Opinion: राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 का उद्देश्य भारत में समग्र, लोचशील तथा बहुविषयक शिक्षा केंद्रित व्यवस्था हेतु अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देकर शैक्षिक परिदृश्य का रूपान्तरण है। आजीवन पठन-पाठन एवं सीखने की संस्कृति को बढ़ावा देने हेतु पुस्तकें अत्यन्त महत्वपूर्ण होती हैं। एनईपी पुस्तकों, डिजिटल संसाधनों सहित पर्याप्त जरूरी संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चत कर शिक्षण संस्थानों के तथा अन्य पब्लिक पुस्तकालयों को मजबूती प्रदान कर ज्ञान-विज्ञान को बढ़ावा देगी।
डिजिटल संसाधनों तक विद्यार्थियों की पहुंच
पुस्तकों के महत्व को समझते हुए एनईपी, भारत में ज्ञानाधारित आत्मनिर्भर समाज के निर्माण में योगदान देने को न केवल तत्पर है, अपितु प्रौद्योगिकी आधारित ई- पुस्तकों, ई-पत्रिकाओं और अन्य डिजिटल संसाधनों तक विद्यार्थियों की पहुंच बढ़ाने को प्रयासरत है। ऐसे में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा पुस्तक क्रय निर्देश पर उठे विवाद को समझने की जरूरत है। एनईपी संविधान में निहित समतापूर्ण, समावेशी और बहुलतावादी समाज की स्थापना के साथ-साथ आदर्श नागरिक निर्माण को संकल्पित है। एनईपी भारतीय भाषाओं में मनोरंजक और प्रेरणादायक पुस्तकों के लेखन को प्रेरित करते हुए, शैक्षणिक संस्थानों तथा सार्वजनिक पुस्तकालयों में पुस्तकों की उपलब्धता एवं पहुँच बढ़ाकर, पठन-पाठन की संस्कृति विकसित करने हेतु पुस्तकालयों और पुस्तकों के महत्व पर जोर देती है।
पुस्तकालय शैक्षणिक संस्थानों की आत्मा
एनईपी दिव्यांग और हासिए पर खड़े लोगों के लिए पुस्तकों की पहुंच सुनिश्चित करेगी। प्रयास होगा कि सभी के लिए पुस्तकें सुलभ और सस्ती हों। एनईपी द्वारा राष्ट्रीय पुस्तक संवर्धन नीति तैयार कर विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों और भाषाओं में शिक्षण सामग्री की पहुँच और उपलब्धता बढ़ाने हेतु व्यापक पहल की जाएगी। पुस्तकालय शैक्षणिक संस्थानों की आत्मा हैं और सरकार पुस्तकों, पत्रिकाओं और अन्य शिक्षण सामग्री की खरीद को मजबूत करेगी तथा बढ़ावा देगी। डिजिटल पुस्तकालयों तथा पुस्तकालय द्वारा पुस्तकों की ऑनलाइन पहुँच को बढ़ाने हेतु भी कदम उठाए जाएंगे। सरकार शिक्षण संस्थानों तथा सार्वजनिक पुस्तकालयों में पुस्तकों को व्यापक रूप से उपलब्ध कराने पर जोर देगी। सरकार आधुनिक आईसीटी प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके दिव्यांगों तथा अन्य अलग-अलग तरह से अक्षम व्यक्तियों सहित सभी के लिए पुस्तकों की उपलब्धता और पहुंच सुनिश्चित करेगी।
व्यापक पठन- पाठन तथा सामुदायिक विकास को प्रेरित करने हेतु देश भर में पुस्तकालय, सचल पुस्तकालय तथा सामाजिक पुस्तक क्लब गठित किए जाएंगे। गांवों में गैर-स्कूल घंटों के दौरान, आईसीटी युक्त पुस्तकालय बनाए जाएंगे। भारतवर्ष में स्नातक स्तर पर एनईपी का सफलतापूर्वक कार्यान्वयन करने वाले राज्यों में मध्य प्रदेश सर्वप्रथम है। विद्यार्थियों के समग्र व्यक्तित्व विकास हेतु स्नातक स्तर के पाठ्यक्रम नये सिरे से तैयार किए गये हैं, परन्तु उनके अध्ययन-अध्यापन हेतु उच्च शिक्षण संस्थानों में पुस्तके ही नहीं हैं। साथ ही महाविद्यालयीन ग्रन्थालयों में कौशल शिक्षा, योग्यता संवर्द्धन के पाठ्यक्रमों सहित भारतीय ज्ञान परंपरा आधारित पुस्तकों की भारी कमी है। परन्तु विद्यार्थियों के भविष्य की चिन्ता करते हुए पुस्तकों के क्रय संबंधी उच्च शिक्षा विभाग के एक आदेश से बखेड़ा हो गया। विरोध है कि सरकारी क्रयादेश सूची में अमूमन एक तिहाई पुस्तके खास विचारधारा के लेखकों की हैं।
पाठकों की पंहुच निरन्तर सुलभ
