Opinion: हॉकी का जादूगर के नाम से चर्चित भारत के दिग्गज हॉकी खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद के जन्मदिन को राष्ट्रीय खेल दिवस रूप में मनाया जाता है। यह दिन जीवन में खेलों की अहमियत को भी रेखांकित करता है। असल में जीवन की जंग हो या खेल का मैदान बहुत कुछ एक सा होता है। कड़ी मेहनत, जीतने का जज्बा, हौसला, नेतृत्व दृढ़ता, गंभीरता, सधी अनुशासित दिनचर्या और हार मिलने पर भी असीम धैर्य। जो कुछ जिन्दगी से जूझने के लिए चाहिए, वही खेल के मैदान में टिके रहने के लिए भी आवश्यक होता है।
विचारों की सही दिशा
यही वजह है कि बच्चों का खेलों से जुड़ाव बेहद जरूरी है। विचारों की सही दिशा, श्रमशील व्यक्तित्व और स्वास्थ्य संभाल के लिए जीवन के पहले ही पड़ाव पर नई पीढ़ी की खेल के मैदान में मौजूदगी रहे। देश के भावी नागरिकों को व्यक्तित्व के ठहराव और संघर्ष का पाठ पढ़ाने के लिए खेलों से जोड़ना सबसे जरूरी है। ध्यातव्य है कि भारत में राष्ट्रीय खेल दिवस मेजर ध्यानचंद सिंह और हॉकी के खेल में उनकी असाधारण उपलब्धियों के स्मरण से जुड़ा हुआ है। इतना ही नहीं, खेलों और शारीरिक गतिविधियों के महत्व को पहचानने और बढ़ावा देने के लिए भी यह दिन मनाया जाता है। देशभर में शारीरिक सक्रियता और खेलों से मिलने वाली मानसिक मजबूती का संदेश देने के लिए कई कार्यक्रम, समारोह और गतिविधियां आयोजित की जाती हैं।
हर बार एक विषय विशेष के मद्देनजर मनाए जाने वाले राष्ट्रीय खेल दिवस की वर्ष 2024 की आधिकारिक थीम 'शांतिपूर्ण और समावेशी समाजों के संवर्धन और विकास के लिए खेल' रखी गई है। यह विषय बताता है कि लोगों की एकजुटता, समुदायों की समावेशिता और शांति को बढ़ावा देने के लिए खेल एक सार्थक परिवेश बना सकते हैं। इस वर्ष की थीम खेलों और सामाजिक बंधनों की मजबूती को जोड़कर देखने-समझने का संदेश लिए है। असल में सोशल बाँडिंग हो या आपसी संवाद और मेलजोल। वर्चुअल स्क्रीन में खेलते आज के बच्चे सहज जीवन से जुड़ी कई बातों से दूर हैं। बच्चों की निष्क्रिय जीवनशैली तो अब चिंता का विषय बन गई है।
अभिभावकों को भी डरा रही
मोटापा और कम उम्र में दूसरी बीमारियों की दस्तक अभिभावकों को भी डरा रही है। इतना ही नहीं, तकनीकी गैजेट्स में गुम आज के बच्चे अपने हमउम्र साथियों के साथ मिलकर खेलने और हार-जीत को जीने का भाव भी भूल रहे हैं। लांसेंट मेडिकल जर्नल में छपे एक अध्ययन के मुताबिक बीते चार दशक में 18 साल से कम उम्र के बच्चों में मोटापे के स्तर में 10 गुना बढ़ोतरी हुई है। ध्यातव्य है कि वैश्विक स्तर पर 200 देशों के आंकड़ों के आधार पर सामने आया कि यह अध्ययन अपनी तरह का सबसे बड़ा शोध है। विचारणीय है कि नई पीढ़ी की जीवनशैली और तकनीकी व्यस्तता कमोबेश दुनिया के हर समाज में ही बढ़ी है।
नतीजतन, खेल-कूद के अभाव में बच्चों की शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं भी बढ़ रही हैं। साध्थना मश्किल नहीं कि बालमन के उत्पाद ऊर्जा और सामाजिक जुड़ाव को पोषण देने वाली खेलने की गतिविधि उनके सम्पूर्ण व्यक्तित्व पर प्रभाव डालती है। ज्ञात हो कि बीते दिनों केरल उच्च न्यायालय ने भी अपने एक निर्देश में खेलकूद को बच्चों का मौलिक अधिकार कहा था। असल में खेल और हमउम्र बच्चों से मेलजोल ही बच्चों की अधिकतर शारीरिक- मनोवैज्ञानिक परेशानियों का हल है। आज आपराधिक गतिविधियों तक में लिप्त हो रहे बच्चों का आक्रोश और चिड़चिड़ापन दूर करने के लिए भी उनका खेलना आवश्यक है। साथ ही खेलों से जुड़ने वाले बच्चे समय प्रबंधन और अनुशासन सीखते ही हैं। इसके अलावा वे स्मार्ट स्क्रीन से भी दूर रहत पाते हैं।
मैदान में उतर कर मानसिक तनाव भूल जाते हैं
एक ओर वर्चुअल खेल खेलने वाले बच्चे दुखदायी कदम तक उठा लेते हैं तो दूसरी ओर मन की व्याधियों से घिरते भी बच्चे खेल के मैदान में उतर कर मानसिक तनाव भूल जाते हैं। खेलों के माध्यम से बच्चों में बेहतर शारीरिक और बौद्धिक विकास का परिवेश बनता है। खास तौर पर एकल परिवारों के इस दौर में खेल ही बालमन को अपने आप तक सिमटे रहने के दायरे से बाहर निकालकर लाते हैं। मन की झिझक दूर कर उन्हें मिलनसार बनाते हैं। बचपन में मिलने वाला सामाजिकता, नियमितता और स्वनियमन का यह सकारात्मक पाठ बच्चों को जिम्मेदार और सहयोगी नागरिक भी बनाता है। ज्ञात हो कि वर्ष 2024 की थीम भी सोशल बाँडिंग के इसी भाव को सम्बोधित है।
डॉ. मोनिका शर्मा: (लेखिका स्वतंत्र स्तंभकार हैं. यह उनके अपने विचार हैं।)