Opinion: राजस्थान में जन प्रतिनिधियों के फोन टैपिंग का जिन्न एक बार फिर बोतल से बाहर आ गया है। इसी के साथ गहलोत शासन के दौरान का फोन टैपिंग का मुद्दा फिर गरमा गया है। 2020 में कांग्रेस के भीतर गुटबाजी का यह किस्सा 4 साल बाद एक बार फिर सुर्खियों में है। फोन टैपिंग का रहस्योद्घाटन और कोई नहीं अपितु खुद गहलोत के शासन के समय के अधिकारी कर रहे हैं।
सियासत में फिर तहलका
राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उनके ओएसडी रह चुके लोकेश शर्मा की बातचीत के वायरल हुए एक पुराने ऑडिया ने सियासत में फिर तहलका मचा दिया है। इस ऑडियो से पिछली सरकार में सुर्खियों में आए फोन टैपिंग के मुद्दे को फिर हवा मिल गई है। कथित ऑडियो उस समय का बताया जा रहा है कि जब गहलोत मुख्यमंत्री थे। अब यह ऑडियो वायरल हुआ है। इसको लेकर अब भाजपा नेता कांग्रेस पर जमकर हमलावर हो गए हैं। केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने गहलोत के पुराने ऑडियो के वायरल होने पर गहलोत पर जमकर निशाना साधा।
उन्होंने कहा कि यह बात में चीख-चीखकर सरकार और न्यायालय को सुनाना चाहता था, लेकिन अब जो ऑडियो सामने आया है, उसने सारी बात स्पष्ट कर दी है। गहलोत और लोकेश शर्मा के बीच की बातचीत का यह ऑडियो वायरल होने के बाद सियासत में जमकर हलचल मची हुई है। शेखावत ने इस ऑडियो को लेकर गहलोत को जमकर आड़े हाथ लिया। उन्होंने कहा कि हाल में जो ऑडियो सोशल मीडिया में वायरल हो रहे हैं। उसमें पूर्व मुख्यमंत्री गहलोत और उनके ओएसडी लोकेश शर्मा की बातचीत से जनता के सामने स्पष्ट हो गया है कि कांग्रेस के शासनकाल में फोन टैपिंग हुई हैं।
संज्ञान में गोपनीय तरीके से लाया गया
केंद्रीय मंत्री शेखावत ने कहा कि फोन टैपिंग अपराध है। उसके साथ-साथ जिस शपथ को लेकर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन हुए थे, उस शपथ का अनादर करते हुए उन्होंने जो कुछ भी उनके संज्ञान में गोपनीय तरीके से लाया गया था। मुख्यमंत्री और गृहमंत्री होने के नाते उसको खुद एक ऑडियो टैप के माध्यम से एक पेन ड्राइव देकर लीक करने का काम किया। यह प्रकरण दिल्ली के एक न्यायलय में भी विचाराधीन है। गौरतलब है गहलोत शासन के दौरान असंतुष्ट नेता सचिन पायलट व 18 अन्य कांग्रेस विधायकों द्वारा मुख्यमंत्री गहलोत के नेतृत्व के खिलाफ बगावती तेवर अपनाए जाने के बाद कांग्रेस ने अपने विधायकों को लंबे समय तक अलग-अलग होटलों में रखा था।
इसी घटनाक्रम में विधायकों सहित अन्य जनप्रतिनिधियों के फोन टैप किए जाने के आरोप लगे थे। हालांकि अधिकारियों व तत्कालीन मुख्यमंत्री गहलोत ने खुद इसका खंडन किया। फोन टैपिंग का यह मामला सुर्खियों में आने के बाद दबी चिंगारी फिर सुलग उठी है। गहलोत के लिए यह गले की हड्डी बन गया है और भाजपा इसे बख्श दिए जाने के मूड में नहीं है। आगे राजनीति गर्माने वाली है। उस दौरान सचिन पायलट खेमे के 19 विधायकों ने गहलोत सरकार के खिलाफ बगावत की थी और ये विधायक मानेसर के एक होटल में अलग से बाड़ेबंदी में चले गए थे। उसके बाद 15 जुलाई 2020 को गहलोत गुट की तरफ से कुछ ऑडियो टेप जारी किए गए थे।
हलोत खेमे की तरफ से दावा
इन ऑडियो टेप में गहलोत खेमे की तरफ से दावा किया गया था कि केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह, कांग्रेस विधायक भंवरलाल शर्मा और तत्कालीन मंत्री विश्वेंद्र सिंह की बातचीत है। उस बातचीत में सरकार गिराने और पैसों के लेनदेन की बातें थीं। गहलोत ने कई बार कहा कि सरकार गिराने के षड्यंत्र करने में हुए करोड़ों के लनेदेन के सबूत हैं और ये आरोप झूठे हों तो राजनीति छोड़ दूंगा। जिन नेताओं के ऑडियो टेप आए थे, उनके वॉयस टेस्ट नहीं हुए थे।
उल्लेखनीय है जब कोई दो लोग मोबाइल, टेलीफ़ोन या इंटरनेट के माध्यम से आपस में बात करे रहे होते हैं, और ऐसे में कोई तीसरा शख्स उन दोनों के बीच होने वाली बातों को रिकार्ड कर बिना उनकी अनुमति के सुनता है, तो इसे फोन टैपिंग कहा जाता है। यह निजता का हनन है, जिसके कारण इसे गैरकानूनी माना जाता है। भारत में फोन टैपिंग को लेकर कानून बनाये गए हैं, जिसके अनुसार सिर्फ कुछ खास मामलों में जरूरत पड़ने पर केंद्र या राज्य सरकार किसी का फोन सर्विलांस पर रखवा सकती है।
बाल मुकुन्द ओझा: (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके अपने विचार है।)