Opinion: दुनियाभर में शतरंज के खेल में भारत की नई पीढ़ी बेहतरीन प्रदर्शन कर रही है। ऊर्जा और आशाओं से भरे इन युवाओं ने शतरंज के खेल की बिसात पर भारतीय मेधा का लोहा मनवाया है, जिसके चलते इस खेल में हमारे देश की धाक और साख दोनों बढ़ी है। कई युवा खिलाड़ियों ने इस दिमागी खेल में देश को विशेष पहचान दिलाई है।
20 जुलाई को विश्व शतरंज दिवस
ज्ञात हो कि शतरंज का खेल मूलतः भारत से निकलकर ही दुनियाभर में पहुंचा है। पहले इस खेल को 'चतुरंग' के नाम से जाना जाता था। अब 1924 में पेरिस में अंतरराष्ट्रीय शतरंज महासंघ (फिड़े) के स्थापना दिवस को चिह्नित करने के लिए हर वर्ष 20 जुलाई को विश्व शतरंज दिवस मनाया जाता है। सुखद है कि भारत से ही अरब होते हुए यूरोप तक पहुंचने वाले इस खेल में भारत अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करवा रहा है। विश्वनाथन आनंद के बाद अब युवा पीढ़ी शतरंज में देश का प्रभावी प्रतिनिधित्व कर रही है।
आनंद 1988 में भारत के पहले ग्रैंडमास्टर बने थे। हाल ही में 21 साल के अर्जुन एरिगासी शतरंज की दुनिया में उपस्थिति दर्ज कराते हुए देश के नए नंबर 1 शतरंज खिलाड़ी बने हैं। अप्रैल-2024 की इंटरनेशनल चेस फेडरेशन की वर्ल्ड रैंकिंग सूची में अर्जुन 9वें स्थान पर हैं। यह वैश्विक रैंकिंग पाने के बाद अर्जुन एरिगासी ने विश्वनाथन आनंद को पीछे छोड़ दिया है। सुखद है कि इस खेल में विश्व चैंपियन विश्वनाथन आनंद के बाद अगली पीढ़ी के भारतीय खिलाड़ी बेहतरीन प्रदर्शन कर रहे हैं। हाल के वर्षों में कई युवा खिलाड़ियों ने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर इस खेल में धाक जमाई है।
इतिहास के पन्नों पर नाम
कुछ समय पहले डोम्माराजू गुकेश ने फिडे कैंडिडेट्स 2024 जीतकर इतिहास के पन्नों पर अपना नाम लिखवाया है। गौरतलब है कि गुकेश कास्परोव के पांच साल के जीत के रिकॉर्ड को तोड़कर सबसे कम उम्र के विजेता बन गए हैं। शीर्ष रैंक वाले भारतीय शतरंज खिलाड़ियों में विश्वनाथन, गुकेश, प्रगनानंद, अर्जुन एरिगासी और विदित गुजराती समग्र संसार को भारत की प्रतिभा से परिचय करवा रहे हैं। डोम्माराजू गुकेश तो मौजूदा समय में दुनिया के तीसरे सबसे कम उम्र के ग्रैंडमास्टर हैं। वहीं प्रगनानंद इस खेल के सबसे चर्चित चेहरों में एक बने हुए हैं।
सबसे कम उम्र के खिलाड़ी बने
10 साल की आयु में अंतरराष्ट्रीय खिताब जीतकर प्रगनानंद शतरंज के इतिहास में सबसे कम उम्र के खिलाड़ी बने। वहीं 29 साल के विदित गुजराती भी देश के शीर्ष खिलाड़ियों में शामिल हैं। विदित ने अपना पहला विश्व कप 2015 में खेला था। 2017 और 2019 में विदित तीसरे राउंड तक पहुंचने में सफल रहे। शतरंज में महिला खिलाड़ी भी देश का मान बढ़ाने में पीछे नहीं हैं। कोनेरू हम्पी, वैशाली रमेश बाबू, हरिका द्रोणावल्ली चर्चित खिलाड़ी हैं। 2008 में ग्रैंडमास्टर खिताब हासिल करने वाली हरिका 2024- 2025 फिडे महिला ग्रैंड प्रिक्स सीरीज में भारत का नेतृत्व करने जा रही हैं।
ग्रैंडमास्टर की उपाधि से सम्मानित
वैशाली रमेश बाबू को अंतरराष्ट्रीय शतरंज महासंघ द्वारा ग्रैंडमास्टर की उपाधि से सम्मानित किया जा चुका है। वैशाली, कोनेरू हम्पी और हरिका के बाद यह उपाधि पाने वाली तीसरी भारतीय महिला ग्रैंडमास्टर हैं। ध्यातव्य है कि वैशाली और प्रगनानंद भाई-बहन हैं। यह दुनिया की पहली ग्रैंडमास्टर भाई-बहन की जोड़ी भी है। शतरंज के खेल में अपनी रणनीतिक चालों के जरिये भारतीय मेधा से दुनिया का परिचय करवा रहे इन युवा चेहरों ने अपनी ही नहीं देश की भी विशेष पहचान बनाई है।
डा. मोनिका शर्मा: (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, यह उनके अपने विचार हैं।)