Opinion: नटवर व जिया उल हक थे मित्र, फोटो देखकर सैन्य तानाशाह भावुक

Opinion: भारत के पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह भारत के 1980 के दशक में इस्लामाचाद में भारत के उच्चायुक्त रहे थे। उन दिनों पाकिस्तान के राष्ट्रपति जिया उल हक थे। तब तक जिया उल हक की छवि एक पत्थरर्यदल राष्ट्राध्यक्ष की बन गई थी। कारण यह था कि उन्होंने दुनिया के कहने के बावजूद पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो की फांसी की सजा को माफ नहीं किया था।
सेंट स्टीफंस कॉलेज का शताब्दी साल
जब नटवर सिंह इस्लामाबाद पहुंचे तो उनकी जिया हल हक से मुलाकात हुई। उस दौरान नटवर सिंह ने जिया को बताया कि वे भी राजधानी के सेंट स्टीफंस कॉलेज के पड़े हैं। फिर तो दोनों के संबंध घनिष्ठ होते चले गए। नटवर सिंह का बोते शनिवार को निधत हो गया। नटवर सिंह के आग्रह पर जिया उल हक ने सेंट स्टीफंस कॉलेज की पत्रिका दि स्टीफेनियन (The Stephanian) के लिए एक लेख भी लिखा था। दरअसल 1981 सेंट स्टीफंस कॉलेज का शताब्दी साल था। उस खास मौके पर सेंट स्टीफंस कॉलेज में कार्यक्रम हो रहे थे। दि स्टीफेनियन का एक खास अंक में प्रकाशित हो रहा था। नटवर सिंह की गुजारिश पर जिया उल हक ने उसमें अपने सेंट कॉलेज के दिनों पर एक लेख खुशी-खुशी लिखा था। वे सेंट स्टीफंस कॉलेज के शताब्दी वर्ष के समारोह में भाग भी लेना चाहते थे। पर उनके भारत के दौरे को तब के प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की तरफ से हरी झंडों नहीं मिली थी।
नटवर सिंह ने अपनी आत्मकथा वन लाइफ इन नॉट एनफ (One Life is not enough) में लिखा है कि उसी दौर में सेंट स्टीफंस कॉलेज के प्रिंसिपल राजपाल की अगुवाई में कॉलेज के कुछ अध्यापकों और छात्रों का एक जत्था इस्लामाबाद आया। नटवर सिंह ने उनकी जिया उल हक से मुलाकात करवाई। वे अपने साथ एक बादगार तोहफा जिया उल हक के लिए लाए थे। उन्होंने जिया उल हक को एक फोटो भेंट की, जिसमें वे अपनी क्लास के बाकी साथियों के साथ खड़े हैं। वह फोटो जिया इसलिए खरीद नहीं सके थे, क्योंकि उनके पास अपने छात्र जीवन के समय पैसे की किल्लत रहा करती थी। उस यादगार फोटो को देखकर सैन्य तानाशाह बहुत भावुक हो गया था।
नटवर सिंह ने दुनिया देखी
हालांकि जिया उल हक को अपने कॉलेज में आने की हसरत 1981 में ही पूरी हो गई थी जब वे निर्गुट सम्मेलन में भाग लेने राजधानी आए थे। जिया उल हक 1941 से 1945 तक पढ़े थे। नटवर सिंह ने 1948 में सेंट स्टीफंस कॉलेज ज्वाइन किया था। उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि वे 15 अगस्त 1948 को प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का लाल किले से स्वाधीनता दिवस पर देश के नाम दिए जाने वाले संदेश को सुनने के लिए गए थे। वे कॉलेज की स्टूडेंट यूनियन के भी प्रेसिडेंट रहे थे।
विदेश सेवा में रहते हुए नटवर सिंह ने दुनिया देखी थी। वे 1962 के संयुक्त राष्ट्र के सालाना सम्मेलन के उस खास दिन मौजूद थे जिस दिन दुनिया की दो चोटी की शख्सियतों अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ केनेडी और महान क्रांतिकारी चे ग्वेरा ने सदन के सामने अपने यादगार भाषण दिए थे। तब तक दोनों को संसार जानने लगा था।
नटवर सिंह लिखते हैं कि कैनेडी की सारी पर्सनेल्टी चमत्कारी थी। उन्हें देख-सुनकर कोई भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता था। उनके कालजयी भाषण 'आस्क नॉट वाट योर कंट्री फैन हू फॉर यू..' के बाद वे दुनिया के सबसे सम्मानित राजनेता माने जाने लगे थे। नटवर सिंह बताते थे कि चे ग्वेरा और कैनेडी को सुनने के लिए संयुक्त राष्ट्र का सभागार खचाखच भरा हुआ था। जैसी उम्मीद थी, चे ग्वेरा ने अपने जोशीले भाषण के दौरान अमेरिका की नीतियों को जमकर कोसा। ग्वेरा के भाषण को सुनकर कैनेडो सहज तो नहीं थे।
चुनौतियों के इर्द-गिर्द भाषण
जरा सोचिए उन लम्हों के बारे में जब संयुक्त राष्ट्र के सत्र में कैनेडी और चे ग्वेरा साथ-साथ बैठे होंगे। कैनेडी ने दुनिया के सामने चुनौतियों के इर्द-गिर्द अपने भाषण को रखा। नटवर सिंह के अनुसार, केनेडी की 24 नवंबर 1963 को वाशिंगटन में हुई अंत्येष्टि में प्रधानमंत्री नेहरू को शामिल होना चाहिए था। कैनेडी ने चीन के साथ जंग में भारत का खुलकर साथ दिया था। इसके बावजूद उनकी अंत्येष्टि में भारत से राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री नहीं पहुंचे थे। भारत ने कैनेडी की मृत्यु पर जो शोक प्रस्ताव अमेरिकी सरकार को भेजा था, उसे नटवर सिंह ने ही लिखा था।
नटवर सिंह का विवाह 21 अगस्त 1967 को पटियाला हाउस में पटियाला के महाराजा यादवेंद्र सिंह की पुत्री हेमेंद्र कौर से हुआ था। तब तक यहां पटियाला हाउस में कोर्ट नहीं बने थे। विवाह के बाद अशोक होटल में रिसेप्शन हुई थी। उसके बाद वे सपत्नीक लोदी रोड के सरकारी फ्लैटों में भी रहे। रिश्ते में नटवर सिंह के साले हैं पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह। अजीब इत्तेफाक है कि नटवर सिंह की अंत्येष्टि पटियाला हाउस लोधी रोड के करीब हो लोधी रोड श्मशान भूमि में हुई। वहां पर नटवर सिंह को अंतिम विदाई देने कैप्टन अमरिंदर सिंह भी मौजूद थे।
विवेक शुक्ला: (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. ये उनके अपने विचार हैं।)
-
Home
-
Menu
© Copyright 2025: Haribhoomi All Rights Reserved. Powered by BLINK CMS