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Opinion : नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने रविवार को शपथ ग्रहण समारोह के बाद अपना कामकाज संभाल लिया है। यह पहली बार नहीं है जब भाजपा गठबंधन सरकार का नेतृत्व करेगी। वास्तव में भाजपा की पहली सरकार, जो 1996 में गठित हुई थी।

आर. के. सिन्हा नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने रविवार को शपथ ग्रहण समारोह के बाद अपना कामकाज संभाल लिया है। यह पहली बार नहीं है जब भाजपा गठबंधन सरकार का नेतृत्व करेगी। वास्तव में भाजपा की पहली सरकार, जो 1996 में गठित हुई थी, अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एक बंधन को सफल प्रयोग वाली सरकार थी। भले ही का केवल 13 दिनों तक चली।

भारत में सबसे पहले 1977-1909 गठबंधन सरकार बनी थी
अटल जी 1998 में एनडीए सरकार के प्रधानमंत्री के रूप में पुन वापस आए थे। इसलिए यह कहना सरासर गलत होगा कि भाजपा को गठबंधन सरकारों का नेतृत्व करने का अनुभव नहीं है। भाजपा को 2014 में 283 और 2019 में 333 सीटें मिली थीं। लेकिन, पूर्ण बहुमत के बाद भी मोदी ने बंधन का धर्म निधाया। हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 240 सीटें जीतीं बहुमत से 32 कम। एनडीए में 16 पार्टियां शामिल है। उसमें भाजपा को 243 सीटों पर विजय मिली और शेष 53 सीटें हासिल की, उसकी सहयोगी दलों ने। अगर हम गुजरे दौर के पन्नों को खंगालेंगे तो पता चलेगा कि भारत में सबसे पहले 1977-1909 गठबंधन सरकार बनी थी। कांग्रेस के 1977 में चुनाव हारने के बाद जनता पार्टी की सरकार देश में बनी थी।

पार्टी को देश की जनता का भरपूर आशीर्वाद मिला था
1977 का चुनाव प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के द्वारा आपातकाल की स्थिति लागू करने के लगभग दो साल बाद हुए था। श्रीमती गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस पार्टी को जनता पार्टी नामक कई पार्टियों के एक गठबंधन हराया गया था, जिसमें भाजपा की पूर्ववर्ती, भारतीय जनसंघ शामिल थी। जनता पार्टी को देश की जनता का भरपूर आशीर्वाद मिला था। उस सरकार में अटल बिहारी वाजपेयी विदेश मंत्री थे और लाल कृष्ण आडवाणी सूचना और प्रसारण मंत्री थे। उस सरकार में बाबू जगजीवन राम, हेमवती नंदन बहुगुणा, जॉर्ज फर्नांडिस जैसे जन नेता भी शामिल थे। जनता पार्टी की उस चुनाव में जीत के बाद मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने। मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली जनता पार्टी सरकार दे नाल तक चली उसके बाद वैचारिक मतभेदों के कारण जनता पार्टी बिखर गई।

चरण सिंह का प्रधानमंत्री का कार्यकाल केवल 23 दिनों तक चला
मोरारजी देसाई सरकार में गृह मंत्री सिंह को कैबिनेट से इस्तीफा देने के लिए कहा गया था। संयोग देखिए कि चरण सिंह के पौत्र जयंत चौथी उस एनडीए सरकार का हिस्सा है जिसके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी है। चौधरी चरण सिंह 1979 में जनता पार्टी के बिखरे हुए समूहों के समर्थन और कांग्रेस पार्टी के बाहरी समर्थन से प्रधानमंत्री बने, लेकिन चरण सिंह का प्रधानमंत्री का कार्यकाल केवल 23 दिनों तक चला क्योंकि कांग्रेस पार्टी ने अपना समर्थन वापस ले लिया।  1980 में फिर चुनाव हुआ। इस बार इंदिरा गांधी सत्ता में वापस आ गई, जब कांग्रेस ने 353 सीटें जीती।

1989 और 1999 के बीच आठ गठबंधन बनाए गए
लोकसभा के चुनाव परिणाम भारत के लिए एक दौर को लेकर आया है। वह पहली बार था तब राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस द्वारा 529 सीटों में से 19 जीतने के बाद किसी भी पार्टी चुनाव पूर्व गठबंधन ने स्पह बहुमत हासिल नहीं किया था। इसके बाद वह 1980 में भाजपा के समर्थन से प्रधानमंत्री बने। उनकी सरकार 1992 में गिर गई जब भाजपा ने अपना समर्थन वापस से लिया 1989 से 2004 तक, चुनावों में एक भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला। इनमें से कुछ गठबंधन विशेष रूप से अराजक रहे 1989 और 1999 के बीच आठ गठबंधन बनाए गए और जीत गए। इस बीच, ये मानना है कि भारत के कुछ सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक सुधार भाजपा और कांग्रेस के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकारों के समय से आए। अटल बिहारी वाजपेयी ने 1998 से 2004 तक एक सफल बहु-पार्टी गठबंधन सरकार का नेतृत्व किया।

अटल के दौर में देश ने पोखरण का परमाणु फील किया
अटल जी के प्रधानमंत्री काल में भारत में विदेशी निवेश का एक्सप्रेस वे का निर्माण तेज हुआ, व्यापार बाधाओं को कम किया गया। उनके ही दौर में देश ने पोखरण का परमाणु फील किया। पाकिस्तान के साथ तनाव को कम किया, अमेरिका के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए। 1991 में 232 सीटों के साथ और 2004 और 2009 में केवल 145 और 206 सीटों के साथ एक सफल अल्पसंख्यक सरकार चलाने में सक्षम कोशिश की थे। मोदी, नीतीश कुमार और चंद्र बाबू नायडू जैसे तपे हुए नेताओं के सहयोग से देश को मेहनती और ईमानदार सरकार देने में सफल रहेंगे। उन्हें अपनी पार्टी के अनेक अनुभवी नेताओं का समर्थन और सहयोग ते मिलेग हो, पर अब इंडिया गठबंधन को रचनात् विपक्ष की भूमिका निभानी होगी। उन्हें डर बात पर सरकार को कोसना छोड़ना पड़ेगा। लोकतंत्र में वाद, विवाद, संवाद लगातार जारी रहना चाहिए। इसके बिना लोकतंत्र का कोई मतलब नहीं है। इसलिए सत्ता पक्ष और विपक्ष को मिल कर देश को विश्व की आर्थिक महा शासित बनवाने की दिशा में बढ़ना होगा।
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार है, ये उनके अपने विचार है।

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