Opinion: सपने वो नहीं होते जो आपको रात में नींद में आएं लेकिन सपने वे होते हैं जो रात में सोने ना दें। ऐसी बुलंद सोच और अग्नि सरीखी ऊंची उड़ान रखने वाले मिसाइलमैन एपीजे कलाम ही थे जिन्हें जनता का राष्ट्रपति यूं ही नहीं कहा जाता था। अपने कार्यकाल में डॉ. अवुल पकिर जैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम ने अन्य राष्ट्रपति के कार्यकालों के मुकाबले न केवल अमिट छाप छोड़ी, बल्कि ऐसी मिसाल भारतीय राजनीति में देखने को नहीं मिलती।

सम्मानित व्यक्तियों में से एक
डॉ. कलाम ने अपनी सादगी से उन्होंने पूरे देश की जनता का दिल जीता। राष्ट्रपति पद पर रहते हुए भी वह आम इंसान की तरह रहते थे। वह देश के सम्मानित व्यक्तियों में से एक थे जिन्होंने एक वैज्ञानिक और एक राष्ट्रपति के रूप में अपना अतुल्य योगदान देकर देश सेवा की। अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद से डॉ. कलाम शिलांग, अहमदाबाद और इंदौर के भारतीय प्रबंधन संस्थानों तथा देश एवं विदेश के विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों में अतिथि प्रोफेसर के रूप में कार्यरत थे। डॉ. कलाम ने राष्ट्राध्यक्ष रहते हुए राष्ट्रपति भवन के दरवाजे आम जन के लिए खोल दिए जहां बच्चे उनके विशेष अतिथि होते थे।

15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम में पैदा हुए कलाम ने मद्रास इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलोजी से स्नातक करने के बाद भौतिकी और एयरोस्पेस इंजीनियरिंग का अध्ययन किया और फिर उसके बाद रक्षा शोध एवं विकास संगठन से जुड़ गए। उनका बचपन भी बड़ा संघर्ष पूर्ण रहा। कलाम की इच्छा थी कि वे वायु सेना में भर्ती हों तथा देश की सेवा करें। यह इच्छा पूरी न हो पाने पर उन्होंने बे-मन से रक्षा मंत्रालय के तकनीकी विकास एवं उत्पाद का चुनाव किया। वहां उन्होंने 1958 में तकनीकी केन्द्र सिविल विमानन में वरिष्ठ वैज्ञानिक सहायक का कार्यभार संभाला। उन्हीं दिनों इसरो में स्वदेशी क्षमता विकसित करने के लिए उपग्रह प्रक्षेपण यान कार्यक्रम की शुरुआत हुई।

रक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य
कलाम को प्रोजेक्ट डायरेक्टर नियुक्त किया गया जिसे उन्होंने अंजाम तक पहुंचाया। जुलाई 1980 में रोहिणी उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा के निकट स्थापित करके भारत को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष क्लब के सदस्य के रूप में स्थापित कर दिया। डॉ. कलाम ने भारत को रक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से रक्षा मंत्री के तत्कालीन वैज्ञानिक सलाहकार डॉ. वीएस अरुणाचलम के मार्गदर्शन में इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम की शुरुआत की। इस योजना के अंतर्गत त्रिशूल आकाश, नाग, अग्नि एवं ब्रह्मोस मिसाइलें विकसित हुई। डॉ. कलाम ने जुलाई 1992 से दिसम्बर 1999 तक रक्षा मंत्री के विज्ञान सलाहकार तथा डीआरडीओ के सचिव के रूप में अपनी सेवाएं प्रदान कीं।

उन्होंने भारत को सुपर पॉवर बनाने के लिए 11 मई और 13 मई 1998 को सफल परमाणु परीक्षण किया। इस प्रकार भारत ने परमाणु हथियार के निर्माण की दिशा में महत्वपूर्ण सफलता अर्जित की और पोकरण विस्फोटों की भनक अमेरिका तक को नहीं लगी और परीक्षण सफल हुआ। डॉ. कलाम नवम्बर 1999 में भारत सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार रहे और फिर 25 जुलाई 2002 को भारत के ग्यारहवें राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित हुए। वे 25 जुलाई 2007 तक इस पद पर रहे और उनको राष्ट्रपति बनाने में नेताजी ने मास्टर स्ट्रोक उस दौर में चला जब वामपंथी और विपक्ष एनडीए के इस फैसले के साथ गया था। 2012 में सबसे पहले तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी के साथ कलाम को राष्ट्रपति बनाने की बात सामने रखी थी, कांग्रेस की पसंद प्रणब मुखर्जी थे और वह कलाम के साथ नहीं थी।

युवाओं और बच्चों के बीच लोकप्रिय
डॉ कलाम को कार्यकाल की कोई चाह नहीं थी लेकिन करोड़ों प्रशंसकों का दिल उन्होंने नहीं तोड़ा और दूसरे कार्यकाल के चयन पर सभी दलों की सहमति चाही। उनकी जीवनी विंग्स ऑ फायर भारतीय युवाओं और बच्चों के बीच बेहद लोकप्रिय है। डॉ. कलाम की लिखी पुस्तकों में गाइडिंग सोल्सः डायलॉग्स ऑन द पर्पज ऑफ लाइफ एक गंभीर कृति है। उनकी कविताओं का एक संग्रह द लाइफ ट्री के नाम से अंग्रेजी में भी प्रकाशित हुआ है। राष्ट्रपति के रूप में कलाम की पहचान अलहदा थी। अपनी अनोखी संवाद शैली के चलते कलाम अपने भाषणों में बच्चों को हमेशा शामिल करते थे। व्याख्यान के बाद वह अक्सर छात्रों से उन्हें पत्र लिखने को कहते थे और प्राप्त होने वाले संदेशों का हमेशा तुरंत जवाब देते थे।
हर्षवर्धन पाण्डे: (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)