शिक्षा में भगवाकरण के रटे-रटाये आरोप लगाए जा रहे हैं। विवाद का मुद्दा पुस्तक की विषयवस्तु, पाठ्यसामग्री, अकादमिक गुणवत्ता, विद्यार्थियों के व्यक्तित्व निर्माण हेतु उपयोगिता एवं जरूरत नहीं, अपितु पुस्तक का लेखक कौन है, लेखक की विचारधारा क्या है, किस संगठन से संबिंधत है, इत्यादि पूर्वाग्रहग्रस्त एवं अतार्किक प्रश्न उठाकर सियासत की जा रही है। पुस्तकालय विज्ञान के जनक तथा प्रख्यात विद्वान डॉ रंगनाथन का सिद्धान्त वाक्य था कि हर पाठक को उसके पसंद की पुस्तक उपलब्ध होनी चाहिए, साथ ही प्रत्येक पुस्तक को पाठक उपलब्ध होना चाहिए, इस हिसाब से यह विवाद सर्वथा बेमानी है। क्या यह सही नहीं है कि प्रायः देश के सभी प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में विभिन्न विचारधाराओं, मत-पन्थों, क्षेत्रों, कालखण्डों से संबंधित लेखकों के ग्रन्थ नहीं हैं। साम्यवाद, समाजवाद, पूंजीवाद, उदारवाद, अधिनायकवाद जैसे तमाम विचारधाराओं के संस्थापकों, पोषकों तथा समर्थकों की अनगिनत पुस्तकें पुस्तकालयों में निरंतर जगह बनाए हुए हैं, जिस तक सभी पाठकों की पंहुच निरन्तर सुलभ है।
यदि पुस्तकालयों में कार्ल मार्क्स, एंजिल्स, लेनिन, हिटलर, मुसोलोनी जैसे अनेक लेखकों की पुस्तकें हो सकती हैं, तमाम वैश्विक तथा भारतीय राजनेताओं के ग्रंथ हो सकते हैं, साहित्य, सामाजिक विज्ञान संबंधी भिन्न-भिन्न प्रतिवाद के पोषकों के ग्रन्थों की उपलब्धता तथा खरीदी पर प्रश्न नहीं खड़े हुए तो, आज भारतवर्ष के सांस्कृतिक महापुरुष स्वामी विवेकानन्द की पुस्तक से परहेज क्यों? जस्टिस नजीर की पुस्तक से एतराज क्यों? विचारक वेद प्रताप वैदिक से दुराव क्यों? प्रसिद्ध शिक्षाविद् दीनानाथ बत्रा के महत्वपूर्ण अवदानों से इतनी नफरत क्यों? वैदिक गणित की समृद्ध विरासत को न अपनाने की हठधर्मिता क्यों? विद्यार्थियों में चरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व विकास तथा मूल्याधारित शिक्षा की उत्कृष्ट पुस्तकों को नकारने की कोशिश क्यों? भारतीय ज्ञान परंपरा तथा संस्कृति आधारित पुस्तकों के क्रय पर इस कदर विवाद क्यों? पर्यावरण के प्रति संवेदनशील पुस्तकों को सिरे से नकार देने की जिद क्यों? पुस्तकों की छात्रोपयोगी एवं गुणवत्तापूर्ण पाठ्य सामग्री को अनदेखा करने का दुराग्रह क्यों? ऐसे में भारतीय ज्ञान परंपरा के अमूल्य ग्रंथों वेद, पुराण, स्मृतियों, तमिल, तेलगू, संस्कृत, पाली तथा प्राकृत जैसी संमृद्ध भारतीय भाषा के साहित्यों को भी नकारने का दुराग्रह हो सकता है।
गुणवत्तापूर्ण पुस्तकों के क्रय हेतु शासनदेश जारी
ऐसे महत्वपूर्ण प्रश्नों के तार्किक जवाब विवाद करने वालों के दिमाग में नहीं है। पुस्तकों का विरोध विषयवस्तु, पाठ्यसामग्री, अकादमिकता, विद्यार्थियों के लिए उपयोगिता की बुनियाद पर होता तो बात समझ में भी आती। वस्तुतः विवाद पूर्वाग्रहग्रस्त तथा सियासी है, विवाद पुस्तकों की गुणवत्ता तथा प्रासंगिकता का नहीं अपितु नकारने की हठधर्मिता लेखकों के कारण है, विरोध हेतु बहुत से कुतर्क दिए जा रहे हैं। ऐसी गुणवत्तापूर्ण पुस्तकों के क्रय हेतु शासनदेश जारी करने के पीछे शायद अफसरशाही द्वारा सियासतदानों के चापलूसी की मनोवृत्ति अवश्य हो, परन्तु सच्चाई यह भी है कि ऐसी अमूल्य पुस्तकें शिक्षण संस्थानों के ग्रंथालयों में उनके स्वतः विवेक से होनी चाहिए थी। विद्यार्थियों के समग्र व्यक्तित्व विकास हेतु गुणवत्तापूर्ण पठन सामग्री अनिवार्य है। एनईपी छात्रों को उपयोगी तथा प्रेरणादायक पुस्तकें, जिसमें गुणवत्तापूर्ण अनुवाद भी शामिल हैं, उपलब्ध कराने को प्रतिबद्ध है। पठन-पाठन की संस्कृति निर्माण हेतु पुस्तकालयों को मजबूत करना होगा।
डॉ. सत्येन्द्र किशोर मिश्र: (लेखक विक्रम विवि उज्जैन में प्रोफेसर हैं, यह उनके अपने विचार हैं।)