Opinion: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस चार केंद्रीय बजट में कृषि और इससे जुड़े सेक्टरों के लिए बजट में 1.52 लाख करोड़ रुपए प्रावधान किया है। ये पिछले बजट के 1.25 लाख करोड़ रुपए से 21.6 फीसदी यानी 25 हजार करोड़ रुपए ज्यादा है। कुल मिलाकर इस साल कृषि बजट कुल बजट का 3.15 फीसदी है। बहरहाल, बजट में कृषि के उत्पादन में उत्पादकता और लचीलापन लाने पर पूरा फोकस किया गया है।
किसानों को सीधा फायदा
इसके अलावा भी खेती-किसानी के लिए कई लोक-लुभावन घोषणाएं भी की गई हैं। जो हर बार की तरह इस बार भी बजट में देखने को मिला लेकिन कृषि क्षेत्र के लिए वित्त मंत्री ने वैसा कोई ठोस ऐलान नहीं किया, जिससे किसानों को सीधा फायदा उनकी जेब में आता दिखे। वित्त मंत्री जी ने अपने बजटीय भाषण में जरूर अगले दोवर्षों में एककरोड़ किसानों को प्राकृतिक खेती में मदद करने की बात कही गई है। दलहन और तिलहन के लिए मिशन शुरू करने से लेकर, सरकार उनके उत्पादन और मार्केटिंग को मजबूत करने की बात कही है। इसके अलावा फसलों के उत्पादन, भंडारण और मार्केटिंग को मजबूत बनाया पर भी जोर दिया गया है। लेकिन किसानों के एक वर्ग के लगातार मांग के बाद भी न्यूनतम समर्थन (एमएसपी) को लेकर चजट में कोई घोषणा नहीं हुई।
जबकि किसान संगठन लंबे समय से एमएसपी को कानूनी दर्जा देने की मांग कर रहेगें। चंद राज्यों को छोड़ दें तो एमएसपीपर खरीद का ठोस तंत्र तक नहीं है। साथ ही किसान सम्माजन निधि की राशि में भी वित्त मंत्री ने कोई बढ़ोतरी नहीं की है। यानी पहले की तरह अब भी प्रधानमंत्री किसान सम्मा न निधि के तहत किसानों को साल में 6,000 रुपए ही मिलेंगे। जबकि खेती को बढ़ती लागत को देखते हुएकिसान और किसान नेता पीएम किसान निधि में बढ़ोतरी की उम्मीद कर रहे थे।
बहरहाल, सरकार के तमाम घोषणाएं, और वादों के बाद भी किसान नाराज है। किसानों का कहना है कि सरकार ने बजट में खाद्यान्न तेल और दालों के मामले में आत्मनिर्भर बनने के लिए अभियान चलाने की बात कही लेकिन जब तक एमाएसपी गारंटी कानून नहीं बनेगा तब तक खाद्यान्न तेलों, दलों के मामलों में आत्मनिर्भरता और फसलों का विविधिकरण सम्भव नहीं है।
खेती में 108 नई वैरायटी के बीजों को लाने की बात
खेती करने वाले किसानों का कहना है कि सरकार ने खेती में 108 नई वैरायटी के बीजों को लाने की बात कही है लेकिन सरकार को पहले इस बात का जवाब देना चाहिए कि हमारे देशी बीजों को संरक्षित करने के लिए वह वया कर रही है? नीतियां किसानों को आत्मनिर्भरता से बाजार पर निर्भरता की तरफ लेकर जाने का प्रयास कर रही है भी कहा कि पिछले पांच सालों । किसानों ने ये में वित्त मंत्रालय ने जितना बजट कृषि मंत्रालय को भी कृषि मंत्रालय ने एक लाख लौटा दिया जिससे में साबित होता सरकार खेती-किसानी के मुद्दों पर दिया उसमें से करोड़ वापस है कि वर्तमान गंभीर नहीं है।
गौर करने वाली बात ये है कि कृषि प्रधान देश भारत में आजादी के 77 साल की समस्याएं दूर नहीं की जा अपने आप को आर्थिक रूप से मान रहा है। समाज के हर वर्ग की बाद भी किसानों सकी हैं। किसान सबसे कमजोर आय साल-दर साल बढ़ रही है लेकिन किसान कर्ज के जंजाल से चाहर नहीं निकल पा रहा है। किसानों की आय को दोगुना करने का लक्ष्य अभी कई चुनौतियों के बीच संघर्ष कर रहा है। भारत के ज्यादतर किसान अब अपने बच्चों को खेती की जिम्मेदारी नहीं सौपना चाहते हैं। भारतीय कृषि व्यवस्था में अपनी पूरी जिंदगी खपाने वाले किसान आज खेती को घाटे का सौदा बताते हैं। आखिर क्या कारण है कि तमाम प्रयासों के बावजूद कृषि क्षेत्र की समस्याओं का समाधान सरकार नहीं कर पाई है। इस पर गंभीर चिंतन की जरूरत है।
