Opinion: भारत आजादी के सात दशक से अधिक का सफर पूरा कर चुका है। इस दौरान देश ने हर क्षेत्र में नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं। इस दौरान राजनीतिक बदलाव देखे, तो विकास की ओर अग्रसर योजनाएं और कार्यक्रम भी। युद्ध से दो-चार होना पड़ा तो अपनी परमाणु शक्ति में भी भारत ने इजाफा किया। मेट्रो ट्रेन से लेकर कम्प्यूटर तक भारतीय नागरिकों के जीवन का हिस्सा बने। इतना ही नहीं, भारत ने बैलगाड़ी से लेकर एयर इंडिया तक का सफर तय किया है।
पहचान बनाने में सफल
नए-नए आविष्कारों और तकनीकी विकास से भारत विश्व में अपनी एक अलग पहचान बनाने में सफल रहा है। साथ ही, भारत ने अपनी आजादी के उन मूल्यों को संजोये रखा है जिन मूल्यों से इसे स्वतंत्रता प्राप्त हुई है। आज हम दुनिया के दिग्गज देशों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर तरक्की के पथ पर आगे बढ़ रहे हैं। आज भारत अपनी आजादी की 77वीं वर्षगांठ का जश्न मना रहा है। यह 78वां स्वतंत्रता दिवस है। यह सभी देशवासियों के लिए विशेष अवसर है। 15 अगस्त 1947 को देश सैकड़ों वर्षों की गुलामी की बेड़ियों से आजाद हुआ। तब से लेकर अब तक सांस्कृतिक, सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, सैन्य, खेल एवं तकनीकी क्षेत्र की विकास यात्रा में देश ने अपनी एक पहचान बनाई है। 78 वर्षों की इस विकास यात्रा में नए कीर्तिमान बने हैं। आज भारत की पहचान एक सशक्त राष्ट्र के रूप में है। यह अनायास नहीं है।
दुनिया आज भारत की तरफ देख रही है। बीते 78 सालों में अपनी अंदरूनी समस्याओं, चुनौतियों के बीच देश ने ऐसा कुछ जरूर हासिल किया है, जिसकी तरफ दुनिया आकर्षित हो रही है। देश के पास गर्व करने के लिए उपलब्धियां हैं तो अफसोस जताने के लिए वजहें भी हैं। हमें आजादी तो मिल गई लेकिन वह आजादी आज किस रूप में है। हमारे पूर्वजों, स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों, राजनेताओं ने आजाद भारत का जो सपना देखा था। उनकी नजरों में आजादी के जो मायने थे। भारत छोड़ो आंदोलन की घोषणा के समय महात्मा गांधी ने कहा था कि मेरा विश्वास है कि विश्व के इतिहास में स्वतंत्रता के लिए लोकतांत्रिक संघर्ष हमसे ज्यादा वास्तविक किसी का नहीं रहा है। मैंने फ्रांस क्रांति के बारे में पढ़ा है और पंडित नेहरू ने रूसी क्रांति के बारे में कुछ बताया है। लेकिन इनसे मेरी यही धारणा बनी है कि हिंसा के दम पर इन संघर्षों को लड़ा गया है, इसलिए लोकतांत्रिक आदशों को फलीभूत नहीं कर सके।
आदर्श देश की जो परिकल्पना
मैंने जिस लोकतंत्र की कल्पना की है उसकी स्थापना अहिंसा से होगी। उसमें सभी को समान स्वतंत्रता मिलेगी। हर व्यक्ति खुद का मालिक होगा। इस तरह के लोकतंत्र के संघर्ष के लिए मैं आपका आमंत्रित करता हूं। पंडित नेहरू के भी सपने थे। पर क्या उसके अनुरूप हम आगे बढ़े हैं। संविधान में एक आदर्श देश की जो परिकल्पना की गई है उसे हम कितना साकार कर पाए हैं। नागरिकों से समाज और समाज से देश बनता है। एक बेहतर नागरिक एक स्वस्थ समाज का निर्माण करता है। एक सजग समाज देश को उन्नति के रास्ते पर ले जाने का मार्ग प्रशस्त करता है। सवाल है कि एक देश और व्यक्ति के रूप में आज हम कहां खड़े हैं, इसका एक सिंहावलोकन करना जरूरी है। आजादी के इन सालों में हमने क्या खोया और क्या पाया है, आज इसकी भी बात करनी जरूरी है।
