Opinion: जिस देश की अदालतों में 44880748 केस पेंडिंग हों, जहां जांच के स्तर पर ही अकेले बिहार में 2.67 लाख केस पेंडिंग हों, वहीं बिहार के सारण (छपरा) जिले में एक ट्रिपल मर्डर केस को न सिर्फ अभियुक्त को 1 घंटे के भीतर गिरफ्तार किया जाता है, बल्कि 50वें दिन दोनों अभियुक्त को दोषी पाते हुए, आजीवन कारावास की सजा भी सुना देती है।
देश का पहला जिला
इस तरह बिहार के नाम एक नया रिकॉर्ड दर्ज हो जाता है कि यह देश का पहला राज्य और सारण देश का पहला जिला है, जहां नए भारतीय न्याय संहिता के तहत इस तरह के गंभीर अपराध में तीव्र सजा सुनाई गई है। सवाल है कि सारण पुलिस का यह मॉडल क्या पूरे देश में लागू नहीं हो सकता? स्पीडी जांच का अर्थ: सारण जिले के रसूलपुर थाना के धनाडीह गांव में 17 जुलाई 2024 को तारकेश्वर सिंह के घर की छत पर धारदार हथियार से तीन व्यक्तियों की हत्या कर दी गई थी।
इस मामले में एक एफआईआर 17 जुलाई 2024 को दर्ज की गई। डॉ. कुमार आशीष, पुलिस अधीक्षक, सारण के नेतृत्व में घटना के एक घंटे के भीतर ही दो अभियुक्तों सुधांशु कुमार उर्फ रोशन और अंकित कुमार को गिरफ्तार कर लिया गया। बहरहाल, यह तो पुलिस सक्रियता से संभव हुआ, लेकिन जांच महज कुछ दिनों में कैसे संपन्न हुई, इसे लेकर किसी के भी मन में सवाल हो सकते हैं। इस बारे में सारण एसपी डॉक्टर कुमार आशीष बताते हैं कि इस केस की जांच को वैज्ञानिक तरीके से की गई, जिसके लिए फोरेंसिक विशेषज्ञ, एफएसएल पटना टीम का सहयोग लिया गया। इसमें आरोपियों के निशान और डीएनए आदि की भी जांच की गई।
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न्यायालय से स्पीडी ट्रायल की सिफारिश
नतीजतन, महज 2 सप्ताह के आसपास की जांच के बाद ही सारण पुलिस ने अदालत में चार्जशीट दावर कर दी। पुलिस अधीक्षक डॉ. कुमार आशीष का कहना है कि सारण पुलिस ने न्यायालय से स्पीडी ट्रायल की सिफारिश की, जिसे मानते हुए 14 दिनों के बाद ही न्यायालय ने 13 अगस्त 2024 से त्वरित सुनवाई शुरू कर दी। सुनवाई के बाद 3 सितंबर 2024 को दोनों अभियुक्तों को धारा 103 (1)/109 (1)/329(4) को भारतीय न्याय संहिता के तहत दोषी पाया गया और उन्हें 5 सितंबर को (मामले के 50वें दिन) सारण के जिला एवं सत्र न्यायाधीश पुनीत कुमार गर्ग की अदालत ने आजीवन कैद की सजा सुनाई। अदालत ने सारण पुलिस की जांच प्रक्रिया, जांच प्रक्रिया में अपनाई गई वैज्ञानिक विधि की सराहना भी की और इससे निकले तथ्यों को सही पाया।
यह नए कानून भारतीय न्याय संहिता के तहत, ऐसे गंभीर क्राइम में पहली सजा दी गई है। जाहिर है, यह एक ऐसे मॉडल के रूप में भी उभरकर सामने आया है, जिसे सबसे पहले बिहार में लागू किए जाने की जरूरत है, क्योंकि ऐसे केसों में त्वरित न्याय आने सो पराधिक मानसिकता के लोगों के बीच भय व्याप्त होगा, जिसे न्याय के एक सिद्धांत 'डेटरेंट थ्योरी' भी सार्थक होगी। त्वरित न्याय पर शक कई लोगों को यह आशंका हो सकती है कि कहीं इतनी जल्दी में जांच, अभियोजन, सुनवाई और फैसले से अभियुक्तों के साथ गलत तो नहीं हो गया। इस बारे में पटना उच्च न्यायाल के अधिवक्ता कुमार अमित का मानना है कि ऐसी आशंका निर्मूल और बिलकुल गलत है।
साइंटिफिक और एफएसएल बेस्ड इन्वेस्टीगेशन मॉडल
अदालत ने हवा में फैसला नहीं दिया होगा। सारण पुलिस ने निश्चित ही साइंटिफिक जांच के आधार पर ठोस सबूत पेश किए होंगे और पुलिस अधीक्षक ने केस में पर्सनली इन्वोल्व होते हुए सारे सबूत और गवाही कराए होंगे। बचाव पक्ष ने भी अपनी दलीलें रखी होंगी। इस सबके बाद ही अदालत ने फैसला सुनाया है, तो इस पर किसी भी शक की गुंजाइश नहीं रह जाती। बंगाल जैसी घटनाओं का इलाज पश्चिम बंगाल की घटना ने देश को झकझोर कर रख दिया है। बहरहाल, बिहार को ही चाहिए कि वह सारण पुलिस के इस साइंटिफिक और एफएसएल बेस्ड इन्वेस्टीगेशन मॉडल को पूरे बिहार में सख्ती से लागू कराए।
सारण पुलिस और वहां के एसपी डॉक्टर कुमार आशीष ने जिस तरीके से साइंटिफिक जांच की है, तुरंत गिरफ्तारी हुई त्वरित जांच और आरोप पत्र दाखिल हुए, उससे एक नया मॉडल उभरता है, तो क्या इस मॉडल का इस्तेमाल पश्चिमी बंगाल जैसी घटनाओं में त्वरित न्याय देकर अपराधियों का मनोबल तोड़ने का काम नहीं किया जा सकता है। बता दें कि आईपीएस डॉ. कुमार आशीष 2020 में बिहार के ऐसे प्रथम एसपी बने जिनको किशनगंज में हुए सामूहिक बलात्कार कांड के सफल उद्भेदन के बाद सभी 7 आरोपियों को आजीवन कारावास दिलवाने के लिए भारत सरकार ने सर्वश्रेष्ठ अनुसंधान कुशलता पदक 2020 से सम्मानित किया।
शशि शेखर: (ये लेखक के अपने विचार है।)
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