समाधान की ईमानदार कोशिशे
आज भारत विश्व की टॉप पांच सबसे मजबूत अर्थव्यवस्थाओं में गिना जाता है। लेकिन आजादी के बाद योजनावद्ध तरीके से कृषि में निवेश के बाद भी भारतीय किसान दूसरे देशों के मुकाबले काफी पिछड़ा हुआ है। देश की प्रति हेक्टेयर उत्पादकता वैश्विक औसत से कम है। दूसरी तरफ देशभर में किसानों के असंतोष का सबसे बड़ा कारण उनकी उपज का सही मूल्य न मिलना रहा है और यही उनकी सबसे बड़ी समस्या है। किसानों की समस्याएं कोई नई नहीं हैं, लेकिन उनके समाधान की ईमानदार कोशिशे होती कभी नजर नहीं आई। देखा ये गया है कि समय बीतने के साथ किसानों की हालत में कोई बहुत बड़ा क्रांतिकारी सुधार नहीं हुआ है। किसानों को संतुष्ट करने के लिए देश के नीति- निर्धारक समय-समय पर जो उपाय करते हैं, वे तात्कालिक राहत पहुंचाने वाले होते हैं।
इन उपायों के तहत किसानों को लुभाने वाले कदम उठाए जाते हैं, जबकि जरूरत ऐसे संरचनात्मक उपायों की है जो दीर्घकालिक हों और किसानों की समस्या को स्थायी तौर पर हल कर सकें। जैसे- यूनिवर्सल बेसिक इनकम जैसी योजना चलाना। इससे हर महीने एक निश्चित आय हो सकेगी और किसान उपज को औने-पौने दामों पर बेचने की विवश नहीं होंगे। लेकिन वास्तविकता ये है कि बिजली-पानी, खाद, बुनियादी ढांचे, विपणन और जोखिमों का सामना करने की क्षमता आदि जैसी किसानों की सामान्य समस्याओं को हो दूर करने में हम सफल नहीं हो पा रहे हैं। कृषि को अभी तक की सरकारें सिर्फ देश को आवामका पेट भरने तक का ही संसाधन मानती आयी है। कृषि के माध्यम से देश की जोडीपीबढ़ाने पर कभी गहन मंथन नहीं हुआ है। अलग-अलग हिस्सों में किसानों कीसमस्याएं अलग हो सकती है, लेकिन कुछ समस्याएं हैं जो सब किसानों के साथ है।
छोटे किसानों के लिए कुछ अहम घोषणाएं
पिछले कई सालों से खेती करने की लागत जिस तेजी से बढ़ती जा रही है। उस अनुपात में किसानों को मिलने वाले फसलों के दाम बहुत ही कम बढ़े हैं। किसानों को उम्मीद थी कि इस चार बजट में सरकार खेती- किसानीके साथ-साथ छोटे किसानों के लिए कुछ अहम घोषणाएं करेगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कहने को बजट में कृषि सेक्टर के लिए योजनाओं का अंबार है। लेकिन खोटे किसानों के समस्याओं का में समाधान होता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है। ऐसे सवाल फिर यही खड़ा होता है कि खेतो किसानी की तस्वीर कैसे बदलेगी? बेशक अपनी रखते , कृषि राज्यों का विषय है और हर राज्य सुविधा और परिस्थितियों को मद्देनजर हुए ही अपनी कृषि नीतियों का निर्धारण करता है मिलकर का सच आय हो।
इस मामले में केंद्र और राज्यों को काम करने की जरूरत है, लेकिन आज यही है कि किसानों को खेती-बाड़ों से जो रही है, वे उससे कहीं ज्यादा के हक़दार हैं। लेकिन अल्पकालिक उपायों से उनकी आय में बढ़ोतरी कर पाना संभव नहीं है। इसके लिए लंबे समय तक प्रतिबद्धता के उपाय करने होंगे, तभी किसानों की आर्थिक स्थिति में कुछ सुधार आ सकता है। फिर भी देश की अर्थव्यवस्था में रफ्तार लाने के लिए बजट में कृषि क्षेत्र और ग्रामीण विकास के लिए अधिक धन की व्यवस्था करनी चाहिए थी। हर साल बढ़ने वाली मंहगाई दर इससे अधिक बढ़ जाती है। किसान सम्मान योजना मद में अधिक बजट देने की जरूरत थी।
रवि शंकर: (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)