रवि शंकर : आम चुनाव के नतीजों के बाद केंद्र में भाजपा नीत राजग सरकार बन चुकी है, नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री के रूप में अपनी तीसरी पारी का आगाज कर चुके हैं, मंत्रिमंडल का गठन हो गया है, मंत्रियों को विभागों का बंटवारा भी हो चुका है, सभी कोर मंत्रालय भाजपा के पास ही है, सहयोगी दल भी संतुष्ट नजर आ रहे हैं, ऐसे में अब सवाल है कि नई सरकार अपने चुनावी वादों को कैसे पूरा करेगी, क्या इसमें सहयोगी दलों की ओर से कोई अड़चन आ सकता है? राजग में भाजपा के अहम सहयोगी टीडीपी व जदयू के पास वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में शासन करने का लंबा अनुभव है।

फिर भी विपक्ष की ओर से कयास लगाए जा रहे हैं कि मोदी सरकार अस्थिर रहेगी। लेकिन अभी तक ऐसा कुछ दिखा नहीं है। नीतीश और चंद्रबाबू नायडू देनों ही कुछ समय पहले तक केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए थे इसीलिए अब एनडीए में उनकी हैसियत बहुत अहम किरदार वाली हो गई है। मोदी 3.0 सरकार के सामने अब इन दो पुराने सहयोगियों के साथ हर अहम फैसले लेने से पहले तालमेल बिठाने की जरूरत पड़ेगी। पिछले कुछ दिनों में प्रधानमंत्री ने अपना रुख बदला है। उन्होंने साफ कर दिया है कि सरकार भाजपा की नहीं बल्कि एनडीए की है। शुरुआत से ही भाजपा के विपरीत, एनडीए को प्राथमिकता दी गई है।

नीतीश-चंद्रबाबू अहम
बह सरकार पूरी तरह से नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू की बैसाखी पर जरूर टिकी हुई है और नीतीश कुमार मौसम की तरह पाला बदलते रहते हैं, इसके बावजूद राजग की नई सरकार किसी दबाव में नहीं है, जैसा विपक्ष नैरेटिव गढ़ने की कोशिश कर रहा है। मंत्रिमंडल के गठन से लेकर विभागों के बंटवारे तक पीएम मोदी आत्मविश्वास से भरे दिखे और सहयोगी संतुष्ट। अगर जेडीयू गड़बड़ करती है तो बिहार में उसकी सरकार गिर जाएगी। हालांकि टीडीपी राज्य में सरकार चलाने के लिए भाजपा पर निर्भर नहीं है, लेकिन गठबंधन है तो मुद्दों पर टकराव भी होगा। मोदी ने मुस्लिम आरक्षण खत्म करने
की बात कही थी। 16 सांसदों वाली टीडीपी पहले से जारी मुस्लिम आरक्षण को खत्म करने के पक्ष में नहीं है। जाहिर है कि ये मुद्दा अब खटाई में पड़ जाएगा या कोई भी जिद पर अड़े तो टकराव होगा। वहीं विपक्ष की ताकत दस साल बाद अब बहुत बढ़ गई है। संसद से लेकर सड़क तक विपक्ष सरकार को कहां कहां घेरेगा, इसका अनुमान लगाया जा सकता है। विपक्ष उन मुद्दों पर आक्रामक रुख अपनाएगा, जो भाजपा के कोर एजेंडे में शामिल रहे हैं। ऐसे कई मुद्दे भाजपा के
सहयोगियों को भी नहीं भाते हैं।

सबसे अहम सवाल
दूसरी तरफ कयास ये भी लगाए जा रहे हैं कि गठबंधन सरकार चलाने के लिए जो अनुभव चाहिए, वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास नहीं है। देखना ये होगा कि मोदी गठबंधन सहयोगियों के साथ कितने सहज रहते हैं। अभी तक वे सहज हैं, कोई कठिनाई नहीं आई है। पूर्ण बहुमत की सरकार और गठबंधन सरकार के चरित्र में फर्क होता है। पिछले 10 वर्ष के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने कई बड़े फैसले लिए। हालांकि देश में गठबंधन सरकार के दौरान भी बड़े बड़े फैसले हुए हैं, इसलिए इस बार भी कोई दिक्कत नहीं है।

