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Opinion: पिंगली वेंकैया द्वारा तैयार किया गया झंडा लोगों के बीच लोकप्रिय हो गया। 1931 में अखिल भारतीय कांग्रेस के ध्वज को मूर्त रूप देने के लिए 7 सदस्यों की एक कमेटी बनाई गई। इसी साल कराची कांग्रेस कमेटी की बैठक में पिंगली वेंकैया द्वारा तैयार ध्वज, जिसमें केसरिया, श्वेत और हरे रंग के साथ केंद्र में अशोक चक्र स्थित था, को सहमति मिल गई।

Opinion: अंग्रेजों की गुलामी से आजाद होने के। लिए असंख्य लोगों ने अपना बलिदान दिया, उनमें से अनेक लोगों को आज हम विस्मृत कर चुके हैं। देश की आन, बान और शान तिरंगा किस तरह वजूद में आया, ये भी आज शायद गिने-चुने लोगों को याद होगा। तिरंगे झंडे का जब भी जिक्र आएगा तो पिंगली वेंकैया का नाम स्मरण किए बिना शायद वो अधूरा रहे।

सरकारी कर्मचारी के रूप में काम किया
पिंगली वेंकैया का जन्म 2 अगस्त, 1876 को वर्तमान आंध्र प्रदेश के मछलीपट्टनम के निकट भाटलापेन्नुमारु नामक स्थान पर हुआ था। इनके पिता का नाम हनुमंतारायुड्डु और माता का नाम वेंकटरत्नम्मा था। मछलीपत्तनम से हाई स्कूल उत्तीर्ण करने के बाद वे कोलंबो चले गये। भारत लौटने पर उन्होंने एक रेलवे गार्ड के रूप में और फिर बेल्लारी में एक सरकारी कर्मचारी के रूप में काम किया और बाद में वह एंग्लो वैदिक महाविद्यालय में उर्दू और जापानी भाषा का अध्ययन करने लाहौर चले गए।

वेंकैया ने ब्रिटिश भारतीय सेना में भी सेवा की थी। 1899 से 1902 के बीच उन्होंने अफ्रीका के बायर युद्ध में भाग लिया, वहीं पर उनकी मुलाक़ात महात्मा गांधी जी से हुई और वे उनके विचारों से बहुत अधिक प्रभावित हुए। स्वदेश लौटने पर मुंबई में गार्ड की नौकरी में लग गए। इसी बीच मद्रास में प्लेग के चलते कई लोगों की मौत हो गई इससे उनका मन बहुत अधिक व्यथित हुआ और उन्होनें वह नौकरी छोड़ दो। बात 1904 की है जब जापान ने रूस को हरा दिया। इस समाचार को सुनकर वो इतना प्रभावित हो गए कि उन्होंने जापानी भाषा सीख ली। पिंगली वेंकैया की संस्कृत, उर्दू व हिंदी आदि भाषाओं पर अच्छी पकड़ थी। इसके साथ ही वे भू-विज्ञान एवम कृषि के अच्छे जानकर भी थे।

पिंगली के कार्यों की सराहना
1906 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन कलकत्ता में हुआ, जिसकी अध्यक्षता दादा भाई नौराजी ने की। इस सम्मेलन में दादाजी ने पिंगली के कार्यों की सराहना की। बाद में उन्हें राष्ट्रीय कांग्रेस का सदस्य मनोनीत कर दिया गया। कांग्रेस के इस अधिवेशन में यूनियन जैक फहराया गया जिसे देखकर पिंगली वेंकैया का मन द्रवित हो उठा। उसी दिन से वे भारतीय राष्ट्रीय ध्वज की संरचना में लग गए। 1916 में उन्होनें ए नेशनल फ्लैग ऑफ इंडिया नामक पुस्तक प्रकाशित की जिसमें उन्होंने राष्ट्रीय ध्वज के 30 नमूने प्रकाशित किए थे। पांच साल बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की बैठक 1921 में विजयवाड़ा में हुई तो उसमें गांधी जी ने सभी को पिंगली के द्वारा तैयार राष्ट्रीय ध्वज के चित्रों की जानकारी दी। इसी बैठक में गांधी जी ने पिंगली के द्वारा बनाए गए राष्ट्रीय ध्वज को मान्यता दी।

इस संदर्भ में महात्मा गांधी के 'यंग इंडिया' में अपने संपादकीय में 'अवर नेशनल फ्लैग' शीर्षक से लिखा कि राष्ट्रीय ध्वज के लिए हमें बलिदान देने को तैयार रहना चाहिए। मछलीपट्टनम के आंध्र कॉलेज के पिंगली ने देश के झंडे के संदर्भ में एक पुस्तक भी प्रकाशित की जिसमें उन्होंने राष्ट्रीय ध्वज से संबंधित अनेक चिन्न प्रकाशित किए। इसके बाद वह वापस मछलीपट्टनम लौट आये और 1916 से 1921 तक विभिन्न झंडों के अध्ययन में अपने आप को समर्पित कर दिया और अंत में वर्तमान भारतीय ध्वज विकसित किया। वेंकैया ने राष्ट्रीय ध्वज के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से सलाह ली और गांधी जी ने उन्हें इस ध्वज के बीच में अशोक चक्र रखने की सलाह दी जो संपूर्ण भारत को एक सूत्र में बांधने का संकेत बने। पिंगली वेंकैया लाल और हरे रंग की पृष्ठभूमि पर अशोक चक्र बना कर लाए पर गांधी जी को यह ध्वज ऐसा नहीं लगा कि जो संपूर्ण संपूर्ण भारत का प्रतिनिधित्व कर सकता है।

झंडा लोगों के बीच लोकप्रिय
गांधी जी नेयंग इंडिया' में अपने संपादकीय में आगे। लिखा 'जब में विजयवाड़ा के दौरे पर था, उस दौरान पिंगली ने मुझे हरे और लाल रंगों से बने बिना चरखे वाले कई चित्र बनाकर दिए थे। मैंने उन्हें एक झंडे के बीच में सफेद रंग की पट्टी डालने की सलाह दी जिसका उद्देश्य था कि सफ़ेद रंग सत्य व अहिंसा का होता है। उन्होंने इसे तुरंत मान लिया'। इसी के बाद पिंगली द्वारा तैयार किया गया झंडा लोगों के बीच लोकप्रिय हो गया। 1931 में अखिल भारतीय कांग्रेस के ध्वज को मूर्त रूप देने के लिए 7 सदस्यों की एक कमेटी बनाई गई। इसी साल कराची कांग्रेस कमेटी की बैठक में पिंगली वेंकैया द्वारा तैयार ध्वज, जिसमें केसरिया, श्वेत और हरे रंग के साथ केंद्र में अशोक चक्र स्थित था, को सहमति मिल गई। इसी ध्वज के तले आजादी के परवानों ने कई आंदोलन किए और 1947 में अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया। भारतीय डाक विभाग ने 12 अगस्त 2009 को पूरे 46 बरस बीतने के बाद पिंगली पर 5 रू का डाक टिकट जारी किया।
हर्षवर्धन पाण्डे: (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. वे उनके अपने विचार है।)

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