प्रभात कुमार रॉय : -7 का शिखर सम्मेलन 13 से 15 जून को इटली के शहर अपुलिया में आयोजित किया गया। अक्टूबर 2022 में सत्ता संभालने के बाद इटली की प्रधानमंत्री जियोर्जिया मेलोनी द्वारा पहली दफा किसी अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन की मेजबानी अंजाम दी गई। जी-7 शिखर सम्मेलन ऐसे विकट दौर में आयोजित हुआ, जबकि दुनिया के अनेक इलाकों में खासतौर पर रूस यूक्रेन और गाजा में युद्ध जारी है। साथ ही जी-7 के देश विकराल घरेलू चुनौतियों से जूझ रहे हैं। इस वर्ष अमेरिका, इंग्लैंड और फ्रांस में चुनाव होना है। प्रतिवर्ष आयोजित किए जाने वाले जी-7 के शिखर सम्मेलन में भारत को भी विगत अनेक वर्षों से आमंत्रित किया जाता रहा है। विगत वर्ष 2023 के हिरोशिमा में आयोजित जी-7 सम्मेलन में भी भारत के प्रधानमंत्री आमंत्रित सदस्य के तौर पर उपस्थित हुए थे। 

जी-7 शिखर सम्मेलनों में निमंत्रण प्राप्त होने का एक विशिष्ट कारण
वर्ष 2019 में फ्रांस में हुए जी-7 शिखर सम्मेलन में भी भारत को आमंत्रित किया गया था। हालांकि भारत जी-7 ग्रुप का स्थायी सदस्य नहीं है, किंतु भारत को जी-7 के शिखर सम्मेलनों में शिरकत करने का निरंतर निमंत्रण मिलता रहा है। विकासशील भारत को जी-7 शिखर सम्मेलनों में निमंत्रण प्राप्त होने का एक विशिष्ट कारण यह भी रहा है कि भारत की 2.66 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था का आकार अब जी-7 में शामिल तीन देशों क्रमशः इटली, फ्रांस, और कनाडा से भी कहीं अधिक बड़ा हो गया है। अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष के मुताबिक भारत दुनिया की सबसे तेज गति के साथ बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में से एक हो गई है। भारत की आर्थिक वृद्धि की रफ्तार पश्चिमी देशों से पृथक रही है, यूरोप में आर्थिक विकास की संभावना स्थिर सी हो गई है, लेकिन भारत में आर्थिक तरक्की की संभावनाएं काफी प्रबल रही हैं। 

भारत का लोकतांत्रिक होना भी पश्चिम को सूट करता है
हिंद प्रशांत क्षेत्र में सामरिक दृष्टि से भी भारत अहम है। भारत का लोकतांत्रिक होना भी पश्चिम को सूट करता है। निकट भविष्य में भारत को जी-7 का स्थायी सदस्य बनाया जा सकता है। जी शिखर सम्मेल स्थायी नरेन्द्र मोदी ने वसुधैव कुटुंबकम की भावना के तहत वन अर्थ वन हेल्थ अर्थात एक विश्व एक स्वास्थ्य सेवा के लिए आह्वान किया। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के प्रश्न पर भारत की सार्थक पहल से सम्मेलन को अवगत कराया। एक विराट अर्थव्यवस्था वाले देश चीन को जी 7 का सदस्य देश नहीं बनाया गया, क्योंकि जी-7 के देश चीन को वैश्विक सुरक्षा के लिए खतरा मानते आए हैं। जी 7 के देश हिंद प्रशांत इलाके में चीन को एक विस्तारवादी देश करार देते हैं। जहां कि भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया तथा अन्य देशों के क्षेत्रों पर चीन आधिपत्य स्थापित करना चाहता है। यूरोपीय यूनियन जी-7 का सदस्य नहीं है, किंतु इसके शीर्ष अधिकारियों को भी सम्मेलन में आमंत्रित किया जाता रहा है। जी-7 में इटली द्वारा अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और हिंद प्रशांत क्षेत्र के 12 विकासशील देशों के नेताओं को भी आमंत्रित किया। 

खास मुद्दे विचाराधीन
इस जी-7 सम्मेलन में जो खास मुद्दे विचाराधीन रहे, इनमें सबसे प्रमुख यूक्रेन और गाजा में जारी युद्धों के ज्वलंत प्रश्न। विश्व स्तर पर बढ़ती महंगाई, अंतरराष्ट्रीय व्यापार से संबंधित समस्याओं को लेकर भी विशेष बातचीत की गई। जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी परिणामों से निपटने के लिए कार्बन उत्सर्जन को कम करने व सस्टेनेबल एनर्जी को बढ़ावा देने की रणनीति पर पुनर्विचार किया गया। वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य को बेहतर बनाना भी इस सम्मेलन का एक मुख्य मुद्दा रहा। कोविड-19 के बाद यह बात स्पष्ट हुई है कि वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए आपातकालीन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वास्थ्य व्यवस्था को
और बेहतर बनाना होगा। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जटिल प्रश्न हिरोशिमा में 2023 के जी-7 सम्मेलन में रणनीति बनाने पर विचार-विमर्श किया गया था, किंतु अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अभी तक कोई ठोस रणनीति आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के सकारात्मक इस्तेमाल पर नहीं बन पाई है। क्या 2024 का शिखर सम्मेलन का विमर्श एआई के सकारात्मक इस्तेमाल के लिए कोई ठोस रणनीति लागू कर सकेगा?

