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Opinion: डॉ. शंकर दयाल शर्मा जिस पद पर भी रहे उस पर उन्होंने अपनी कार्यकुशलता की अमिट छाप छोड़ी। डॉ. शर्मा जनमानस से गहराई से जुड़े हुए थे। अपने तपोनिष्ठ जीवन और निरभिमानी व्यक्तित्व के सदगुणों से वे जन-जन के चहेते बने।

Opinion: देश के हृदय प्रदेश की राजधानी भोपाल की माटी में जन्मे डॉ. शंकरदयाल शर्मा राजनीति में संत परंपरा के प्रतिनिधि और अनुपालक के रूप में सदैव स्मरण किए जाएंगे। डॉ. शर्मा का जन्म 19 अगस्त 1918 को भोपाल के गुलियादाई मोहल्ले में हुआ था। अपने सुदीर्घ सार्वजनिक जीवन में मानवीय मूल्यों के जो मान और प्रतिमान डॉ. शर्मा ने 'प्रतिपादित किए, वे अनुकरणीय, प्रेरक और वंदनीय हैं।

व्यक्तिगत जीवन में साफ-सुथरी छवि
अपनी प्रतिभा, लगन, कर्मठता, निष्ठा और और व्यक्तिगत जीवन में साफ-सुथरी छवि के साथ उन्होंने भोपाल राज्य के मुख्यमंत्री, मध्यप्रदेश के शिक्षामंत्री, भोपाल के सांसद, केन्द्रीय संचारमंत्री, अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष, आंध्रप्रदेश, पंजाब और महाराष्ट्र के राज्यपाल, भारत के उपराष्ट्रपति तथा राष्ट्रपति के सर्वोच्च पद को सुशोभित किया। डॉ. शर्मा जिस पद पर भी रहे उस पर उन्होंने अपनी कार्यकुशलता की अमिट छाप छोड़ी। डॉ. शर्मा जनमानस से गहराई से जुड़े हुए थे। अपने तपोनिष्ठ जीवन और निरभिमानी व्यक्तित्व के सदगुणों से वे जन-जन के चहेते बने। वे भारतीय संस्कृति पुरुष ही नहीं, बल्कि गंगा-जमुनी तहजीब के ऐसे प्रतिनिधि रहे हैं, जिनमें आरती और अजान के संयुक्त भाव विद्यमान थे। उनकी मान्यता थी कि मानव सेवा से बढ़कर दूसरा कोई धर्म नहीं है।

ज्ञानयोगी और राजयोगी भी थे
वे ज्ञानार्जन के लिए हर पल उत्सुक ज्ञानयोगी थे और राजयोगी भी थे। वे गुणी थे और गुणग्राहक भी थे। वे संविधान के अध्येता थे और उसके अनुरक्षक भी थे। अनुशासन के बिना जीवन और शासन उनके कल्पना से परे की बात थी। डॉ. शंकरदयाल शर्मा कुशल शिक्षाशास्त्री थे। एम.ए. (हिंदी, संस्कृत एवं अंग्रेजी), उर्दू के आलिम फाजिल, एल.एल.एम., बारएट लॉ, डिप्लोमा इन पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन (लंदन), एफआर.एस. (लंदन) एवं पी.एच.डी. (कैम्ब्रिज), बानडिन फेलोशिप ऑफ फारवर्ड स्कूल (अमेरिका), के साथ ही कानून में उनकी लिखी कई थीसिस आज भी मौलिक मानी जाती है। उन्होंने केर्मब्रज में कानून भी पढ़ाया। वे लखनऊ विश्वविद्यालय में कानून के प्राध्यापक रहे हैं।

1949 में भोपाल रियासत के भारतीय संघ में विलीनीकरण आंदोलन को भागीदारी से लेकर 1992 में भारत के राष्ट्रपति के सर्वोच्च पद पर पहुंचने तक की डॉ. शंकरंदयाल शर्मा की यात्रा कथा पड़ाव-दर-पड़ाव विविध अनुभवों से गुजरते चले जाने की एक ऐसी कहानी है जिसमें उनकी लगन, दृढ़ संकल्प, विद्वत्ता, संघर्षशीलता और कर्मठता का पग-पग पर परिचय मिलता है। डॉ. शर्मा 1952 से 1956 तक भोपाल राज्य के मुख्यमंत्री रहे। इस दौरान उन्होंने भोपाल के चहुमुखी विकास की दिशा में कीर्तिमान स्थापित किए। उन्हें आधुनिक भोपाल के निर्माता के रूप में सदा याद किया जाएगा। भोपाल के सर्वांगीण विकास में डॉ. शर्मा का अविस्मरणीय योगदान रहा है। भोपाल जो कभी सीहोर जिले की एक तहसील हुआ करता था, डॉ. शर्मा की सूझबूझ भरी कोशिशों से मध्यप्रदेश की राजधानी बना।

भारतीय संस्कृति की प्रतिमूर्ति रहे
भोपाल में बीएचईएल का कारखाना लाने का श्रेय भी डॉ. शंकरदयाल शर्मा को है। इनके अलावा डॉ. शर्मा के अनवरत प्रयासों से भोपाल में गांधी मेडिकल कालेज, हमीदिया कालेज, रीजनल कालेज, मौलाना आजाद इंजीनियरिंग कालेज जो अब मेनिट कहलाता है, जैसे बड़े शिक्षण संस्थान स्थापित हुए। डॉ. शंकरदयाल शर्मा के विशेष प्रयासों से भोपाल में 'ज्यूडिशल एकेडमी' बनी, जो पूरे देश में ज्यूडीशियरी के प्रशिक्षण को अनूठा संस्थान है। डॉ. शर्मा का पूरा जीवन, राष्ट्र और राष्ट्रीयता एवं उनमें समाहित मूल्यों से ओतप्रोत रहा है। वे भारतीय संस्कृति की प्रतिमूर्ति रहे हैं। उनके जीवन में अनेक उतार-चढ़ाव आये, पर उन्होंने सिद्धांतों को कभी नहीं छोड़ा। डॉ. शर्मा स्तरहीन, व्यक्तिगत राग-द्वेष की राजनीति एवं आलोचना-प्रत्यालोचना के प्रपंच से परे रहे। उनमें समय को पहचानने और निर्णय लेने की अद्भुत क्षमता थी। अपनों से अपनो के लिए लाभ नहीं लेना और विरोधियों को भी अपमानित नहीं करना, उनकी कार्यशैली रही है। डॉ. शंकरदयाल शर्मा सन् 1987 में सर्वसम्मति से भारत के उपराष्ट्रपति बने। जुलाई 1992 में डॉ शर्मा भारत के राष्ट्रपति बने। भोपाल की माटी के इस महान सपूत डॉ. शर्मा का सार्वजनिक जीवन निश्कलंक रहा है। वे हमेशा प्रेरित करते रहेंगे।
सुरेश पचौरी: (लेखक भारत सरकार में रक्षा उत्पादन कार्मिक एवं संसदीय कार्य राज्य मंत्री रहे हैं।)

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