राजग सरकार के मुखिया होने के चलते पीएम मोदी सभी सहयोगियों को साथ लेकर चलेंगे, चुनावी वादे पूरा करने की कोशिश करेंगे, नए आर्थिक व प्रशासनिक सुधार को गति देंगे भारत को आत्मनिर्भर व समावेश राष्ट्र बनाने के प्रयास जारी रखेंगे। ऐसी उम्मीद सहज रूप से की जा सकती है। पीएम मोदी ने लोकसभा चुनाव के दौरान देश के लोगों से कई बड़े वादे भी किए हैं। उन्होंने हर साल दो करोड़ युवाओं को नौकरी देने और किसानों की आय दोगुनी करने जैसे बड़े वादे किए थे, जो पिछली सरकार में पूरे नहीं हो सके। अब वे इसे पूरा करने की कोशिश कर सकते हैं। राजग के लक्ष्य पूरे करेंगे।

तीन खास मोर्चे
मोदी को तीन अहम मोचों पर चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। उन्हें सहयोगियों को साथ लेकर चलना होगा। पहले से चल रही कुछ योजनाओं पर सहयोगी दलों की आपत्ति और उनकी समीक्षा है। सहयोगी दलों ने पहले से चल रही अग्निपथ योजना की समीक्षा की मांग की है। इसके अलावा, समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर भी मोदी को चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। इसके बाद उनके लिए 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' नीति को लागू करना मुश्किल हो सकता है। मोदी, राष्ट्रीय जाति जनगणना की नीतीश की मांग से कैसे निपटेंगे, ये देखना दिलचस्प होगा।

मजबूत विपक्ष भी चुनौती
मोदी के लिए दूसरी चुनौती लोकसभा में मजबूत विपक्ष से आएगी। सदन में 232 सदस्यों के साथ विपक्ष ने जोरदार वापसी की है। संसद के दोनों सदनों में विधेयक पारित कराना या हंगामा करने पर सदस्यों को अयोग्य ठहराना या निलंबित करना कठिन होगा। मोदी के सामने तीसरी और सबसे कठिन चुनौती पार्टी और आरएसएस के बीच तालमेल बिठाना होगा। पिछले कुछ दिनों में भाजपा के वरिष्ठ नेताओं और संघ के शीर्ष नेतृत्व के बीच बैठकें हुई हैं। इसके अलावा, आरएसएस नेतृत्व की आंतरिक बैठकें भी हुई हैं, जिसमें भाजपा की 60 से ज्यादा सीटों की गिरावट के कारणों पर चर्चा की गई है, लेकिन भाजपा और आरएसएस के वरिष्ठ नेता फिलहाल चुप हैं। कहा जा रहा है कि इसी साल होने वाले विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद ही वे कुछ निर्णय लेंगे। महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में इस साल के आखिर में विधानसभा चुनाव होने हैं और शायद अगले साल दिल्ली और बिहार में भी चुनाव होने हैं। इन सभी राज्यों में, इंडिया गठबंधन, एनडीए को तगड़ी चुनौती दे सकता है।

दो ही रास्ते
ऐसे में बीजेपी के सामने दो ही रास्ते हैं। पहला ये कि वो अपना कुनबा बढ़ा कर बहुमत तक पहुंचने की कोशिश करे। ऐसे में उसे पुराने सहयोगियों को मनाना होगा। महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की शिवसेना भाजपा की पुरानी सहयोगी रही है। पंजाब में शिरोमणि अकाली दल भी एनडीए में था। दोनों के पास 10 सांसद हैं। दूसरा रास्ता है-सहयोगी दलों के साथ तालमेल बिठाए रखना। पहला काम तो मुश्किल लगता है, लेकिन मोदी दूसरा काम बहुत ही कुशलता से जरूर कर सकते हैं, पर विपक्ष को पहले की तरह नजरअंदाज करना अब नई राजग सरकार के लिए आसान नहीं होगा। मोदी 3.0 सरकार के सामने चुनावी वादे पूरे करने की महती चुनौती होगी। भाजपा के संकल्प पत्र में कई वादे मोदी की गारंटी के रूप में हैं, सहयोगी दलों के भी चुनावी वादे हैं। नई राजग सरकार का दायित्व होगा कि वह राष्ट्र की खुशहाली के लिए काम करे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है. यह उनके अपने विचार हैं।)