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Opinion : अखिरकार नरेंद्र मोदी ने पंडित जवाहर लाल नेहरू के रिकॉर्ड को बराबरी कर ली। देश के पहले प्रधानमंत्री नेहरू ने 1952, 1957 और 1962 में लगातार तीन बार देश की सत्ता संभाली थी। 2014 में पहली बार प्रधानमंत्री बने नरेंद्र मोदी ने नौ जून की शाम राष्ट्रपति भवन में तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ले कर पंडित नेहरू का लगातार तीन बार प्रधानमंत्री बनने का रिकॉर्ड बराबर कर लिया।

राज कुमार सिंह : अखिरकार नरेंद्र मोदी ने पंडित जवाहर लाल नेहरू के रिकॉर्ड को बराबरी कर ली। देश के पहले प्रधानमंत्री नेहरू ने 1952, 1957 और 1962 में लगातार तीन बार देश की सत्ता संभाली थी। 2014 में पहली बार प्रधानमंत्री बने नरेंद्र मोदी ने नौ जून की शाम राष्ट्रपति भवन में तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ले कर पंडित नेहरू का लगातार तीन बार प्रधानमंत्री बनने का रिकॉर्ड बराबर कर लिया।

सीटें पीछे छूट जाने के चलते गठबंधन सरकार मजबूरी बन गई
2014 और 2019 में अकेले दम बहुमत मिल जाने के बावजूद भाजपा ने सहयोगी दलों के साथ एनडीए सरकार बनाई थी, पर इस बार बहुमत के आंकड़े से 32 सीटें पीछे छूट जाने के चलते गठबंधन सरकार मजबूरी बन गई। मजबूरी ज्यादा बड़ी सिर्फ इसलिए नहीं है कि इस बार भाजपा के पास अपना बहुमत नहीं है, बल्कि गठबंधन में चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार जैसे सहयोगी भी हैं, जो गठबंधन राजनीति के माहिर के सौदेबाज माने जाते हैं। इस लिहाज से नौ जून की शाम प्रधानमंत्री मोदी के साथ शपथ लेने वाली मंत्रिपरिषद पर नजर डालें तो कहा जा सकता है कि वह अपनी पहली परीक्षा में सफल रहे हैं। शपथ ग्रहण में एनडीए के सभी घटक दलों के नेता मौजूद थे और मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व को लेकर किसी तरह की कोई नाराजगी सामने नहीं आयी।

अजित पवार सौदेबाजी कर पाने की स्थिति में नहीं
हां , एनसीपी के अजित पवार गुट के मोदी मंत्रिमंडल में शामिल न होने से अवश्य महाराष्ट्र की भावी राजनीति को ले कर कुछ कयास लगाये जा सकते हैं। मात्र एक लोकसभा सीट जीत पाए उप मुख्यमंत्री अजित पवार की एनसीपी के प्रफुल्ल पटेल को स्वतंत्र प्रभार के साथ राज्य मंत्री पद का ऑफर दिया गया था, जिसे अतीत में कैबिनेट मंत्री रह चुके प्रफुल्ल ने अपना डिमोशन बताते हुए अस्वीकार कर दिया। एक लोकसभा सीट के बल पर अजित पवार सौदेबाजी कर पाने की स्थिति में नहीं। सो, मोदी सरकार में उनकी एनसीपी को कोई हिस्सेदारी नहीं, पर इस सबका इसी साल अक्टूबर में विधानसभा चुनाव वाले महाराष्ट्र की राजनीति पर क्या असर पड़ेगा, यह देखना दिलचस्प होगा, क्योंकि उनके गुट के एक दर्जन से भी ज्यादा विधायकों के शरद पवार से संपर्क में होने की खबरें हैं। शिवसेना तोड़ कर मुख्यमंत्री बनने वाले एकनाथ शिंदे कहीं ज्यादा कमजोर अकि जा रहे थे, लेकिन कम से कम लोकसभा चुनावों में उनका प्रदर्शन अजित पवार की एनसीपी से अच् अच्छा रहा, जिसका पुरस्कार भी उन्हें मोदी मंत्रिमंडल में एक कैबिनेट और एक राज्य मंत्री के रूप में मिला है।

शिवराज सिंह चौहान के रूप में कुछ नए चेहरे भी शामिल हुए हैं
महाराष्ट्र से कुल छह मंत्री बनाये गए हैं, जिनमें भाजपा की रक्षा खडसे भी शामिल हैं, जिनके ससुर एकनाथ खड़से फिलहाल शरद पवार की एनसीपी के एमएलसी हैं, पर जल्द अपनी पुरानी पार्टी भाजपा में वापसी करने वाले हैं। हरियाणा में भी इसी साल अक्टूबर में विधानसभा चुनाव हैं, जहां से एक कैबिनेट मंत्री समेत कुल तीन मंत्री बनाये गए हैं। दिल्ली में विधानसभा चुनाव अगले साल फरवरी में हैं। वहां से एक राज्य मंत्री बनाया गया है। तीसरी बार सांसद बने भोजपुरी गायक मनोज तिवारी चूक गये, लेकिन पहली बार सांसद बने हर्ष मल्होत्रा की लॉटरी खुल गयी। मोदी सरकार में इस बार प्रधानमंत्री के अलावा 30 कैबिनेट मंत्री, पांच स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री और 36 राज्य मंत्रियों समेत कुल 171 मंत्री शामिल हैं। राजनाथ सिंह, अमित शाह, नितिन गडकरी, निर्मला सीतारमण और पीयूष गोयल जैसे पुराने चेहरे तय माने जा रहे थे, लेकिन भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल और सभी 29 लोकसभा सीटें जीतने वाले ने मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के रूप में कुछ नए चेहरे भी शामिल हुए हैं।

