Opinon: ईरान की आधी आबादी यानी महिलाओं के लिए वहां की फिंजा क्या कुछ हद तक उनके माकूल बहने वाली है? दरअसल यह सवाल इसलिए है क्योंकि ईरान के हाल में नवनिवार्चित सुधारवादी राष्ट्रपति मसूद पजशकियान ने वादा किया था कि महिलाओं के लिए हिजाबी अनिवार्यता खत्म कर इसे वैकल्पिक बनाया जाएगा, जिस मुल्क में कट्टरवादी इस्लामी नियम ही राजनीति की धुरी हैं और सत्ता ही खी के बदन, उसकी आजादी को बीते कई दशकों से नियंत्रित करती आ रही है, क्या वहां राष्ट्रपति मसूद अपने मुल्क की खियों के लिए कुछ क्रांतिकारी कदम उठा पाएंगे। पेशे से दिल के डाक्टर क्या हकीकत में अपने ऐसे बदलाव से आधी आबादी का दिल जीतने के लिए कुछ एतिहासिक पहल करते नजर आएंगे।
मसूद के लिए एक बड़ी चुनौती
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार ईरान में महिलाओं व लड़कियों के खिलाफ संस्थागत भेदभाव के कारण लंबे समय से मानवाधिकारों का उल्लघंन होता रहा है और यह मसूद के लिए एक बड़ी चुनौती है। हाल में ईरान में संपंन राष्ट्रपति चुनाव में सुधारवादी नेता मसूद पजशकियान ने कट्टरपंथी नेता सईद जलीली को हराकर एक इतिहास रच दिया। मसूद को 1.64 करोड़ और सईद जलीली को 136 करोड़ मत मिले। गौरतलब यह है कि मसूद को मिलने वाले कुल मतों में से 50 प्रतिशत 30 साल से कम आयु वालों के हैं। ईरान की आबादी 89,809,781 यानी नौ करोड़ से थोड़ी कम है और इसमें युवा आबादी की तादाद 65-70 प्रतिशत है। इस मुल्क की युवा आबादी को सुधारवादी छवि वाले मसूद से कई उम्मीदें हैं।
दरअसल मसूद ने चुनाव में पश्चिमी मुल्कों द्वारा ईरान पर लगाए गए कठोर प्रतिबंधों को हटाने का वादा किया है। जनता को उम्मीद है कि इससे उनके मुल्क की अर्थव्यवस्था सुधरेगी, रोजगार मिलेगा। उन्होंने यह भी वादा किया कि महिलाओं के लिए हिजाब की अनिवार्यता खत्मकर इसे वैकल्पिक बनाया जाएगा। उन्होंने कई मर्तबा कहा है कि वो किसी भी प्रकार की वह मॉरल पुलिसिंग के खिलाफ है। दरअसल उन्होंने अपने कई राजनीतिक भाषणों में हिजाब का विरोध किया था। इस बार के चुनाव में हिजाब का मुद्दा प्रमुख मुददों में से एक था। वजह 13 सितंबर 2022 को ईरान की 22 साल की महसा अमीनी नामक युवती को अचानक वहां की मॉरलिओ पुलिस गिरफ्तार कर एक वैन में बिठाकर ले जाती है। महसा अमीनी को सरकारी मानकों के अनुरूप हिजाब नहीं पहनने के लिए गिरफ्तार किया गया था।
सिर को ढकना जरूरी
ईरान में कानून के तहत महिलाओं के लिए सार्वजनिक जगहों पर अपने सिर को ढकना जरूरी है। इसका उल्लघंन करने पर सजा का भी प्रावधान है। बहरहाल अमीनी तीन दिन तक कोमा में रही और उसकी मौत हो गई। इससे नाराज हजारों लोग सरकार के खिलाफ सड़को पर प्रर्दशन करने लगे। महिलाओं की आजादी के नारे गूंजने लगे। ईरान इस मुद्दे पर अलग-थलग हो गया, लेकिन सत्ता में काबिज धार्मिक व कट्टरपंथी नेताओं ने इस प्रदर्शन में अमेरिका का हाथ होने का आरोप लगाया व इस विद्रोह को बेरहमी से कुचल दिया। मानवाधिकार संगठनों के मुताबिक लोगों के सार्वजनिक प्रदर्शन के छह महीनों के दौरान 500 लोग मारे गए, इनमें 60 ऐसे थे जिनकी उम्र 18 साल से कम थी। मसूद ने चुनाव प्रचार में मतदाताओं को गारंटी दी थी कि यदि बदलाव नहीं ला पाए तो समय से पूर्व ही राष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे देंगे।
