Opinion: ध्वस्त किया जा सकता है जनतंत्र का 'स्टॉक मार्केट, आवाज सुननी ही पड़ेगी

Opinion: अगर हम सब एक साथ आवाज उठाएं तो 'जनतंत्र का स्टॉक मार्केट' ध्वस्त किया जा सकता है। यानी, भ्रष्टाचार को ध्वस्त किया जा सकता है। हमारे देश में दो स्वतंत्रता संग्राम लड़े गए एक 1857 में एक 1947 में, जिसमें देश की जनता ने, नेताओं ने बलिदान दिया। इसके पश्चात हमने देश को लगभग 400 वर्ष की अंग्रेजों एवं मुगलों की गुलामी के बाद देश को आजाद कराया।
लड़ाई सत्य और अहिंसा पर लड़ी
1947 की आजादी की लड़ाई समूचे विश्व में एक उदाहरण बनी क्योंकि यह लड़ाई सत्य और अहिंसा पर लड़ी गई थी। आजादी के बाद हमें हमारा संविधान मिला जहां सब को अधिकार मिले, ऊंच-नीच, जाति की दीवारें टूटी। परंतु यह दीवार पूरी नहीं टूटी है। 1952 में देश में पहली बार आम चुनाव हुए, कहीं भी हिंसा की घटना नहीं हुई। तो आज क्यों इतनी हिंसा बढ़ी है? इसका मुख्य कारण है कि राजनीति में शनैः शनैः कालाधन का प्रवेश और वोटरों को लुभाने वाले वादे करना और चुनाव के बाद अभद्रता और अधिकांश वादों की अनदेखी करना।
मैं जब 1971 में दिल्ली विश्वविधालय में अध्यनरत था तब इन विषयों को लेकर सेमिनार अथवा डिबेट भी होते थे। आज कहीं इस तरह की चर्चा, डिबेट, सेमिनार कम ही देखने को मिलते हैं। आज तो डिजिटल दुनिया है फिर भ्रष्टाचार पर खुलकर बहस क्यों नहीं होती? यह सारे सवाल आज नहीं तो कल का युवा अवश्य उठाएगा। पंचायत राज हमारे प्रजातंत्र की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है और सीधी जनता से जुड़ी व्यवस्था है। इसे संविधान में 73वां संशोधन कर संसद में पारित किया गया और कानून बना। शुरू में अच्छे परिणाम भी सामने आए। महिलाओं की भागीदारी बढ़ने से उनका आत्मविश्वास भी बढ़ा और उन्होंने बहुत अच्छा काम भी किया। अधिकारियों के अधिकार जनता को मिल गए। बाद में कंपनी कल्चर पंचायतों में प्रवेश कर गया।
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प्रतिनिधियों के आदेश का पालन
पंचायत में भी पंचायत सचिव बनाए गए। इनका कार्य है चुने हुए प्रतिनिधियों के आदेश का पालन करना परन्तु हो ठीक विपरीत रहा है। कई पंचायतों में कागज पर सड़क, कुओं का निर्माण कर दिया गया और पूरी राशि हड़प ली गई। जांच भी हुई कुछ लोगों को जेल भी भेजा गया। पर इनकी संख्या नगण्य है। धारा 40 का पंचायत राज में सरपंच को बर्खास्त करने का भी प्रावधान है, परन्तु इस धारा का उपयोग कम हो रहा है। फिर हम चर्चा करें, बच्चों को दिए जा रहे पोषण आहार की तो पशु भी उस पोषण आहार के पैकेट को देख कर मुंह फेर लेते हैं। कुपोषण बढ़ने का यही कारण है। सरकारें बनती रहेंगी बिगड़ती रहेंगी, परन्तु जनता अगर आगे आएगी तो नेता, राजनीतिक दल सब को उनकी आवाज सुननी ही पड़ेगी।
लक्ष्मण सिंह: (लेखक पूर्व सांसद एवं पूर्व विधायक हैं, यह उनके निजी विचार हैं।)
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