नड्डा का कार्यकाल इसी महीने जून में समाप्त हो रहा है
इस बार मोदी मंत्रिमंडल में पूर्व मुख्यमंत्रियों की संख्या पांच है। जीतन राम मांझी, सर्बानंद सोनोवाल और एचडी कुमारस्वामी भी क्रमशः बिहार, असम और कर्नाटक के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। जेपी नड्डा को मंत्री बनाये जाने के चलते भाजपा को नया राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनना होगा। वैसे भी लोकसभा चुनाव के चलते बढ़ाया गया नड्डा का कार्यकाल इसी महीने जून में समाप्त हो रहा है। नड्डा के मंत्री बनने के चलते ही शायद अनुराग सिंह ठाकुर का पत्ता इस बार कट गया है। मात्र चार लोकसभा सीटों वाले हिमाचल प्रदेश से एक से ज्यादा कैबिनेट मंत्री बनाये जाते तो अन्य बड़े राज्यों में असंतुलन पैदा हो जाता। पिछली सरकार के सक्रिय मंत्रियों में शुमार अनुराग ठाकुर बड़बोले माने जाते हैं, पर आधुनिक राजनीति में वह तो नेता के पक्ष में जाता है। यह देखना होगा कि भविष्य में अनुराग ठाकुर को क्या जिम्मेदारी दी जाती है। एक और बड़बोली मंत्री स्मृति ईरानी भी इस बार मोदी सरकार में नहीं हैं। पिछली बार राहुल गांधी को अमेठी से हरा कर चर्चा में आयीं स्मृति ईरानी इस बार कांग्रेस के एक अल्पज्ञात कार्यकर्ता किशोरी लाल शर्मा से हार गयीं। वैसे ऐन चुनाव से पहले कांग्रेस छोड़ कर आये लुधियाना के सांसद रवनीत सिंह बिट्टू इस बार चुनाव हार जाने के बावजूद मोदी सरकार में राज्य मंत्री बनाए गए हैं। शायद भाजपा रवनीत सिंह बिद्ध को पंजाब की राजनीति में अपने सिख चेहरे के रूप में आगे बढ़ाना चाहती है। बिद्ध आतंकवाद से संघर्ष में शहीद हुए पंजाब के कांग्रेस के मुख्यमंत्री सिंह के पौत्र हैं।

उत्तर प्रदेश के नौ मंत्रियों में से अकेले राजनाथ सिंह कैबिनेट मंत्री
इसी रणनीति के तहत केरल में भाजपा का खाता खोलने वाले अभिनेता से राजनेता बने सुरेश गोपी को भी मंत्री बनाया गया है। वैसे आंकड़ों की बात करें तो चुनाव हार जाने समेत कई कारणों से पिछले मोदी मंत्रिमंडल मंत्रिमंडल के कुल 37 चेहरों को इस बार बाहर का रास्ता दिखाया गया है, जबकि 33 नये चेहरों की एंट्री हुई है। नये चेहरों में सहयोगी दलों के चिराग पासवान और जयंत चौधरी भी शामिल हैं। पिछली सरकार में चाचा पशुपति पारस को सत्ता सुख देने वाली भाजपा ने इस बार भतीजे चिराग की लोक जनशक्ति पार्टी से गठबंधन किया था। लोक जनशक्ति बिहार में गठबंधन में मिली सभी पांच लोकसभा सीटें जीत गयी तो चिराग कैबिनेट मंत्री बना दिये गये, जबकि उत्तर प्रदेश में गठबंधन में मिली दोनों लोकसभा सीट जीतने पर जयंत के हिस्से स्वतंत्र प्रभार के साथ राज्य मंत्री का पद ही आया। राज्यवार देखें तो बिहार के कुल आठ मंत्रियों में से चार कैबिनेट मंत्री बनाए गए हैं, जबकि उत्तर प्रदेश के नौ मंत्रियों में से अकेले राजनाथ सिंह कैबिनेट मंत्री हैं। वैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद भी उत्तर प्रदेश के वाराणसी से से ही सांसद हैं। प्रधानमंत्री मोदी के गृह राज्य गुजरात से भी ही कुल छह मंत्री बनाए गए हैं। इस बार मोदी मंत्रिमंडल के कुल 72 सदस्यों में से लगभग दस प्रतिशत महिलाएं हैं, जबकि ओबीसी, एससी और एसटी समुदाय से 42 मंत्री बनाए गए हैं।
 ( लेखक वरिष्ठ पत्रकार है, ये उनके अपने विचार है।

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