भारत जीवंत लोकतंत्र का एक जीता-जागता उदाहरण है। यहां की लोकतांत्रिक संस्थाओं में लोगों की आस्था है। विरोधी विचारों का सम्मान लोकतंत्र को ताकत देता आया है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के रूप में भारत ने एक परिपक्व देश के रूप में अपनी पहचान बनाई है। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से लेकर अब तक सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच मुद्दों पर गंभीर मतभेद रहे लेकिन इन मतभेदों ने लोकतंत्र को कमजोर नहीं बल्कि उसे मजबूती दी है। लोग अपनी पसंद से सरकारें चुनते आए हैं। भारत के लोकतंत्र में लोग ही अहम हैं। यह भारत की जीत है। आम आदमी को सशक्त बनाने के लिए बीते दशकों में सरकारें जनकल्याणकारी नीतियां और योजनाएं लेकर आईं। योजनाओं का लाभ गरीबों एवं कमजोर वर्गों तक पहुंचाया गया है।
विकास की गति तेज हुई
प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, सूचना का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, मनरेगा जैसे कार्यक्रमों एवं योजनाओं ने आम आदमी को सशक्त बनाया है। इन महात्वाकांक्षी योजनाओं से विकास की गति तेज हुई। इन विकास योजनाओं के बावजूद देश में गरीबी, पिछड़ापन दूर नहीं हुआ है। विकास से जुड़ी समस्याएं अभी भी मौजूद हैं। उदारीकरण के दौर के बाद भारत तेजी से विकास के रास्ते पर आगे बढ़ा है। आर्थिक, सैन्य एवं अंतरिक्ष क्षेत्र में इसने सफलता की बड़ी छलांग लगाई है। चुनौतियों के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी से आगे बढ़ी है। आज भारत दुनिया का सबसे बड़ा बाजार बना हुआ है। सैन्य क्षेत्र में भारत एक महाशक्ति बनकर उभरा है। परमाणु हथियारों से संपन्न भारत के पास दुनिया की चौथी सबसे शक्तिशाली सेना है। मिसाइल तकनीकी में दुनिया भारत का लोहा मान रही है। अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत ने नए-नए कीर्तमान गढ़े हैं। आईटी सेक्टर में देश अग्रणी बना हुआ है। इन उपलब्धियों ने देश को सुपरपावर बनने के दरवाजे पर लाकर खड़ा कर दिया है।
भारत की एकता, अखंडता व समरसता का बने रहना तथा कश्मीर से कन्याकुमारी तक एक देश का नारा हमें सुखद स्थिति दिखाता है। यूं कहे कि 78 साल में भारत की एक और स्वर्णिम उपलब्धि है जिस पर हम गर्व कर सकते हैं, वह है लोकतांत्रिक ढांचे का दिन पर दिन मजबूत होना। एक देश के लिए 78 वर्ष की आयु अधिक नहीं होती है, जब इस अवधि में हम अपने आस-पास के देशों की अनिश्चितता देखते है तो हमें गर्व होता है कि कैसे एक देश अपनी परिस्थिति को सुधारते-सुधारते सबल होता है और अन्य देशों के लिए एक अनुकरणीय उदाहरण बनता है। जाहिर है कि आज भारत के पास दुनिया को देने के लिए बहुत कुछ है लेकिन इन सफलताओं एवं उपलब्धियों के बावजूद सामाजिक एवं नैतिक मूल्यों में ह्रास हुआ है। व्यक्ति से लेकर समाज, राजनीति सभी क्षेत्रों में मूल्यों का पतन देखने को मिला है। सत्ता, पावर, पैसे की चाह ने लोगों को भ्रष्ट एवं नैतिक रूप से कमजोर बनाया है।
समझौते किए जाते हैं
राजनीति का एक दौर वह भी था, जब रेल हादसे की जिम्मेदारी लेते हुए केंद्रीय मंत्री अपने पद से इस्तीफा दे दिया करते थे। एक वोट से सरकार गिर जाया करती थी। भ्रष्टाचार में नाम आने पर नेता अपना पद छोड़ देते थे लेकिन आज सत्ता में बने रहने के लिए सभी तरह के समझौते किए जाते हैं और हथकंडे अपनाए जाते हैं। नैतिक पतन के लिए केवल नेता जिम्मेदार नहीं हैं, मूल्यों में पतन समाज के सभी क्षेत्रों में आया है। इसके लिए किसी एक को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। बेहतर समाज एवं राष्ट्र बनाने की जिम्मेदारी हम सभी की है। इसके लिए हम सभी को आगे आना होगा। तभी जाकर एक बेहतर भारत और 'न्यू इंडिया' के सपने को साकार किया जा सकेगा।
रवि शंकर: (लेखक वशिष्ठ पत्रकार हैं. वे उनके अपने विचार हैं)