Hindu Nav Varsh: हिंदू नव संवत्सर क्या है, कैसे हुई शुरुआत; जानें इसकी प्रसांगिकता और महत्व

Hindu New Year: महान गणितज्ञ भास्‍कराचार्य की कालगणना वाला पंचांग हिंदू नव संवत्‍सर पर केंद्रित है। इसी दिन मर्यादा पुरुषोत्‍तम राम तथा धर्मराज युधिष्ठिर का राज्‍याभिषेक हुआ।;

Update:2025-03-30 22:43 IST
हिंदू नव संवत्‍सर का महत्व और प्रसांगिकता।Nav Samvatsara Relevance and importance
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Hindu New Year: सनातन धर्म में नवसंवत्‍सर के प्रथम दिवस को नववर्ष के प्रारंभिक/आरंभिक वर्ष के रूप में मान्‍यता दी गई है। इसके पीछे कई ठोस सांस्‍कृतिक, ऐतिहासिक, वैज्ञानिक और आध्‍यात्मिक कारण हैं। ऐसी मान्‍यता है कि इस ति‍थि पर ब्रम्‍हाजी ने सृष्टि की रचना आरंभ की थी। ब्रम्‍हपुराण के अनुसार, कालगणना का प्रारंभ भी इसी दिन से हुआ है। 

महान गणितज्ञ भास्‍कराचार्य की कालगणना वाला पंचांग नवसंवत्‍सर पर ही केंद्रित है। इसी तिथि पर मर्यादा पुरुषोत्‍तम श्रीराम चंद्र तथा धर्मराज युधिष्ठिर का राज्‍याभिषेक हुआ था, इसी तिथि से सतयुग शुरुआत हुई। इसी तिथि से चैत नवरात्र देवी आराधना का पर्व भी प्रारंभ होता है। 

उच्‍च ऊर्जा में होते हैं सूर्य-चंद्र 
हम भारतीयों के लिए यह तिथि इसलिए भी महत्‍वपूर्ण है क्‍योंकि इसकी शुरूआत न्‍याय के प्रतीक महाराजा विक्रमादित्‍य ने की थी। जो वैदिक ज्योतिषीय गणनाओं पर आधारित है, प्राकृतिक चक्रों के अनुरूप है। वैज्ञानिक और खगोलीय दृष्टिकोण से नव संवत्‍सर का पहला दिवस सूर्य संक्रांति काल में होता है। चंद्रमा शुक्‍ल पक्ष में होता है और वसंत विषुव के निकट होता है। इसका अर्थ सूर्य और चंद्र दोनों उच्‍च ऊर्जा में होते हैं।

कहीं गुड़ीं पड़वा तो कहीं उगादि
नवसंवत्‍सर का पहला दिन महाराष्‍ट्र और मध्‍यप्रदेश में गुड़ीं पड़वा जबकि, आंध्रप्रदेश और कर्नाटक में ‘उगादि’ के रूप में मनाया जाता है। राजस्‍थान में इसे ‘थापना’ और कश्‍मीरी पंडित ‘नवरेह’ के रूप में मनाते हैं। सिंधी समाज ‘चेती चांद’ के रूप सेलिब्रेट करता है। होली मोहल्‍ला, विशु, वैशाखी रूपी के विभिन्‍न रूप हैं।

