डॉ रमेश ठाकुर : वैश्चिक समस्या है बाल श्रम? किसी भी मुल्क के माथे पर सामाजिक कलंक भी है, फिर चाहें वह देश विकसित हो या विकासशील? 2002 में इस बुराई के विरुद्ध प्रतिवर्ष 12 जून के दिन 'अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन' की पहल पर 'विश्व बालश्रम निषेध दिवस' मनाना आरंभ हुआ। इस दिवस का मकसद चाइल्ड लेबर के सभी रूपों को रोकने के लिए जनमानस को जागरूकता करना था।
बाल श्रम एशिया और प्रशांत क्षेत्र में दूसरे स्थान पर काबिज है
जागरूकता को ध्यान में रखकर ही 2024 की थीम 'अपनी प्रतिबद्धताओं पर कार्य करें' बाल श्रम समाप्त करें, निर्धारित की गई है। आंकड़ों की माने तो बाल श्रम एशिया और प्रशांत क्षेत्र में दूसरे स्थान पर काबिज है। यहां कुल 7 फीसदी बच्चे विभिन्न किस्म की मजदूरी में संलिप्त हैं। यही कारण है कि 62 मिलियन बच्चों की बड़ी आबादी आज भी शिक्षा से महरूम है। रोकथाम के लिहाज से प्रयासों किए जाते हैं कि बच्चों को बाल श्रम की धधकती भट्टियों से आजाद करवाया जाए, लेकिन परिवारों के मध्य संघर्ष, संकट और आर्थिक मजबूरियां उन्हें बाल श्रम करने को विवश करती हैं।
गुरुपाद स्वामी समिति ने बेहतरीन काम किया
बाल श्रम रोकने में सरकारी व सामाजिक दोनों के प्रयास नाकाफी न रहें, सभी को ईमानदारी से इस दायित्व में आहुति देनी चाहिए। कानूनों की कमी नहीं है, कई कानून सक्रिय हैं। बाल श्रम अधिनियम-1986 के तहत ढाबों, घरों, होटलों में बाल श्रम करवाना दंडनीय अपराध है। बावजूद इसके लोग बाल श्रम को बढ़ावा देते हैं। बच्चों को वह अपने प्रतिष्ठानों में इसलिए काम दे देते हैं क्योंकि उन्हें कम मजदूरी देनी पड़ती है। बाल मजदूरी रोकने के लिए 1979 में बनी गुरुपाद स्वामी समिति ने बेहतरीन काम किया था। उसके बाद अलग मंत्रालय, आयोग, संस्थान और समितियां बनीं, लेकिन बात फिर वहीं आकर रुक जाती है कि जब तक आमजन की सहभागिता नहीं होगी, सरकारी प्रयास नाकाफी साबित होंगे।
160 मिलियन बच्चे बाल श्रम की भट्टी में तप रहे हैं
अंतरराष्ट्रीय समुदाय विगत कई दशकों से बाल श्रम को समाप्त करने में ईमानदारी से प्रतिबद्धता व्यक्त कर रहा है। बावजूद इसके विश्व में आज भी करीब 160 मिलियन बच्चे बाल श्रम की भट्टी में तप रहे हैं। बाल श्रम से निपटने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर भी बेहताशा प्रयास हो रहे हैं, लेकिन फिर भी बाल श्रम की समस्या थमने के बजाय और बढ़ रही है। हिंदी फिल्म 'बूट पॉलिश' का एक गाना है कि 'नन्हें मुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी में क्या है, मुट्ठी में है तकदीर हमारी' के बोल न सिर्फ बाल श्रम की भट्टियों में धधकते बचपन के प्रति संवेदना जगाते हैं, बल्कि हुकूमतों के लिए बाल समस्याओं पर अंकुश न लगाने व उनसे जुड़े उत्पीड़न और अपराध के प्रति घोर निराशा भी व्यक्त करते हैं।
चुप्पी ही बाल श्रम जैसे कृत्य को बढ़ावा देती है
बाल मजदूरी वैश्विक समस्या का रूप ले चुकी है, इसलिए सिर्फ सरकार-सिस्टम पर सवाल उठाने से अब काम नहीं चलने वाला? समाधान के विकल्प सभी को मिलकर खोजने होंगे? सड़कों पर भीख मांगते बच्चे, ईट भट्टों पर काम करते नौनिहाल, विभिन्न अपराधों में लिप्त बच्चे व शिक्षा से महरूम बच्चों को देखकर मुंह मोड़ने के बजाय है, हुकूमतों को चेताना होगा। हमारी चुप्पी ही बाल श्रम जैसे कृत्य को बढ़ावा देती है। ऐसे बच्चों के बचपन की तुलना थोड़ी देर के लिए हम अपने बच्चों से करें, तो फर्क अपने आप महसूस कर सकेंगे। आंखों के सामने किसी बच्चे का बचपन खो जाना, हमारे लिए सबसे बड़ी शर्म वाली बात है। ये सच है कि समस्या किसी एक के बूते सुलझने वाली नहीं? इसके लिए सामाजिक चेतना, जनजागरण और जागरूकता की जरूरत है।
राज्यों में बाल तस्करों का बड़ा गैंग सक्रिय है
बाल मजदूरी और बाल अपराध को रोकने के लिए महिला बाल मंत्रालय, श्रम विभाग, समाज कल्याण विभाग व निपसीड सहित इस क्षेत्र में कार्यरत तमाम संस्थाएं कार्यरत हैं। गैर सरकारी संगठन और एनजीओ हमेशा रोकथाम की दिशा में हमेशा तत्पर रहते हैं। इसके लिए सबसे पहले सामाजिक स्तर पर बाल श्रमिकों के प्रति आम लोगों के जेहन में संवेदना जगानी होगी और बाल श्रम के खिलाफ मन में लड़ाई की प्रवृति पैदा करनी होगी। बाल मजदूरों के बढ़ने के कुछ कारण और भी हैं। पिछड़े राज्यों में बाल तस्करों का बड़ा गैंग सक्रिय है, जो मासूम बच्चों को किडनैप करके उन्हें कुछ समय बाद भीख मंगवाने या मजदूरी में लगा देते हैं।
तस्कर गिरोह हिंदुस्तान में रोजाना सैकड़ों बच्चे किडनेप करते हैं
नेशनल क्राइम ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि तस्कर गिरोह समूचे हिंदुस्तान में रोजाना सैकड़ों बच्चे किडनेप करते हैं जिन्हें बाद में भीख मंगवाने, मजूदरी, बाल अपराध और बाल श्रम की आग में झोंकते हैं। आज का दिन खास है, बाल श्रम रोकने के लिए। सभी को संकल्पित होना चाहिए इस लड़ाई में। कहीं कोई बच्चा मजदूरी करता दिखे, कारण जानना चाहिए। अगर लगे कि काम पर लगाया गया है, तो आरोपियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई भी करवानी चाहिए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है. ये उनके अपने विचार है)