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आज से ही देश में पुराने आपराधिक कानून को समाप्त करके नए आपराधिक कानूनों को लागू किया जा रहा है। Opinion: भारतीय लोकाचार और संस्कृति को प्रतिबिंबित करने के लिए इन कानूनों का नाम बदला गया। जैसे कि भारतीय न्याय संहिता 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 पुरातन ब्रिटिश औपनिवेशिक युग से प्रस्थान का प्रतीक है, जिसमें सजा पर नहीं न्याय पर जोर दिया जाता है।

Opinion: आज एक जुलाई है। यह तारीख भारतीय न्यायिक व्यवस्था में मील का पत्थर साबित होगी। आज से ही देश में पुराने आपराधिक कानून को समाप्त करके नए आपराधिक कानूनों को लागू किया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देश पर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पहले देश की संसद में इसका मसौदा पेश किया। केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने इसकी एक एक बात सांसदों के समक्ष रखी। सदन ने जब इसे पास कर दिया, उसके बाद देश में यह कानून लागू होने जा रहा है। पुराने आपराधिक कानूनों को निरस्त करना और नए कानूनों को अपनाना देश की वर्तमान वास्तविकताओं को दर्शाता है।

सजा पर नहीं न्याय पर जोर
भारतीय लोकाचार और संस्कृति को प्रतिबिंबित करने के लिए इन कानूनों का नाम बदला गया। जैसे कि भारतीय न्याय संहिता 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 पुरातन ब्रिटिश औपनिवेशिक युग से प्रस्थान का प्रतीक है, जिसमें सजा पर नहीं न्याय पर जोर दिया जाता है। भारत सरकार ने जो तीन नए कानून बनाए हैं, इसका उद्देश्य राष्ट्र की अद्वितीय सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और सामाजिक पहचान की रक्षा करना तथा उसे पुष्ट करना है।

ग्रेजों द्वारा बनाए गए और अंग्रेजी संसद द्वारा पारित किए गए इंडियन पीनल कोड, 1860, क्रिमिनल प्रोसीजर कोड (1898), 1973 और इंडियन एवीडेंस एक्ट, 1872 कानूनों को सरकार ने समाप्त कर दिया है। इनको लेकर राज्यसभा में हुई चर्चा के बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि हम इन पर अगस्त, 2019 से ही विचार-विमर्श, चर्चा, सलाह कर रहे थे। सिर्फ कानूनों के नाम नहीं बदले हैं, बल्कि इनके उद्देश्य के अंदर आमूलचूल परिवर्तन किया गया है।

न्याय की एक संपूर्ण कल्पना
इन तीनों कानून का उद्देश्य दंड देने का नहीं है, बल्कि न्याय देने का है, इनमें न्याय का विचार है। भारतीय विचार में न्याय एक प्रकार से अंब्रेला टर्म है। 'न्याय' शब्द में गुनाह करने वाला और विक्टिम, जिसको गुनाह के कारण भुगतना पड़ा है, दोनों को समाहित करके न्याय की एक संपूर्ण कल्पना है। अमित शाह के अनुसार, कानून में कुल 313 बदलाव किए गए हैं, जो भारत के क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में एक आमूलचूल परिवर्तन लाएंगे और किसी को भी अधिकतम 3 वर्षों में न्याय मिल सकेगा।

सतौर से इस कानून में महिलाओं और बच्चों का विशेष ध्यान रखा गया है, अपराधियों को सजा मिले ये सुनिश्चित किया गया है और पुलिस अपने अधिकारों का दुरुपयोग ना कर सके, ऐसे प्रावधान भी किए गए हैं। एक तरफ राजद्रोह जैसे कानूनों को निरस्त किया गया है, दूसरी ओर धोखा देकर महिला का शोषण करने और मॉब लिंचिग जैसे जघन्य अपराधों के लिए दंड का प्रावधान और संगठित अपराधों और आतंकवाद पर नकेल कसने का काम भी किया है। शाह ने सदन में आश्वस्त किया कि 1860 से 2023 तक अंग्रेजी संसद द्वारा बनाए गए कानूनों के आधार पर इस देश का क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम चलता रहा।

राज्य स्तर पर प्रचारित किया जा सकता है
अब इन तीनों कानूनों की जगह भारतीय आत्मा के साथ ये तीन कानून स्थापित होंगे। 15 अक्टूबर, 2022 को प्रधानमंत्री, मोदी ने विधि मंत्रियों और विधि सचिवों के अखिल भारतीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए भारत जैसे विकासशील देश में एक स्वस्थ समाज के लिए एक त्वरित न्याय व्यवस्था की आवश्यकता पर जोर दिया। प्रधानमंत्री ने कहा था कि न्याय देने में देरी सबसे बड़ी चुनौती है। उन्होंने सुझाव दिया कि यह लंबे समय से गांवों में उपयोग में लाया गया है और अब इसे राज्य स्तर पर प्रचारित किया जा सकता है।

हमें यह समझना होगा कि इसे राज्यों में स्थानीय स्तर पर न्यायिक व्यवस्था का हिस्सा कैसे बनाया जाए। आपराधिक कानूनों में इन नए संशोधनों का उद्देश्य न्यायिक प्रणाली को अधिक प्रभावी, पारदर्शी, और आधुनिक बनाना है। नए आपराधिक कानूनों के तहत, यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि सभी नागरिकों को न्याय मिले और अपराधियों को उचित दंड मिले। इन सुधारों का उद्देश्य समाज में कानून और व्यवस्था को बनाए रखना और अपराधों को कम करना है।
कृष्णमोहन झा: (लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)

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