हिंदू नव संवत्सर का महत्व

  • एक जनवरी का नया वर्ष खगोलीय या प्राकृतिक महत्‍व का नहीं बल्कि ग्रेग्रेरियन कैलेण्‍डर का पहला दिन है। यूरोप के लोगों ने इसाई धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए अपनाया था। बाद में भारतीयों ने बेमन से जन्‍म-मरण, शादी-सगुन की तिथि, नौकरी, न्‍यायालयों और स्‍कूल कॉलेज के कामकाज में अपना लिया। हालांकि, हमारी सांस्‍कृतिक और परंपरा ने अधिक महत्‍व नहीं देती। 
  • पश्चिमी सभ्‍यता का नया वर्ष केवल आडम्‍बर, मौज-मस्‍ती, फिजूल अतिशबाजी और दिखावे का प्रतीक मात्र होता है, जबकि हमारा संवत्‍सर धर्म, सत्‍कर्म, शक्ति और ज्ञान का समय होता है और इसे हम अपने पर्व के रूप में, उपवास, हवन ओर पूजा आराधना के साथ मनाते हैं। यह हमारे मानसिक शुद्धता के लिये ही नही, स्‍वास्‍थ्‍य के लिये भी हितकारी है। 
  • हमारा नवसंवत्‍सर का प्रथम दिवस हमें अपने पर्व को उत्‍साह के साथ मनाने, संस्‍कृति, धर्म, परंपरा, प्रकृति, इतिहास, आध्‍यात्‍म, विज्ञान, राष्‍ट्रीय एकता, स्‍वास्‍थ्‍य और सकारात्‍मक ऊर्जा के प्रवाह को अक्षुण्‍ण रखने में सहायक है। जबकि अंग्रेजी नववर्ष का इन भावनाओं से कोई लेना-देना नहीं है। 
  • हमारा नवसंवत्‍सर केवल नवतिथि नहीं है, यह युग धर्म का उद्घोष है। आइए चेतना के इस नव प्रभात को अपने पूर्वजों के स्‍वप्‍नों को स्‍तर दें, संस्‍कृति का अभयुदय होने दें, परंपरा को गतिशील करते हुए लये बिहान की रचना में जुट जाएं। 

सृष्टि की उत्‍पत्ति की सटीक गणना
महान ऋषि महर्षि दयानंद ने अपनी पुस्‍तक ‘सत्‍यार्थ-प्रकाश’ में सृष्टि की उत्‍पत्ति की सटीक गणना बताई है। कहा, विक्रम कैलेण्‍डर की इस पद्धति कालगणना को बाद में अंग्रेजों और अरबियों ने भी अनुसरण किया है। भारतीय घरों में विविध पकवान बनाए जाते हैं और कहीं-कहीं शमी की पत्तियां आपस में शेयर कर सुख-सौभाग्‍य की कामना करते हैं। कहीं-कहीं काली मिर्च, नीम की पत्‍ती, गुड़ या मिश्री, अजवाईन, जीरे का चूर्ण के मिश्रण को बांटने-खाने का प्रचलन है जो स्‍वास्‍थ्‍य की दृष्टि से भी उपयोगी होता है। 

अल्‍वर्ट आईस्‍टीन ने भी स्वीकारी सत्यता 
स्‍वामी विवेकानंद ने कहा था-हमें देशभक्ति के बीज उगाने हैं तो गुलामी के प्रतीक तिथियों का मोह त्‍यागकर राष्‍ट्रीय पंचाग की तिथि आत्‍मसात करनी होगी। पांचवी शताब्‍दी में आर्यभट्ट सहित अन्‍य खगोलविदों ने वर्तमान पंचांग का निर्माण और परिशोधन का कार्य किया है। जो सूर्य-ग्रहण और चंद्र-ग्रहण की गणना युगों बाद भी सटीक बताता है। वैज्ञानिक अल्‍वर्ट आईस्‍टीन ने समय और स्‍थान के सिद्धांत में हमारे पंचांग की गणनाओं की सत्‍यता स्‍वीकार की थी। 

भारतीय ज्ञान-परम्‍परा का विशिष्‍ट अंग
समाहार के रूप में हम कहते हैं कि नवसंवत्‍सर भारतीयों के लिए सर्वोपयुक्‍त है। यह हमारी ज्ञान-परम्‍परा का विशिष्‍ट अंग है। हमें इसे व्‍यापक रूप से अंगीकृत कर विश्‍व के समक्ष प्रतिमान की तरह प्रस्‍तुत करना चाहिए। ताकि आगामी समय में पूरी दुनिया इसका अनुसरण करे और भारतीय संस्‍कृति का डंका विश्‍व में बजे। 

लेखक: डॉ एससी राय, प्राचार्य, प्रधानमंत्री कॉलेज आफ एक्सीलेंस शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, सतना

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