Opinion: कोरोना काल ने जिसे सबसे अधिक प्रभावित किया वह शिक्षा व्यवस्था के साथ-साथ पठन-पाठन का स्वरूप रहा है। प्राथमिक स्कूल की शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक भी इस काल में प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकी। परन्तु इस कालखंड में ऑनलाइन शिक्षा का ऐसा महिमामंडन किया गया जैसे भारत की परम्परागत शिक्षा अपने नये स्वरूप में ऑनलाइन शिक्षा का ढांचा लेकर स्वदेशी शिक्षा का ही अहसास करा रही हो।

शिक्षा के तीन उद्देश्यों की चर्चा
आज भी देखने में आ रहा है कि शिक्षक, छात्र व अभिभावकों ने भी शिक्षा की समस्त समस्याओं का समाधान इस ऑनलाइन शिक्षा को ही मान लिया है। अब प्रश्न यह उठता है कि क्या ऑफलाइन शिक्षा को छोड़कर इस ऑनलाइन शिक्षा में छात्र के साथ-साथ देश व समाज की सभी समस्याओं का हल मौजूद है। क्या ऑनलाइन शिक्षा ऑफलाइन अथवा कक्षीय शिक्षा का सही विकल्प हो सकती है? क्या ऑनलाइन शिक्षा भारतीय परिवेश की मूल शिक्षा के समानान्तर खड़ी हो सकती है? ये कुछ ऐसे सामयिक प्रश्न हैं जिनका उत्तर समय रहते खोजना समीचीन प्रतीत होता है। दरअसल, इन प्रश्नों का उत्तर खोजने के लिए हमें शिक्षा के कुछ मूल व प्राथमिक उद्देश्यों को जानना व समझना होगा। यहां हम भारतीय ज्ञान परंपरा में समाहित प्रमुख रूप से शिक्षा के तीन उद्देश्यों की चर्चा करेंगे।

शिक्षा के प्रथम उद्देश्य व्यक्तित्व और चरित्र निर्माण पर दृष्टिपात करने से ज्ञात होता है कि कक्षा शिक्षण द्वारा छात्र को केवल किताबी ज्ञान ही नहीं दिया जाता, बल्कि साथ ही उसके व्यक्तित्व को निखारने और उसके चारित्रिक गुणों के विकास की प्रक्रिया भी निरंतर चलती रहती है। शिक्षा के ऑफलाइन प्रकार में शिक्षक का आचरण और उसके संतुलित व्यवहार के प्रत्यक्ष पहलू भी छात्रों को प्रभावित करते हैं। संस्था के परिसर में विभिन्न सामाजिक- आर्थिक पृष्ठभूमि के छात्रों का आपसी संवाद, बहस, विवेचन तथा तर्क प्रस्तुति इत्यादि छात्र के संतुलित व्यक्तित्व के निर्माण में अहम भूमिका निभाते हैं। संस्था में संपन्न होने वाली विभिन्न शिक्षणेत्तर गतिविधियां छात्र के व्यक्तित्व को समृद्ध बनाती है।

माध्यमों से सैद्धांतिक ज्ञान
ऑनलाइन शिक्षा में गतिविधियां लगभग शून्यता लिए हुए रहती हैं। इस परिस्थिति में छात्र गूगल अथवा इंटरनेट के अन्य माध्यमों से सैद्धांतिक ज्ञान तो प्राप्त कर सकता है, लेकिन वहां मानवीय व एकल व्यक्तित्व के निर्माण की प्रक्रिया नगण्य ही रहती है। शिक्षा का दूसरा उद्देश्य समाज का कल्याण है, जो पहले लक्ष्य से ही जुड़ा हुआ है। अगर व्यक्ति में सामाजिक जीवन के लिए जरूरी गुण जैसे सामूहिकता, भ्रातृ भाव, सहिष्णुता व आपसी सद्भाव इत्यादि ठीक से विकसित न हो पाएं तो समाज भौतिक स्तर पर भले ही संपन्न हो जाएं, लेकिन उसमें अनेक प्रकार की विसंगतियां रहेंगी और जो विविध प्रकार की सामाजिक समस्याओं को जन्म देंगी। शिक्षा का तीसरा उद्देश्य ज्ञान का विकास भी ऑनलाइन पद्धति में एक सीमा तक ही संभव है। उसमें पुस्तकीय सैद्धांतिक ज्ञान तो हासिल होगा, लेकिन व्यावहारिक ज्ञान से अपेक्षाकृत छात्र वंचित ही रहेंगे।

देखा जाये तो विज्ञान, तकनीक और चिकित्सा जैसे विषयों की पढ़ाई तो इन विषयों के व्यावहारिक ज्ञान के बिना न तो संभव होगी और न ही पूर्णता प्राप्त करेगी। छात्रों के ज्ञान के परीक्षण में भी ऑनलाइन पद्धति पूरी तरह से सफल नहीं है। ऑनलाइन शिक्षा में आमतौर पर वस्तुनिष्ठ प्रारूप में परीक्षाएं होती हैं। इसमें ऑफलाईन परीक्षा की तरह विद्यार्थियों के संपूर्ण विवेचन और समालोचनात्मक दृष्टिकोण का सम्यक परीक्षण नहीं हो पाता। शिक्षा के अन्य उद्देश्यों में एक अन्य उद्देश्य रोजगारपरक शिक्षा भी है। परंतु यहां कहना न होगा कि विशुद्ध ऑनलाइन डिग्री से जुड़ी शिक्षा इसमें ज्यादा कारगर सिद्ध नहीं होगी। मल्टीटास्किंग के वर्तमान कालखंड में विशुद्ध सैद्धांतिक ज्ञान से ज्यादा व्यावहारिक ज्ञान और सामाजिक कौशल पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, जो ऑनलाइन में कमोबेश अधूरा ही रह जाता है।

नियमित शिक्षा प्राप्त करना एक कठिन कार्य
आज ऑनलाइन शिक्षा को वर्तमान आधुनिक शिक्षा के लिए एक अचूक औषधि माना जा रहा है। अब प्रश्न उठता है कि क्या ऑनलाइन शिक्षा को बिल्कुल खारिज कर दिया जाए? नहीं। निश्चित ही यह शिक्षा उन कामकाजी लोगों के लिए बहुत लाभकारी है जिनके लिए नियमित शिक्षा प्राप्त करना एक कठिन कार्य है। नए तरह के रोजगार पाने अथवा प्रमोशन में ऑनलाइन शिक्षा से जुड़े प्रोग्राम उनके लिए बहुत सहायक सिद्ध होंगे। कहा जा सकता है कि छात्रों को ऑनलाइन शिक्षा की तुलना में ऑफलाइन शिक्षा के प्रतिमान को अधिक महत्व दिए जाने की आवश्यकता है।
डॉ. विशेष गुप्ता: (लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं. यह उनके अपने विचार हैं।)