डॉ. ब्रजेश कुमार तिवारी : नई सरकार को भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था और 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनाने के लिए कई आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाना होगा। मोदी सरकार के 10 साल के कार्यकाल में भारत वैश्विक स्तर पर 11वीं से पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है, नई सरकार की नजर भारत को दुनिया की शीर्ष तीन अर्थव्यवस्थाओं में ले जाने पर होगी। जल्द ही नवा बजट पेश होगा ऐसे में सरकार को कुछ क्षेत्र में ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है।
भारत में 94 प्रतिशत कर्मचारी असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं
मौजूदा समय में भारत की अर्थव्यवस्था की सबसे बड़ी चुनौती महंगाई और बेरोजगारी है। तीव्र आर्थिक विकास के बावजूद ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में बेरोजगारी एक गंभीर समस्या बनी हुई है। भारत में 94 प्रतिशत कर्मचारी असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं और देश का 35 फीसदी उत्पादन इसी में होता है। कई सालों से असंगठित क्षेत्र में लगातार गिरावट आ रही है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) का आगमन भारत में सेवा क्षेत्र के रोजगार के लिए एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि सेवा क्षेत्र भारत की जीडीपी में 50 फीसदी से अधिक का योगदान देता है। अगर बेरोजगारी रहेगी और आय नहीं बढ़ेगी तो चीजें कैसे खरीदी जाएंगी, इससे अर्थव्यवस्था में उपभोग और निवेश का स्तर प्रभावित हुआ है तथा सरकार के लिए कर राजस्व कम हो गया है, इसलिए सबसे पहले सरकार को बेरोजगारी की समस्या पर ध्यान देना होगा तभी जाकर समस्याएं कम होंगी। स्टार्टअप इंडिया योजना को और अधिक महत्व व बल देना होगा।
देश के 85 प्रतिशत स्टार्टअप फेल हो रहे हैं
आज देश के 85 प्रतिशत स्टार्टअप फेल हो रहे हैं। ऐसे में हमें उन्हें ज्यादा समर्थन देने की जरूरत है। अग्निवीर सेना भर्ती की पुनर्विचार की जरूरत के साथ ही सरकारी भर्तियों में तेजी लानी होगी। इसके अलावा, असंगठित क्षेत्र को हाशिए पर धकेलने वाली मौजूदा नीतियों में भी बड़े पैमाने पर बदलाव की जरूरत होगी। आज भारत में प्रति व्यक्ति आय 2,601 डॉलर है और 197 देशों में प्रति व्यक्ति इनकम के मामलों में भारत 142वें पायदान पर है। मुद्रास्फीति देश में एक और महत्वपूर्ण मुद्दा बना हुआ है। वास्तव में किसी समस्या का समाधान यह स्वीकार करने से शुरू होता है कि समस्या मौजूद है और बेरोजगारी व महंगाई केवल राजनीतिक विषय नहीं हैं। पिछले कुछ समय से रसोई का बजट अनियंत्रित और असंतुलित हुआ है। मुद्रास्फीति में वृद्धि को मुख्य रूप से भोजन और ईंधन की लागत में उल्लेखनीय वृद्धि के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। आम लोगों पर महंगाई की मार के दूरगामी असर होते हैं, याद रहे महंगा भोजन स्वास्थ्य के लिए खतरा होता है।
यूएनडीपी के मानव विकास सूचकांक में भारत 191 देशों में से 132वें स्थान पर है
आज हमें जीडीपी से ज्यादा ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स पर फोकस करना चाहिए जिसमे शिक्षा व स्वास्थ्य सबसे ऊपर है। यूएनडीपी के मानव विकास सूचकांक में भारत 191 देशों में से 132वें स्थान पर है, जो चिंताजनक है। आज देश के सामने बड़ी चुनौतियां में अच्छी शिक्षा, कौशल विकास और स्वास्थ्य सेवा हैं। स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता बहुत अच्छी नहीं है। दूसरी ओर, उच्च शिक्षा के केवल कुछ संस्थान ही उन्नत अनुसंधान में शामिल हैं। भारत में शुरू से शिक्षा पर तुलनात्मक रूप से सार्वजनिक व्यय कम रहा है। वहीं अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में भारत का अनुसंधान और विकास (आर एंड डी) व्यय-जीडीपी अनुपात में मात्र 0.7% है और 1.8% के विश्व औसत से भी बहुत कम है।
