इतिहास ऐसे प्रसंगों से भरा पड़ा है, जब राजपूत योद्धा अपनी जान की बाजी लगाकर युद्ध के मैदान में जाते थे तो उनके प्रदेश की बेटियां उनकी आरती उतारकर उनकी कलाई पर रक्षा-सूत्र बांधा करती थी। बंगाल विभाजन के बाद नोबेल पुरस्कार विजेता रवीन्द्रनाथ टैगोर ने हिन्दुओं और मुसलमानों से एकजुट होने का आग्रह किया था और दोनों समुदायों से एक- दूसरे की कलाई पर रक्षा-सूत्र बांधने का निवेदन किया था।
कच्चे धागों से पक्के रिश्ते
वास्तव में भाई- बहन के स्नेह, अपनत्व और प्यार के धागों से जुड़ा धार्मिक एवं अलौकिक महत्व का यह पर्व बेहद शालीन एवं सात्विक संबंधों का पावन त्योहार है। कलाई पर बांधे जाने वाले कच्चे धागों से पक्के रिश्ते बनते हैं। भारत के हर सम्प्रदाय में भाई-बहन के रिश्ते को पवित्रता की नजर से देखा गया है और रक्षाबंधन का पर्व आत्मीयता और स्नेह के बंधन से रिश्तों को मजबूती प्रदान करने का पावन पर्व है। श्रवण मास की अंतिम तिथि वाली श्रवण नक्षत्रयुक्त पूर्णिमा को श्रावणी कहते हैं और इस दिन रक्षाबंधन पर्व मनाया जाता है।
श्वेता गोयल: (लेखिका स्तंभकार व शिक्षिका हैं. ये उनके आपने विचार हैं।)