अफ्रीका संग इटली की ट्रेड कूटनीति
इटली की प्रधानमंत्री जियोर्जिया मेलोनी का कहना है कि शिखर सम्मेलन में विकसित और विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाओं के मध्य ताल्लुकात सम्मेलन के केंद्र में बने रहे। विकासशील देशों में इटली की प्रधानमंत्री आफ्रीकी देशों को अधिक महत्व प्रदान करती हैं। मैटई योजना के तहत इटली द्वारा 5.5 अरब यूरो का कर्ज अफ्रीकन देशों को प्रदान किया गया है। मैटई योजना से इटली ऊर्जा क्षेत्र में एक अहम देश के रूप में स्थापित हो सकेगा। अफ्रीका और यूरोप के मध्य प्राकृतिक गैस और हाइड्रोजन गैस की पाइप लाइन इटली निर्मित करना चाहता है। इटली की सरकार की इस योजना का मकसद अफ्रीका से निरंतर जारी रहने वाले प्रवासन को रोक देना भी है।

क्या है जी-7
जी-7 अर्थात ग्रुप ऑफ सेवन दुनिया के विकसित अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों का एक ग्रुप है। जी-7 देशों का वैश्विक ट्रेड और अंतरराष्ट्रीय प्वइनेंशियल सिस्टम पर प्रभाव कायम रहा है। वर्ष 1970 के दशक के दौरान वैश्विक तेल संकट से निपटने के लिए 1975 में पहली दफा विश्व के विकसित अर्थव्यवस्था वाले देश पश्चिमी जर्मनी, फ्रांस, अमेरिका, जापान, इंग्लैंड और इटली द्वारा एक सम्मेलन पेरिस के निकट रैंबोलेट शहर में हुआ। यह फैसला लिया गया कि प्रतिवर्ष इन देशों का एक सम्मेलन आयोजित किया जाएगा। 1975 के प्रथम सम्मेलन में जी- 6 (ग्रुप सिक्स) के नाम से जाना गया। वर्ष 1976 में कनाडा को इस ग्रुप में शामिल किया गया। इसके बाद इस ग्रुप को जी-7 के नाम से जाना गया। 1998 में रूस को इस ग्रुप में शामिल किया गया तो फिर इस ग्रुप को जी-8 के नाम से जाना गया। 2014 में क्रीमिया पर रूस द्वारा आधिपत्य स्थापित करने के पश्चात रूस को इस ग्रुप से निलंबित कर दिया गया था। अतः फिर से इस ग्रुप को जी- 7 कहा जाने लगा।

सबसे विशिष्ट बात
इस बार के जी-7 शिखर सम्मेलन की सबसे विशिष्ट बात रही कि इन देशों ने इस वर्ष के अंत तक यूक्रेन को 50 अरब डॉलर का कर्ज प्रदान करने का फैसला किया है। यह राशि रूस की 325 अरब डॉलर की यूरोप में जब्त की गई संपत्ति के द्वारा ब्याज के रूप में प्राप्त हुई है। उल्लेखनीय है जब्त की गई रूसी संपत्तियां प्रतिवर्ष तीन अरब डॉलर का ब्याज प्रदान कर रही है। इस धनराशि का इस्तेमाल यूक्रेन द्वारा रूस के विरुद्ध युद्ध में किया जाएगा। जी-7 देशों का यह फैसला इंटरनेशनल जस्टिस के हिसाब से कितना न्यायसंगत है, इस पर सोचने की जरूरत है। रूस की संपत्ति जब्ती से लेकर यूक्रेन को युद्ध में मदद करने तक पश्चिम का फैसला संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के हिसाब से पक्षपातपूर्ण है। जी-7 सम्मेलन के दौरान अमेरिका और यूक्रेन के मध्य 10 वर्षीय रक्षा समझौता भी संपन्न किया गया। इस रक्षा समझौते की शर्तों के मुताबिक अमेरिका यूक्रेन को सैन्य सामग्री और सैनिक प्रशिक्षण देगा, किंतु यूक्रेन की प्रतिरक्षा के लिए सैनिक भेजने को अमेरिका प्रतिबद्ध नहीं होगा।

असल में अमेरिका इस रक्षा समझौते के तहत रूस-यूक्रेन युद्ध से अलग रह कर, युद्ध को निरंतर जारी रखने की रणनीति पर काम कर रहा है। यूएस राष्ट्रपति बाइडेन के गाजा में इजराइल और हमास के मध्य तत्काल युद्ध विराम अंजाम देने के प्रस्ताव को जी- 7 सम्मेलन में एकमत से स्वीकार कर लिया गया। इस प्रस्ताव के तहत दोनों पक्षों के सभी बंधकों को रिहा करने और गाजा को अधिक आर्थिक सहायता देने का प्रस्ताव पेश किया है। अब देखना यह है कि बाइडेन द्वारा पेश बुद्ध विराम प्रस्ताव पर इजराइल सरकार राजी होगी या नहीं। यदि इजराइल सरकार बाइडेन द्वारा पेश किए गए बुद्ध विराम के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करती है तो फिर अमेरिका इजराइल के विरुद्ध क्या कदम उताए‌गी?
(लेखक विदेश मामलों के जानकार है. यह उनके अपने विचार हैं।)