कुशल और शिक्षित श्रम बल देश को उच्च विकास दर ले जाता है
सरकार के विभिन्न प्रयासों के बावजूद आज भी अगर देश के 80 करोड़ लोग को निःशुल्क अनाज दिया जा रहा है तो निश्चित ही ये जनसंख्या अकुशल है। 'स्किल इंडिया' कई कारणों से अपेक्षित सफलता नहीं पा सका, जिसका मुख्य कारण प्रशिक्षण बुनियादी ढांचे की कमी और निजी क्षेत्र की सीमित भागीदारी है। आज भी प्रशिक्षित, प्रमाणित और अंततः प्लेसमेंट पाने वाले उम्मीदवारों की संख्या के बीच एक बड़ा बेमेल है। याद रहे एक कुशल और शिक्षित श्रम बल देश को उच्च विकास दर ले जाता है। कौशल व शिक्षा ऐसा क्षेत्र है जहां निवेश के कई प्रभाव होते हैं। जब कार्यबल अधिक कुशल बनेगा, तब आर्थिक विकास की गति को बल मिलेगा, सामाजिक बुराइयां कम होंगी और महिलाएं भी सुरक्षित होंगी। परिणामस्वरूप देश का तेजी से विकास होगा। भारत चालू खाता घाटे से लगातार जूझता रहा है, जिसका अर्थ है कि भारत का आयात इसके निर्यात से अधिक है। पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के बावजूद, भारत दुनिया के निर्यात में बमुश्किल 1.6 प्रतिशत योगदान देता है। 'मेक इन इंडिया' अभियान का एक प्राथमिक उद्देश्य 2022 तक भारतीय सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी को 25 प्रतिशत तक बढ़ाना था हालांकि पिछले 9 सालों में यह 14 से 16 प्रतिशत के बीच बना हुआ है। पीएम गति शक्ति, नेशनल सिंगल विंडो क्लीयरेंस, जीआईएस-मैण्ड लैंड बैंक, उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन योजना जैसी हालिया नीतियों के कार्यान्वयन से विनिर्माण क्षेत्र को लाभ होने का अनुमान है।
विकास का हिस्सा बहुतों तक अभी पहुंच नहीं रहा है
अर्थव्यवस्था के बढ़ते आकार के बीच भारत के लिए आर्थिक असमानता को पाटने की बड़ी चुनौती है। ऑक्सफैम की रिपोर्ट सर्वाइवल ऑफ द रिचेस्ट द इंडिया स्टोरी के अनुसार, भारत में सबसे अमीर 1 फीसद आबादी के पास देश की कुल संपत्ति का 40 प्रतिशत से अधिक हिस्सा है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में भले भारत की स्थिति पांचवीं हो गई हो, मगर विकास का हिस्सा बहुतों तक अभी पहुंच नहीं रहा है। पूंजीगत व्यय बढ़ने के बावजूद विश्व बैंक के अनुसार भारत का अवसंरचनात्मक अंतराल लगभग 15 ट्रिलियन डॉलर के होने का अनुमान है। खाद्य सुरक्षा प्राप्त करने, आय बढ़ाने और रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए कृषि की भूमिका सदैव महत्वपूर्ण बनी रहेगी। 2025 तक भारतीय एग्रीटेक बाजार की क्षमता 22 अरब डॉलर होने का अनुमान है, जिसमें से अब तक बमुश्किल 2% पर ही हम पहुंच पाए हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में विकास, कृषि आधारित औद्योगीकरण द्वारा संचालित होना चाहिए। सरकार के निवेश प्रोत्साहन पर निजी क्षेत्र की प्रतिक्रिया अपर्याप्त रही है, फिर भी इन्फ्रास्ट्रक्चर एवं सामाजिक कल्याण से जुड़ी योजनाओं पर सरकारी खर्च जारी रहना चाहिए वहीं नई सरकार को बॉण्ड बाजार, बीमा बाजार और पेंशन बाजार का विकास भी करना चाहिए।
बढ़ता कर्ज भी ऐसी चुनौती है जिसका भविष्य में समाधान निकालना ही होगा
नई सरकार को कुछ श्रेणी में जीएसटी को भी युक्तिसंगत बनाने की जरूरत है। दूसरी तरफ, सरकार अगर चाहे तो कर राजस्व बढ़ाने के लिए कॉरपोरेट कर, संपत्ति कर जैसे कर बढ़ा सकती है। भारतीय अर्थव्यवस्था पर बढ़ता कर्ज भी ऐसी चुनौती है जिसका भविष्य में समाधान निकालना ही होगा। साइबर अपराध के मामलों में तेजी से वृद्धि ने आम लोगों को बहुत आर्थिक चोट पहुंचाई है। निजी निवेश में सुधार अर्थव्यवस्था में तरक्की का सबसे अहम कारक होगा और अगली सरकार को इस पर खास जोर देना चाहिए। हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक ने केंद्र सरकार को 2.11 लाख करोड़ रुपये के लाभांश भुगतान करने का ऐलान किया है। सरकार को इस धन को शिक्षा व रोजगार निर्माण में लगाना चाहिए।
(लेखक जेएनयू में एसोसिएट प्रोफेसर है, वे उनके अपने विचार है।)