अब सवाल यह उठता है कि क्या ईरान जैसे धार्मिक व कट्टरपंथी मुल्क में मसूद महिलाओं के लिए हिजाब को वैकल्पिक बना पाएंगे। न्यूयार्क विश्वविद्यालय की प्रोफेसर अजादेह मोवेनी कहती हैं कि सरकार के ड्रेसकोड की कथित उल्लघंन करने वाली महिलाओं पर जुर्माना लगाना और उनका उत्पीड़न, मॉस्लिटी पुलिस के कामकाज का हिस्सा है। उनके निशाने पर छोटे या तंग कपड़े पहनने वाली या ऐसी महिलाएं होती हैं जिन्होंने अपने बालों को ठीक तरह से ढका न हो, लेकिन ईरान की आधी आबादी को मसूद से खास उम्मीदें हैं। गौरतलब है कि ईरान में 1979 की इस्लामिक क्रांति के बाद समाज में महिलाओं की भूमिका को सत्ताधारियों ने तय किया और इसे ईरानी राष्ट्र की विचारधारा से जोड़ दिया, जो इस्लाम धर्म पर केंद्रित है। ईरान की इस्लामी क्रांति के नेता अयातोल्लाह खोमैनी ने इस बात पर विशेष बल दिया था कि महिलाएं शालीन कपड़े पहनें।
क्रांति में महिलाओं का योगदान
1979 में उन्होंने एक पत्रकार को दिए साक्षात्कार में कहा था कि क्रांति में उन महिलाओं ने योगदान दिया है जो शालीन कपड़े पहनती हैं। ये नखरेबाज औरतें जो मेकअप करती हैं और अपनी गर्दन, बाल और बदन की सड़कों पर नुमाइश करती हैं, उन्होंने शाह के खिलाफ लड़ाई नहीं लड़ी। खोमैनी और उसके समर्थकों ने महिला अधिकारों को दबाया, उन्होंने इस्लामी क्रांति के नाम पर उनकी आजादी को कुचला। 1979 में जो नारे गूंज रहे थे, उनमें से एक था कि हिजाब पहनी नहीं तो हम सिर पर मुक्का मारेंगे, दूसरा नारा था कि गैरहिजाबी मुर्दाबाद। सलीके के कपड़े पहनने वाली औरत को वहां की कट्टरपंथी सत्ता ने नियम के रूप में स्थापित किया। 1979 में कट्टरपंथियों के सत्ता में काबिज होने के बाद महिलाओं पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए गए।
विदेश जाने के लिए पति की अनुमति अनिवार्य कर दी गई। महिलाओं से पति की अनुमति के बिना नौकरी करने या सार्वजनिक रूप से अपनी पंसद के कपड़े पहनने पर पहरा बिठा दिया गया। जिस कानून के तहत महिलाओं को शादी, तलाक और विरासत में समान अधिकार हासिल थे, उसे रद्द कर दिया गया। ईरानी सत्ता की इस महिला विरोधी नजरिए के प्रति वहां कई बार प्रदर्शन भीहुए, लेकिन सत्ता के नजरिए में कोई उल्लेखनीय बदलाव नहीं आया। ईरान में शादी से पहले महिलाओं के लिए वर्जिन होना बहुत अहम है क्योंकि कई पुरुष शादी से पहले महिलाओं से ऐसे प्रमाणपत्र की मांग करते हैं।
दरअसल यह एक ऐसा मूल्य है जो ईरान की संरक्षणवादी संस्कृति को हिस्सा है।
सुधारवादी फैसलों पर वीटो
19 मई 2024 को ईरान के पूर्व राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की हेलिकॉप्टर दुर्घटना में मौत हो गई, वे भी एक कट्टरवादी राष्ट्रपति थे और खोमैनी के समर्थकों में से एक। ईरान की महिलाओं के लिए एक सुधारवादी का राष्ट्रपति बनना प्रतीकात्मक तौर पर बहुत मायने रखता है, वे यह भी जानती हैं कि उनके मुल्क में सुधारवादी के सामने सबसे बड़ी चुनौती खोर्मनी की सुप्रीम कोसिल है। इसके 12 सदस्य सुधारवादी फैसलों पर वीटो कर सकते हैं। यूं तो मसूद पजशकियान ने यह भी वादा किया है कि वो पश्चिमी मुल्कों से बात कर परमाणु मसले पर एक समझौते तक पहुंचेगे, इससे मुल्क पर लगे प्रतिबंध हल्के हो सकेंगे। इस सुधारवादी राष्ट्रपति के चुने जाने को ईरान की नए दौर में एंट्री के तौर पर देखा जा रहा है।
अलका आर्य: (लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं. ये उनके अपने विचार हैं।)