Opinion: रेल का सुहावना सफर, चौतरफा विकास करने का सिलसिला

Opinion: निर्मला सीतारमण ने बजट 2024 में रेलवे के लिए कई अहम घोषणाएं की। रेलवे के लिए 2.62 लाख करोड़ रुपए आवंटित किए है। बजट में रेलवे को दिल खोलकर धन आवंटन करना इस बात का संकेत है कि सरकार रेलवे का सफर और सुहावना करना चाहती है। रेलवे का चौतरफा विकास करने का सिलसिला तो लगातार चल ही रहा है। सरकार का लक्ष्य है कि ट्रेनों की संख्या बढ़ाई जाए रेलवे ट्रैक का विद्युतीकरण है, नई ट्रेनों के संचालन पर फोकस किया जाए।
आधुनिक बनाने के लिए रिकॉर्ड निवेश
दरअसल, इस 21वीं सदी में भारत के तेज विकास के लिए रेलवे का विकास और भारतीय रेलवे में तेजी से सुधार बहुत जरूरी है। इसलिए ही केंद्र सरकार भारतीय रेलवे को आधुनिक बनाने के लिए रिकॉर्ड निवेश कर रही है। अब वंदे भारत, तेजस हमसफर जैसी अधुनिक ट्रेनें देश में चन रही है। सुरक्षित व आधुनिक कोवों की संख्या में भी रिकॉर्ड वृद्धि हो रही है। रेलवे स्टेशनों को भी एयरपोटों की तरह ही सुन्दर ढंग से विकसित किया जा रहा है। बजट के बाद अब रेल पटरियों का भी तेजी से विस्तार होगा। इस लिहाज से दो स्तरों पर काम होना चाहिए। पहला, नई-नई जगहों में रेल लाइने बिवाई जाए जहां पर रेलवे ने अब तक दस्तक ही नहीं दी है।
दूसरा, विस्तार यह सोचकर किया जाये कि अब देश के रेल नेटवर्क को आपको दो की बजाय तीन-चार या पांच पटरियों पर दौड़ाना होगा। तब ही देश का रेल यातायात सुगम होगा। देश के सभी मुख्य रेल मागों पर कम से कम चार-पांच रेल ट्रैक तो बनने ही चाहिए। तभी रेल यात्रियों और मॉल परिवहन की भारी बोझ को सहने में सक्षम होगा। इस प्रकार, दो-दो सवारी गाड़ियों और मालगाड़ियों के आवागमन के लिए ट्रैक व पांचवा इमरजेंसी ट्रैक सेना, पुलिस बल, राहत कार्य के लिए विशेष ट्रेनों आदि के लिए। रेलवे अपनी तमाम महत्वाकांक्षी योजनाओं को तब ही लागू करने में सफल होगा जब वह अपने यहां काम संस्कृति में सुधार करेंग। रेलवे में अब भी निठल्ले और कामचोर कर्मियों की एक फौज है।
नई सुविधा नई लाइन इन पर फोकस
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार चाहती है कि जल्द से जल्द काम हों और नई परियोजनाओं पर समय से अमल किया जाए। पर यह तब ही मुमकिन होगा जाच रेलवे में सब मिलकर काम करेंगे। रेलवे बोर्ड के पूर्व मेबर और लेखक डॉ रविन्द्र कुमार कहते है कि रेल बजट को खत्म कर जनरल बजट के साथ मिला देने से लाभ क्या हुआ? पता नहीं। पर नुकसान क्या हुए? वह है फोकस खत्म हो गया, पहले रेल बजट नीचे से इनपुट लेकर ऊपर जाता था अत एक प्रतिवद्धता सभी में देखने को मिलती थी। तब राष्ट्रीय फोकस होता था। देश रेल बजट की प्रतीक्षा करता था। उसमें सभी के लिये कुछ न कुछ होता था। अत रेल कर्मियों और अधिकारियों का भी फोकस रहता था। अब ऐसा नहीं है। बजट कब आया, कब गया किसी को नहीं पता। कुछ लेना देना नहीं।
रेलवे बजट जब जाता था तो उसके प्रोजेक्ट पर, नई ट्रेनों पर, नई सुविधा नई लाइन इन पर फोकस होता था। लोता नजर रखते थे इस से रेलवे पर भी एक दबाव रहता था। पहले कुछ काम ठेके पर दिये जाते थे अब कुछ ही काम है जो रेलवे कर रही है बाकी सब ठेकेदार, एजेंसी पीपीपी या फिर रेलवे की पी. एस. यू. के माध्यम से ठेकेदार ही कर रहे है। जिस से शेषण को एक नई दिशा मिली है। 8-10 हजार में आप जिस नौजवान, नवयुवती को ले रहे हैं उसकी प्रतिबद्धता उसका प्रशिक्षण, उसकी रुचि, उसका मन लग कर काम करना सभी तो घेरे में है। आखिर कुछ तो फर्क रखें रेल संचालन और डिलिवरी बाँय में। रेलवे के साथ कई चुनौतियां भी है। इस बजट में हुए आवंटन के जरिये रेलवे में अपेक्षित सुधार होगा।
विवेक शुक्ला: (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)
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