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Opinion: चुनाव आयोग को चुनाव कराने के लिए बड़ी संख्या में कर्मियों की जरूरत होती है और ये कर्मों विभिन्न सरकारी विभागों, सरकारी स्कूल के शिक्षकों, राष्ट्रीयकृत बैंकों और एलआईसी सहित विभिन्न उद्यमों जैसे सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों से लिए जाते हैं, जो देश भर के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में अपने-अपने जिलों में चुनाव कराने में मदद करते हैं।

Opinion: अठारहवीं लोकसभा अस्तित्व में आ चुकी है। आम चुनाव को सम्पन्न कराने के लिए कुल दस लाख से अधिक केंद्र व राज्य कर्मचारियों की ड्यूटी लगाई गई थी इन चुनावों को सम्पन्न कराने के लिए अपने घर परिवार बच्चों को छोड़कर मतदान केंद्रों पर ड्यूटी देने गए, 123 कर्मचारी अपने घर जीवित वापस नहीं आए वरना वह अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए ड्यूटी पर ही विभिन्न कारणों से जान गंवा गए।

चुनाव आयोग को चुनाव कराने के लिए बड़ी संख्या में कर्मियों की जरूरत होती है और ये कर्मों विभिन्न सरकारी विभागों, सरकारी स्कूल के शिक्षकों, राष्ट्रीयकृत बैंकों और एलआईसी सहित विभिन्न उद्यमों जैसे सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों से लिए जाते हैं, जो देश भर के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में अपने-अपने जिलों में चुनाव कराने में मदद करते हैं। चुनाव ड्यूटी के लिए नियुक्त लोगों के अनुपस्थित रहने की कोई गुंजाइश नहीं है। अनुपस्थिति पर आयोग की ओर से दंड दिया जाता है।

आखिरी उम्मीद 15 लाख रुपये का सरकारी मुआवजा
चुनाव कार्य में केवल उन्हों कर्मचारियों की ड्यूटी लगाई जा सकती है जो केंद्र या राज्य के स्थायी कर्मचारी हैं। इस बार का लोकसभा चुनाव 45 डिग्री वाले गर्म मौसम में सम्पन्न हुआ। यह गर्म मौसम की तपिश चुनाव ड्यूटी पर तैनात कर्मचारियों के लिए बेहद भारी साबित हुई। सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही 54 कर्मचारियों की ड्यूटी करते हुए मौत हो गई। 33 मौतें तो वोटिंग के आखिरी दिन 1 जून को हुई। मरने वालों में ज्यादातर होमगार्ड्स थे, जिनके परिवारों की आर्थिक स्थिति बहुत खराब है। कुछ परिवार ऐसे हैं, जिन्हें सहारा देने वाला कोई नहीं बचा। उनकी आखिरी उम्मीद 15 लाख रुपये का सरकारी मुआवजा है, जो अब तक नहीं मिला है।

उत्तर प्रदेश ही नहीं देश के दूसरे राज्यों में भी चुनाव ड्यूटी के दौरान कई कर्मचारियों की मौत हुई। चुनाव आयोग से इसकी जानकारी मांगी, लेकिन जवाब नहीं मिला। एक रिपोर्ट के मुताबिक राज्यों में अधिकारियों से बात की, तो पता चला कि मध्यप्रदेश में 27, असम में 15, राजस्थान-छत्तीसगढ़ में 8-8, पंजाब में 7 और दिल्ली में 4 मौतें हुई हैं। उत्तर प्रदेश में चुनाव के दौरान गर्मी काफी अधिक रही और चुनाव कर्मियों को सुविधाओं का अभाव था यही कारण है कि 54 पोलिंग स्टाफ की मौत हो गई। ड्यूटी पर जान गंवाने वाले इन कर्मचारियों में से अभी तक सिर्फ 27 के आश्रितों को सरकार की ओर से मदद मिली है।

देश में कितने पोलिंग कर्मचारियों की मौत
इलेक्शन कमीशन के मुताबिक, जान गंवाने वाले कर्मचारियों में ज्यादातर होमगार्ड, सफाईकर्मी और वोटिंग कराने वाले कर्मचारी थे। इन सभी की 500 रुपये रोज के हिसाब से ड्यूटी लगाई गई थी। सभी को वोटिंग से 3 से 4 दिन पहले तय लोकसभा क्षेत्रों में पहुंचना था। । यूपी के मुख्य चुनाव अधिकारी नवदीप रिणवा के हवाले से बताया गया है कि यूपी में रिपोर्ट हुई सभी मौतें नेचुरल डेथ की कैटेगरी में आती हैं, इसलिए सभी पीड़ित परिवारों को 15 लाख रुपये की मदद दी जाएगी। इलेक्शन कमीशन की गाइडलाइन के अनुसार, चुनाव ड्यूटी के दौरान पोलिंग स्टाफ की मौत होने पर दो तरह से मदद दी जाती है।

पहला- कर्मचारी की बीमारी से या फिर प्राकृतिक मौत होने पर 15 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाता है। दूसरा-किसी भी तरह के उपद्रव या आतंकी हमले में पोलिंग स्टाफ की मौत होने पर 20 लाख रुपये की आर्थिक सहायता दी जाती है। चीफ इलेक्शन कमिश्नर अभी यह जानकारी नहीं दे रहे हैं कि देश में कितने पोलिंग कर्मचारियों की मौत हुई, कब तक पीड़ित परिवारों को मुआवजा मिल जाएगा। सवाल सह है कि क्या तपती गर्मी को देखते हुए चुनाव टाला जा सकता था, वरिष्ठ पत्रकारों ने ऐसे 6 सवाल चीफ इलेक्शन कमिश्नर को मेल के जरिये भेजे। 5 दिन बाद भी जवाब नहीं आया।

कर्मचारियों की सही संख्या तक नहीं
यह शर्मनाक है कि देश का चुनाव आयोग ड्यूटी पर तैनात जान गंवाने वाले कर्मचारियों की सही संख्या तक नहीं बता रहा है। मध्यप्रदेश के मुख्य चुनाव अधिकारी अनुपम रंजन के मुताबिक चुनाव ड्यूटी के दौरान 27 कर्मचारियों की मौत हुई है। इनमें से 21 के परिवारों को केंद्र सरकार की तरफ से 15 लाख रुपये की मदद दी गई है। छत्तीसगढ़ में 8 कर्मचारियों की मौत हुई। सभी के परिवारों को मुआवजा मिल गया है। राजस्थान के मुख्य चुनाव अधिकारी प्रवीण गुप्ता के मुताबिक, प्रदेश में 8 मौतें हुई हैं, जिनमें से 6 परिवारों को मुआवजा मिल गया है।

एक ओर वह नेता हैं जो संविधान हाथ में लेकर संविधान में आस्था का प्रदर्शन करते हैं और मौका मिलने पर संविधान का दुरुपयोग करने से भी नहीं चूकते हैं वहीं दूसरी ओर वे हैं जो अपनी जान ड्यूटी देते गंवा गए। हमारे विचार में इन तमाम लोगों को कर्तव्य परायणता के लिए श्रद्धांजलि दी जानी चाहिए और इनके आश्रितों को यथा शीघ्र आर्थिक मदद दी जानी चाहिए। इसमें देरी या अनावश्यक कागजी बाधाएं दूर करने की जरूरत है, ताकि लोकतंत्र के इन पहरूओं की आत्मा को शान्ति मिल सके।
मनोज कुमार अग्रवाल:  (लेखक वरिष्ठ पत्रकार है, ये उनके अपने विचार है।)

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