गीता यादव : आज हवा में हर तरफ जहर ही जहर है। पर्यावरण प्रदूषण 21वीं शताब्दी की सबसे बड़ी समस्या है। दिनोंदिन बढ़ती जनसंख्या औद्योगीकरण, शहरीकरण और अनियोजित विकास इस समस्या में इजाफा कर रहे हैं। विभिन्न प्रकार के प्रदूषण के कारण भूमि, आकाश, जल, वायु सब दूषित हो रहे हैं। लेकिन किसी को चिंता नहीं कि आने वाली पीढ़ी और वर्तमान जनसंख्या इसके लिए कितनी भारी कीमत अदा कर रहे हैं। प्रदूषित हवा और उसके प्रभाव को जानने के लिए, वैज्ञानिक नित नए शोध में जुटे हुए हैं। हाल में हुए एक शोध में इस बात का खुलासा हुआ है कि प्रदूषित हवा का अपराध से भी गहरा ताल्लुक है। वायु प्रदूषण बढ़ने से लोगों की चिंताएं बढ़ जाती हैं। तनाव और हार्मोन कार्टिसोल में वृद्धि का असर उनके मस्तिष्क को प्रभावित करने लगता है। उनमें बेचैनी और कसमसाहट होती है और वे अनैतिक व आपराधिक व्यवहार करने लगते हैं।
नैतिकता को भी दूषित कर सकता है
शोधकर्ताओं के अनुसार, वायु प्रदूषण न केवल स्वास्थ्य को प्रभावित करता है, बल्कि यह अनैतिक व्यवहार के लिए भी जिम्मेदार है। 'एक्सपेरिमेंटल स्टडीज' के अनुसार, वायु प्रदूषण शारीरिक रूप से या मानसिक रूप से हमारे अनैतिक व्यवहार से जुड़ा हुआ है। न्यूयॉर्क के कोलंबिया बिजनेस स्कूल में हुए शोध में शोधकर्ताओं ने पाया कि जिन स्थानों पर प्रदूषित हवा का स्तर ज्यादा है, वहां अपराध की दर भी अधिक है। शोध के लेखक, डॉ. जैक्सन जी लू कहते हैं, वायु प्रदूषण न केवल सेहत खराब करता है, बल्कि नैतिकता को भी दूषित कर सकता है।
वहीं लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स द्वारा किए एक अध्ययन में इस बात का खुलासा हुआ है कि वायु प्रदूषण के उच्च स्तर के कारण लंदन में अपराध दर में वृद्धि हुई है। बड़े अपराध नहीं, बल्कि दुकानों में चोरी और जेबकतरी जैसे छोटे अपराध के पीछे पर कारण वायु प्रदूषण हो सकते हैं। शोधकर्ताओं ने प्रदूषण के आंकड़ों का उपयोग करके अपराध पर वायु प्रदूषण के प्रभाव की गणना की और इसकी तुलना 2004-2005 के दौरान लंदन में दर्ज 1.8 मिलियन आपराधिक अपराधों से की। फिर उन्होंने उच्च स्तर के प्रदूषण के संपर्क में आने वाले लोगों में तनाव, हार्मोन कार्टिसोल में वृद्धि देखने के बाद वायु प्रदूषण और अपराध के बीच एक संबंध स्थापित किया।
मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं
शोध इस बात की पुष्टि करता है कि किशोरों का आक्रामक व्यवहार और अपराध के बीच भी गहरा संबंध है। प्रदूषित हवा में सांस लेने से किशोरों में बेचैनी बढ़ती है, जो उन्हें आपराधिक कृत्य के लिए उकसाती है। अब तक के साक्ष्य बताते हैं कि वायु प्रदूषण में बुरे व्यवहार को बढ़ाने की क्षमता अधिक है। बचपन में वायु प्रदूषण का सामना करने वाले बच्चों में किशोरावस्था में अवसाद, व्यग्रता और अन्य मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। उस समय उत्पन्न हुई यह समस्याएं उनके समूचे जीवन को प्रभावित कर सकती हैं और उनके विकास की राह में बाधक बन सकती हैं। वैज्ञानिक मानते हैं कि वायु प्रदूषण के उच्चतम स्तर की वजह से aly छोटे और विषैले कण विकसित हो रहे मस्तिष्क में प्रवेश कर जाते हैं, जिससे मस्तिष्क में सूजन होती है। इससे भावना और फैसले लेने के लिए जिम्मेदार मस्तिष्क के हिस्से को नुकसान पहुंचता है। यह अध्ययन 'जर्नल ऑफ एब्नार्मल चाइल्ड साइकोलॉजी में प्रकाशित हुआ है। यह रिसर्च स्वच्छ हवा के महत्व को बताने वाली एक चेतावनी है, जो यह दिखाती है कि शहरी क्षेत्रों में हरियाली की कितनी जरूरत है।
सीखने और समझने में दिक्कत आती है
इस अध्ययन का नेतृत्व करने वाली शोधकर्ता डायना योनान के अनुसार, प्रदूषण के लिए जिम्मेदार छोटे कणों को पार्टिकुलेट मैटर भी कहा जाता है। यह कण एक बाल के किनारे से भी 30 गुना छोटा होता है। यह कण स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक होते हैं। अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ सदनं कैलिफोर्निया की रिसर्च एसोसिएट बोनान ने कहा, यह छोटे विषैले कण हमारे शरीर के भीतर प्रवेश करके हमारे फेफड़ों और दिल को प्रभावित करते हैं। उनके अनुसार पीएम 2.5 खासकर विकसित हो रहे मस्तिष्क के लिए नुकसानदायक होते हैं। क्योंकि यह मस्तिष्क की संरचना और तंत्रिका तंत्र को क्षति पहुंचाने के साथ ही किशोरों के व्यवहार को भी प्रभावित करते हैं। समय-समय पर हुए बहुत सारे अध्ययन यह बताते रहे हैं कि वायु प्रदूषण मस्तिष्क की गतिविधियों को प्रभावित करने में सक्षम है।
अपराध को बढ़ावा देने के अलावा, यह मानसिक स्वास्थ्य में भी गंभीर गिरावट ला सकता है। मार्च 2019 के एक अध्ययन से यह भी पता चला है कि जहरीली, प्रदूषित हवा के संपर्क में आने वाले किशोरों में मनोवैज्ञानिक घटनाओं का जोखिम अधिक होता है। जैसे कि आवाजें सुनना या घबराहट। लेड के बारे में कहा जाता है कि यह व्यवहार बदल डालता है। इससे सीखने और समझने में दिक्कत आती है। यह बच्चों के इंटेलिजेंट क्योशेंट को कम कर देता है। इसलिए हवा को स्वच्छ रखना जरूरी है।
(लेखिका वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार है. ये उनके अपने विचार है।)